"नम्रता"
-लोरेंज़े सील के द्वारा ,
डिक्शनरी परिभाषा के अनुसार नम्रता का अर्थ है, “ अपने आप की अहमियत के बारे में साधारण एवं नीची सोच “।इस से मुझे ऐसा लगता था कि नम्रता शायद किसी तरह से मेरी कार्य क्षमताओं से सम्बंधित है,और नम्र होने का मतलब है अपने आप को नीचे ही रखना।
कई बार , मेरे समक्ष ऐसे समझाने वाले कथन आये जहाँ लोगों ने नम्रता के जीवन सुधार देने वाले अर्थ के बारे में बताया।हालाँकि मैं इस विचार से अस्पष्ट तौर पर तो सहमत था पर उस अपने जीवन में उतारने में और जीवन में उसका अर्थ मिलाने में कामयाब नहीं हो पाता था।
मेरे जीवन में नम्रता कि पहली पहचान कुछ वर्ष पूर्व हुई जब मैं एक दस दिवसीय मौन कार्यशाला में गया।ध्यान बैठकों के बीच में , मैं एक व्यक्ति के बारे में मनन करता रहा जो मुझे खीज पैदा करा देता था , और मैं अपनी झुंझलाहट के मूल कारण को समझने कि कोशिश करता रहा। किसी क्षण में मुझे आविर्भाव हुआ और उसने मेरे, उसके बाद के, जीवन को काफी प्रभावित किया है।
मैंने पाया कि मैं इस बात से झुझुला जाता था कि वो व्यक्ति एक ऐसे विषय के प्रति जोर लगाता है , जिसके बारे में, मैं बहुत मजबूती से जुड़ा था , पर अंत में जिसके प्रति मुझे अनिश्चितता अनुभव हुई। सही अर्थ में देखे तो, उस विषय के बारे मेरी स्थिति एक अनजान समझ वाली थी। मेरा झुझलाहट भरा बर्ताव शायद उस स्थिति से अपने आप को बचाने का तरीका था। जैसे ही मैंने ये माना कि मेरा ज्ञान सिमित है , और मैंने अपने इस कम ज्ञान को सहर्ष अपना लिया , मेरा बर्ताव अपने आप को बचाने से बदल कर, खुलेपन एवं उत्सुकता की ओर बढ़ गया।मुझे शायद उस वक़्त इस बात का एहसास नहीं हुआ, पर वो क्षण मेरे जीवन में नम्रता का मेरा पहला अनुभव था।
मेरे लिये , नम्रता का आगमन इस बात की समझ से आया है कि अहम्, किस तरह, सूक्ष्म तरीकों से मेरे जीवन में प्रवेश कर जाता है। ये मेरा अहम् है जो मुझे समझाता है कि मुझे हर वक़्त सही होने की जरूरत है, अपने जीवन के प्रति दृष्टिकोण को दूसरों पे प्रकट करने की आवश्यकता है , और जो भी मैं निर्णय एवं प्रवृति औरों के लिए अपने साथ हर वक़्त रखता हूँ , वो सही हैं।अहम् एक फ़िल्टर बन जाता मेरे बनाये हुए अपने अस्तित्व एवं जो जीवन के वास्तविक अनुभव हैं , के बीच में|
जेन बौध धर्मं मैं एक धारणा है “ शुरुआती मन” – एक ऐसी स्थिति जहाँ हम हर क्षण को ऐसे जीते हैं जैसे पहली बार उसे अनुभव कर रहे हों। मेरे लिए , नम्रता इस तरह की स्थिति की मूल कोशिश है, और यह भी संज्ञान कि मैं इस प्रकार की स्थिति की पहुँच से अपने को कितना दूर पाता हूँ।फिर भी मैं इस पहचान को ही नम्रता का मूल आधार मानता हूँ,- कि इस बात से ज्यादा क्या अहंकार हो सकता है मैं अपने इंसानी चोले में निर्णायक दृष्टी एवं भेद भाव से मुक्त हो सकता हूँ ?
