दो प्रकार से दिल टूटना , द्वारा पार्कर पामर
एक अनुयायी ने रब्बी से पुछा” तोराह हमें “ ये वचन अपने ह्रदय के ऊपर रखने को “ क्यों कहती है? वो इन धार्मिक वचनों को हमारे ह्रदय के अंदर रखने को क्यों नहीं कहती? रब्बी उत्तर देते हैं” इसका कारण यह है कि हम अमूमन जैसे हैं, उसमे हम हमारा ह्रदय बंद ही रखते हैं, और इस कारण हम उन धार्मिक वचनों को ह्रदय के अंदर नहीं रख सकते|इस कारण हम उनको अपने ह्रदय के ऊपर रखते हैं| और वो वहां तब तक रहते हैं, जबतक कि एक दिन हमारा ह्रदय टूट के खुल जाता है और ये वचन ह्रदय में उतर जाते हैं| एक हसिदिक गाथा
दिल टूटना मनुष्य होने के ही कार्य छेत्र का हिस्सा है| जब हम प्यार और विश्वास में हार जाते हैं, जब हमारे लिए बहुत मायने वाली चीज़ भी बेकार हो जाती है, जब एक सपना हमारी पहुँच के बाहर चला जाता है, जब एक अत्यंत कष्टदायी बीमारी से हम ग्रसित हो जाते हैं, या जब हमारा कोई अत्यंत करीबी रिश्तेदार की मृत्यु हो जाती है, उस वक़्त हमारा दिल टूट जाता है एवं हम दुख भोगते हैं|
हम अपनी पीड़ा के साथ क्या कर सकते हैं ? हम कैसे उसे अपने में समा के रख सकते हैं और कैसे उससे व्यवहार कर सकते हैं ? हम उस पीड़ा की शक्ति को कैसे एक नए जीवन के तरफ़ मोड़ सकते हैं? हम इन प्रश्नों का उत्तर किस प्रकार से देते हैं यह बहुत अहमियत रखता है क्योंकि अमूमन इस प्रकार की पीड़ा को, नहीं समझ पाने के अभाव में, हम हिंसा पे उत्तारु हो जाते हैं|
हिंसा सिर्फ शरिरिक हानि तक ही सीमित नहीं रहती है|हम हिंसा उस प्रत्येक समय करते हैं, जब हम मानवीय अस्मिता की पवित्रता का उल्लंघन करते हैं, हमारी अपनी अस्मिता , या किसी अन्य व्यक्ति की|
बहुत बार हम अपनी पीड़ा के कष्ट को उन तरीकों से सुन्न करने की कोशिश करते हैं, जिनसे हमारी आत्मा का अपमान होता है| हम शोर एवं उन्माद की ओर मुड़ जाते है, बिना रुके लतपूर्ण कार्य करने लग जाते हैं, या ऐसे पदार्थों के कूसेवन से अपनी चेतना शुन्य करने में लग जाते हैं, जिससे हम अपनी पीड़ा को और गहरा कर लेते हैं| कई बार हम इस मंशा से भी औरों पे हिंसा कर रहे होते हैं, जैसे हम मान रहे हैं कि दूसरों को पीड़ा देने से हमारी अपनी पीड़ा कम हो जाएगी| नस्लभेद, लिंग के आधार पे भेद भाव, समलैंगिकता के प्रति घृणा, गरीबों के प्रति उपेक्षा इत्यादि इसी विक्षिप्त विचारधारा के ही क्रूर परिणाम हैं| विभिन्न देश भी अपनी पीड़ा का हिंसा से ही जवाब देते हैं|
हाँ, हिंसा तभी होती है जब हमें अपने दुखों से बर्ताव का कोई अन्य तरीका नहीं सूझता |पर हम अपने दुखों की शक्ति का प्रयोग किसी और प्रकार से जीने की ओर कर सकते हैं, और ये हमेशा होता रहता है|
