The Process Of Understanding

Author
Michael Lipson
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Image of the Weekसमझ में लाने की प्रक्रिया द्वारा माइकल लिपसन

हम लोग केन्द्रित करेंगे , दो स्वतः विरोदाभासी मुद्राओं के मिलन को : साथ साथ नियंत्रित करना एवं मुक्त कर देना |

नियंत्रण | यानि मेरे पास एक प्रोजेक्ट है जैसे कि एक पत्र लिखना अथवा संगीत नाटक पे नृत्य सिखाना , अथवा गणित का एक प्रश्न सुलझाना अथवा (जैसा हम कहते हैं ) एक सभा का नियंत्रण करना| अथवा जीवन जीना, अथवा साँसों पे ध्यान लगाना , या एक चिंतनशील विषय पर ध्यान लगाना |

मुक्त कर देना | इस नियंत्रित क्षेत्र के अंतर्गत , इस नियंत्रित पर्यावरण अथवा प्रक्रिया में मुझे एक प्रकार का निवारण करना है ( मुक्त करना है) , अन्यथा कुछ भी आगे नहीं होगा|

अतः मैं अपने आप को एक सोंनेट अथवा एक हाइकू का रूप देता हूँ और वो निमंत्रण देती है एक मुफ्त कार्य गुणवत्ता को आकार में भरने का | मैं ध्यान के विषय को नियंत्रण में लेता हूँ, इस अर्थ में कि मैं उसके पास अपने अन्य लगाव से वापस उसमे वापस जा सकूं, पर उस विषय के अंतर्गत मैं किसी भी विचार , किसी भी गहराई को अपने अन्दर उपजने देता हूँ| अगर मेरा नियंत्रण सही हूँ तो में अपने काम किसी और के भरोसे दे सकता हूँ, उन्हें सूक्ष्म तरीक से नियंत्रत करने के बजाय |

हम खोजते हैं एक मजबूत सम्बन्ध बनाने को, और साथ ही साथ , उसी के अंतर्गत , मुक्त कर देने की अधिकता को | ये ऐसा प्रतीत होता है जैसे एक अच्छा मेजबान आमंत्रित करता है किसी को , उनका स्वागत करता है और साथ ही उस मेहमान को बहुत ही स्वतंत्रता दे देता है उनके मेहमानी कि भूमिका निभाने को| हम कितने प्रकार के मेहमानों का स्वागत करते हैं : जैसे नवजात शिशुओं का इस दुनिया में, ऐसे विचार जो हमारे लिए नए हैं, और जैसा कि लेखक थोरौ कहता है ,”भोर की एक अनंत उम्मीद “

किसी भी चीज़ को समझने की प्रक्रिया में आवश्यता होती है हमारी तरफ की एक केन्द्रीयता की जिसका तात्पर्य है ( पकडे रखना ) और हमारी तरफ की एक अभिग्राह्यता जिसका तात्पर्य है (मुक्त कर देना ) | उदहारण स्वरूप देखें तो अगर हम एक प्याले को समझना चाहें . हम अपना ध्यान प्याले के ऊपर केन्द्रित कर देते हैं, और उस आशय में एक सूक्ष्म इंतज़ार है या अभिग्राह्यता है , इस प्याले के बारे में समाचार आने का| मैं शुरू करता हूँ शायद उस प्याले की एक छवि बनाने के साथ , शायद विविधता से उसके कार्य क्षमता का ,और फिर कुछ मेरी जागरूकता में आ जाता है , उदहारण स्वरुप “आप प्याले को नीचे रख देते हो और फिर भी वो उसमे रखा पदार्थ पकडे रखता है , जबकि उसकी तुलना में चम्मच देखें तो उसे पकड़ के रखना पड़ता है अन्यथा उसमे रखा पदार्थ नीचे गिर जायेगा| ये विचार कहाँ से उपजता है? मैं इतिहास काल की नहीं बात कर रहा, पर अभी वर्त्तमान में यह नई जानकारी मेरे जहन में कहाँ से आई ? ऐसा लगता है कि हम पहले निशाना लगाते हैं और फिर हमें वो प्राप्त होता है|

इस प्रकार की गहन किन्तु सहज सहभागिता हमें ले जाती है उस समझ की ही प्रक्रिया पर जहाँ पर “ ये विचार कहाँ से आया “ समझ में आ जाता है, और उसके पश्चात, आश्चर्य तो होता है , पर एक बहुत ही आतंरिक सम्बन्ध इस जीवन के साथ बन जाता है| हम जीवन से कम विच्छेद महसूस करते हैं, कम “ निष्पक्ष “ , कम अलगाव महसूस करते हैं| इस प्रकार का एक आत्मविकास , इस दुनिया में हमारे मन एवं ह्रदय को इस्तेमाल करने के तरीके में बदलाव ला सकता है जो बहुत ही महत्वपूर्ण होगा, हमारे जीवन से जुड़े मानव निर्मित पर्यावरण नुक्सान और उसके साथ उपजने वाले सारी समस्याओं का सामना करने में| हमारे मन एवंम ह्रदय, इस पृथ्वी पर फैली हुई सम्बन्धता को एक सहज दिशा में लाने में मदद कर सकते हैं|

हम किस प्रमाण की पूर्णता से अपने आप को जोड़ सकते हैं एक दुसरे जुसने एवं सँभालने में? और किस स्वतंत्रता से , अस्तित्व की किस हद तक , हम एक दुसरे को मुक्त कर सकते हैं? आइये पता करें |

मनन के लिए बीज प्रश्न : आप इस धारणा से कैसा नाता रखते हैं कि समझने में लेन की प्रक्रिया को “ पकडे रहने” एवं “मुक्त करने , दोनों की अबश्यता होती है ? क्या आप एक ऐसे समय की निजी कहानी साझा कर सकते हैं जब आपने गहन समझदारी महसूस की , एकाग्रता एवं निवारण के माध्यम से? आपको एक साथ “पकडे रहने “ एवं “मुक्त कर देने “ की स्थिति में रहने में किस चीज़ से मदद मिलती है ?
 

Michael Lipson is a teacher and author. Excerpt above from his book, Stairway to Surprise.


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