इस अनुभव का विरोधाभास ये है कि हालाँकि इसने मुझे निर्णायक दृष्टि एवं अपने इर्द गिर्द जीवन के बीच में दूरी बनाने में मदद की है, इसने मुझे अपने आपको “ जैसा भी हूँ “ अपनाने में मदद की है, अपने सारे जीवन के प्रति दृष्टिकोणों के बावजूद।
मैंने इस अभ्यास को हमेशा अपने से दूर पाया है | जैसे ही मुझे लगता है –आह मैंने इस पा लिया है – उसी क्षण मुझे अपने जीवन में ऐसा क्षेत्र दिखा जिसने मुझे आपने आप में नम्रता की कमी को दिखाया | मेरा अनुभव सूक्ष्म भी था और विरोधाभासी भी। नम्रता कुछ ऐसी चीज़ नहीं जो मैंने पा ली है।इसके विपरीत जो मैंने पाया है वो है अपने अहम के प्रति हर वक़्त की जागरूकता। उसने मुझे इस दुनिया को स्पष्ट रूप से अनुभव करने की संभावनाओं के लिए खोल दिया है|
मैं जीवन की विशालता का कैसे अनुमान लगा सकता हूँ, जब मैं निरंतर अपने खुद की मान्यताओं को अपने अनुभव पे थोपने मैं लगा हूँ ? मेरी तृष्णा, मेरे भय, और मेरे पूर्व के अनुमान,वास्तविकता में जो है, उसे ढक देते हैं।वे उस अनुभव को छोटा बना देते हैं।वे उस अनुभव को ऐसा बना देते हैं जो मेरी धारणा एवं मेरी “आरामदायक स्थिति “ के अन्दर समा जाये।
इस सूक्ष्म भेद का ये महत्व निकलता है ये संकीर्णता मुझे में नहीं है।ये तो सिर्फ वो फ़िल्टर है जिसके माध्यम से मैं हर अनुभव से तौलता हूँ।और बिना उस फ़िल्टर के “ मैं “ कौन हूँ? इस आशय से पूर्व में बताये गए डिक्शनरी मायने को एक बिलकुल नया आयाम मिल जाता है। ये दुनिया के प्रति मेरी मान्यताओं पर सवाल उठाता है, न कि मेरे पे।पर ये मेरे आतंरिक अस्तित्व की जानकारी का एक नया रास्ता खोल देता है।
दिलचस्प बात ये है कि नम्रता एक लातिनी शब्द “ humus “ से निकलता है जिसका अर्थ है जमीनी। इसका वास्तविक महत्व है मानवता अथवा मानव के गुण।
जब मैं इस अनुभव की विभिन्न परतों को निरंतर खोलता रहता हूँ, तो मुझे यह अचम्भा होता है कि कोई कैसे नम्रता सीख या सीखा सकता है। क्या यह संभव है कि किसी अन्य में कोई सही नम्रता की जागरूकता को जगा सकता है?
एक गाथा है एक गुरु एवं उसके शिष्य की।गुरु शिष्य को अनगिनत छोटे छोटे कार्यों में लगाता है जबकि शिष्य झुन्झुला जाता है क्रोध में क्योंकि उसे इंतज़ार है गुरु की कोई महत्वपूर्ण बात बताने का या उसके हिसाब से “महत्वपूर्ण “ बात सुनने का।पर शायद यहाँ गुरु की ये ही सीख है कि छोटे छोटे कार्य ही वो अवरोध समाप्त करते हैं , उस चीज़ को पाने के लिए जो शायद सीधे ही या खुद ही अनुभव किया जा सकता है|
मनन के लिए मूल प्रश्न ; आप इस धारणा से कैसा नाता रखते हैं कि हम शायद अपनी नम्रता के प्रति जागरूकता के विपरीत अपने अहंकार के प्रति एक अनंत जागरूकता तो फिर भी पा सकते हैं। क्या आप एक निजी कहानी साझा कर सकते हैं जब आपने दुनिया को ज्यादा स्पष्ट तरीके से अनुभव किया हो बिना अपनी मान्यताओं को उस अनुभव पे थोपे बिना ? आपको अनुभव को सीधे, बिना उस पर अपने विचार थोपे हुए , पाने में किस चीज़ से मदद मिलती है?