“रहस्यवाद की ओर मुड़ने के लिए तीन सहारे “
-मार्टिन आयलवर्ड के द्वारा
गैर-वैचारिक जागरूकता के लिए तीन मूलभूत सहारे हैं। ये तीन सहारे कई मायनों में स्पष्ट हैं, परंतु शायद उनकी सादगी उनकी असाधारण गहराई को छुपा देती है। अपने व्यक्तिगत अभ्यास के पिछले तीस वर्षों में, मैंने पाया है कि ये तीन तत्व लगातार अपनी क्षमता और संभावना को प्रकट करते हैं।
पहला गैर-वैचारिक सहारा समाविष्ट उपस्थिति है। समाविष्ट उपस्थिति कल्पना में खो जाने की प्रवृत्ति की भरपाई करने का एक तरीका है। इस अभ्यास के लिए हमें अपने भीतर से सुनने की आवश्यकता है, अपने कानों से नहीं, अपने दिमाग से नहीं, बल्कि अपने अंतर से सुनें। जब आप अभी यहां बैठे हैं, जब आप इस अध्याय को पढ़ रहे हैं और उस पर विचार कर रहे हैं, तो अपने आप को अपनी संपूर्ण संवेदी जागरूकता के साथ भीतर से सुनने दें। अपने आप को यहां होने का अहसास महसूस करने दें - आपके पैर जमीन को कैसे छूते हैं, देखें , महसूस करें ,आपकी रीढ़ की हड्डी की लंबाई।
इसका मतलब है कि यदि कोई तनाव पैटर्न बना हो, उसको ध्यान से देखना । हमारे जबड़े, माथे या कंधों में अकसर किसी प्रकार के अचेतन अभ्यस्त तनाव पैटर्न के कारण तनाव होता है। समाविष्ट उपस्थिति हमारे तनावों से शारीरिक रूप से परिचित होने का का एक तरीका है; उस प्रकार के दृष्टिकोण, मानसिक स्थिति और भावनात्मक पैटर्न को समझने के लिए, जो उन तनावों को जारी रखते हैं; और फिर उन्हें नरम करना। समाविष्ट उपस्थिति नरम होने, व्यवस्थित होने, शांत होने और यहां जो कुछ भी है उसके लिए ग्रहणशील होने का निमंत्रण है। जब हम अपनी आदतन सोचने की पैटर्न से प्रेरित होते हैं, तो हम उन तनावों की पकड़ में आ जाते हैं। जबकि मुक्त शरीर एक तनावमुक्त शरीर है, एक खुला हुआ शरीर है। हमारे सभी न जानने का आधार, जानने के हमारे सभी गहरे, मुक्त तरीकों का आधार, समाविष्ट उपस्थिति है।
गैर-वैचारिक जागरूकता के लिए दूसरा सहायक सहारा हमारे ध्यान को भटकाने वाले विभिन्न रास्तों को छोड़ने की क्षमता और इच्छा का निर्माण करना है। दिमाग का सोचना सामान्य बात है. दिमाग के लिए सोचना उतना ही सामान्य है जितना कि आँखों के लिए देखना और कानों के लिए सुनना। सोचना दिमाग का काम है, इसलिए वह विचार उत्पन्न करता रहेगा। आइए उससे लड़ें नहीं।
ऐसे समय में जब हमें पता चलता है कि हमारा ध्यान भटक गया है, तो हम अक्सर निराश हो जाते हैं। "ओह, नहीं, मैं फिर से विचलित हो गया हूँ।" या हम सोचते हैं, "ओह, मेरा ध्यान भटक गया है। मुझे जागरूक होने के लिए वापस जाना चाहिए, लेकिन शायद बस एक मिनट में... मुझे यह विचार पसंद आ रहा है। जब आप देखें कि आपका ध्यान ख़यालों में चला गया है, किसी विचार या छवि में लीन हो गया है, तो विचार को छोड़ दें। बिना निर्णय, दोषारोपण या नाटक के, बस इसे छोड़ दें। फिर, समाविष्ट उपस्थिति में लौटना अधिक संभव और सरल हो जाता है। जागरूकता हमारे सभी मानसिक पूर्वाग्रहों से कहीं अधिक शक्तिशाली,तेजस्वी और तात्कालिक है। इसलिए जब आप स्वयं को किसी विचार में फंसा हुआ पाएं, तो उस पर ध्यान दें, और ध्यान में आने पर, उसे हटाएं, हटाएं, हटाएं। जितना अधिक आप अपने सामान्यत: सोचने के तरीक़ों से दूर होते हैं, उतना ही अधिक आप अपने आप को, न जानने वाले, नए और अपरिचित तरीक़ों के नज़दीक लाते हैं।