हमें उन लोगों के बारे में पता हैं, जिन्होंने जीवन में अपने अत्यंत महत्वपूर्ण और निकट व्यक्ति को खोया है| शुरू में वे शोक में डूब जाते हैं, और उन्हें निश्चित लगता हैं कि जीवन अब इसके आगे जीने लायक नहीं रह जायेगा| पर एक प्रकार के अध्यात्मिक ज्ञान या मिश्रण से उनमे परिवर्तन आता है और उन्हें महसूस होने लगता है कि उनके ह्रदय में व्यापकता आई है और उनके अंदर करुणा का स्त्रोत्र बहने लगा है| उनमे दूसरों के दर्द एवं ख़ुशी को महसूस करने की छमता बढ़ गई है, और यह उनके अपने नुक्सान के वजह से नहीं,बल्कि उसीके के कारण से है |
दुःख हमारे ह्रदय के टुकड़े कर देते हैं, पर ह्रदय के टूटने के दो बिलकुल अलग तरीके हैं| एक तरफ़ एक ऐसा नाजुक परन्तु कठोर ह्रदय होता है जो टूट के हजारों टुकड़ों में बिखर जाता है, और उसके विस्फोट से हम स्वयं गर्त में गिर जाते हैं, और कभी कभी अपनी पीड़ा के स्त्रोत्र पे ही शस्त्रीय प्रहार करने लग जाते हैं|दूसरी ओर एक कोमल ह्रदय है, जो टूटता नहीं वरन खुल जाता है, और अपने आप में विभिन्न प्रकार के प्रेम को विकसित करने की क्षमता भर लेता है|यह कोमल ह्रदय ही है जो पीड़ा एवं दुःख को इस तरह अपनाता है, जिससे नए प्रकार के जीने का रास्ता खुल जाता है|
मैं ऐसा क्या कर सकता हूं जिससे मेरा कठोर ह्रदय कोमल बन जाए, उस प्रकार से जैसे एक धावक चोट से बचने के लिए अपने शरीर को ढीला कर लेता है ? यह प्रश्न मैं अपने आप से प्रतिदिन पूछता हूं| नियमित अभ्यास से ऐसा कम संभव होगा कि मेरा ह्रदय नुकीले टूकड़ों में टूट जाए , या टूट के किसी अस्त्र की तरह हो जाए, और ज्यादा सम्भावना यह होगी कि मेरा ह्रदय खुल के एक विस्तारपूर्ण रूप अपना ले|
ह्रदय को कोमल बनाने के विभिन्न तरीके हैं , पर सभी तरीके एक ही बात पे आ जाते हैं “ अपने में ले लें , सभी घटनाओं को अपने में समा लें|
मेरे ह्रदय में हर उस वक़्त फैलाव आता है, जब मैं जीवन के छोटे छोटे घावों को, बिना सुन्न करने की दवा के, सहन कर लेता हूं : जैसे की मित्रता या रिश्तों में कडवाहट आ जाना, एक नीचतापूर्ण व्यक्ति का मेरे कार्य पे टिपण्णी करना, किसी ऐसे कार्य में विफलता, जो मेरे लिए महत्व पूर्ण था| मैं अपने ह्रदय की कोमलता का अभ्यास जीवन की छोटी छोटी घटनाओं में ख़ुशी ढूँढ के भी कर सकता हूं: किसी अंजान व्यक्ति का मेरे प्रति छोटा सा दयापूर्ण बर्ताव, कहीं दूरी में रेल की ध्वनि जो बचपन की यादों को ताज़ा कर दे, और एक छोटे बच्चे की किलकारी जिसके साथ में लुक्का छुप्पी का खेल खेल रहा होता हूं| हर चीज़ को अपने अंदर समा लेना , चाहे वो अच्छी बात हो (सुखदायक ) या बुरी बात हो (दुखदायक), यह एक ऐसा अभ्यास है जिससेधीरे धीरे मेरा बंद मुट्ठी रुपी ह्रदय ,खुल के, खुले हाथ का स्वरुप ले लेगा|
मनन के लिए बीज प्रश्न : इस धारणा को आप कैसा मानते हैं कि ह्रदय को कोमल बनाने के लिए हमें सभी चीज़ों को अंदर समा लेना होता है? क्या आप एक ऐसी निजी कहानी साझा कर सकते हैं जब आपने जीवन के विभिन्न दुखों को बिना सुन्न करने वाली दवा के अपनाया हो? आप को हर चीज़ , चाहे वो सुखदायक हो या दुखदायक , अपने में समा लेने में किस चीज़ से सहायता मिलती है?