गैर-वैचारिक जागरूकता के लिए तीसरा महत्वपूर्ण सहारा है न जानने की इच्छा।जानी पहचानी बात को दूर रखने की इच्छा. प्रत्येक अनुभव को नए तरीक़े से करने की इच्छा। उदाहरण के लिए, हम अपने अंतर से सुनने, ज़मीन पर अपने पैरों के संपर्क को महसूस करने और उत्पन्न होने वाले तनाव पैटर्न को नोटिस करने के बारे में बात कर रहे हैं। हम उन अनुभवों को नियमित अभ्यस्त प्रयास के माध्यम से आसानी से फ़िल्टर कर सकते हैं: ये मेरे पैर हैं, ये मेरे कंधे हैं, यहाँ कुछ तनाव है, मुझे इसे जाने देना चाहिए।शायद वो वाली जानी पहचानी कहानी दिमाग़ में चल रही होगी। कोई बात नहीं। लेकिन सोचिए, क्या हाल होगा यदि आप अपने हाथ और पैर, गर्म और ठंडा, आरामदायक या असुविधाजनक के प्रत्यक्ष अनुभव पर भरोसा नहीं करते?
अगर आप प्रत्यक्ष अनुभव को महसूस नहीं करते तो आप रहस्यमयता का सिर्फ़ आभास ही पा सकते हैं। अभी यहाँ जो है वह सिर्फ़ हाथ-पैर और धड़ नहीं है। अभी यहाँ जो है वह जीवंतता है। मेरे पुराने आदतन विचार मुझे बताएंगे कि मेरा शरीर क्या है, मेरा शरीर कहां है और मेरा शरीर कैसा है। लेकिन इस तरह का नया संपर्क, यह गैर-वैचारिक संपर्क, मुझे अनुभव की निरंतर जगमगाहट दिखाएगा। मेरे सामन्य विचार मुझे बताएंगे कि मेरा शरीर कहां समाप्त होता है और दुनिया कहां शुरू होती है, लेकिन एक अपरिचित तरीक़े से अनुभव से मिलने की इच्छा मुझे बताती है कि अनुभव चिरस्थायी है। उसी तरह से संवेदनाएँ - जिन्हें मैं आंतरिक अनुभव कहता हूँ - यहाँ जागरूकता में होती हैं, और ध्वनियाँ - या बाहरी अनुभव भी। गैर-वैचारिक उपस्थिति के लिए यह तीसरा सहारा अनुभव जागरूकता में बना रहे इस बारे में है। यह जागरूकता को प्रमुख आधार, संदर्भ बिंदु और अनुभव का घड़ा बनाने के बारे में है। और बाकी सभी कुछ - आंतरिक या बाहरी, सुखद या अप्रिय, अच्छा या बुरा, ध्यान के लिए उपयुक्त या ध्यान के लिए अनुपयुक्त - वह सब को बस एक तरफ छोड़ा जा सकता है।
इस अभ्यास के माध्यम से, हम खुद को अपरिचित का स्वाद चखने, अनुभव को नए सिरे से चखने का मौका देते हैं। उस नयेपन में, हम अधिक गहराई, अधिक विस्तार , अधिक अंतर्दृष्टि, और जो घटित होता है उसको पूरी तरह और मुक्त रूप से देखने की अधिक क्षमता पाते हैं। और इस प्रकार, हमारा अभ्यास गहरा होता जाता है।
मनन के लिए मूल प्रश्न:
आपके लिए गैर-वैचारिक जागरूकता का क्या अर्थ है?
क्या आप उस समय की कोई व्यक्तिगत कहानी साझा कर सकते हैं जब आपने तीन सहायक सहारों में से एक के माध्यम से गैर-वैचारिक जागरूकता का अनुभव किया: पहला,समाविष्ट उपस्थिति, दूसरा,उन विभिन्न रास्तों को छोड़ देने की इच्छा, जो हमें भटका देते हैं, और तीसरा न जानने की इच्छा।
आपको रहस्यवाद के लिए ग्रहणशील होने में किससे मदद मिलती है ?