जैसे रास्ता खुलता जाए द्वारा कैरी न्यूकोम्बर
अभी कुछ दिनों से में सोच रही हूँ “क्वेकर” Quaker सम्प्रदाय की प्रचलित कहावत के बारे में “ जैसे रास्ता खुलता जाए, बढ़ो|”
जैसे रास्ता खुलता जाए, बढ़ो, या जैसे रास्ता खुलता जाए , एक तरह के जीवन को बढ़ावा देता है जिसमे हम किसी प्रश्न या किसी निर्णय के साथ , पूर्ण इच्छा एवं पूर्ण मन के साथ रह कर, जीवन को जीते हैं, बजाय इसके कि हम दबाव या भय में आकर उतावलेपन में किसी दुस्साहसी कार्य में कूद पड़ें| पर यह विचार आज की सभ्यता के विपरीत लगता है जो जल्दी एवं निर्णायक निर्णय लेने की क्षमता को मजबूत एवं अपेक्षित मानती है| पर जैसे रास्ता खुलता जाए की धारणा में , यहाँ तक की उन निर्णयों में भी जो कभी कभी समय के संवेदनशील होते हैं, एक छोटा से विराम रह सकता है, एक तरीका जिससे हम देखने के लिए रूक सकें कि हमारे ह्रदय में क्या चल रहा है , और यह की हमारी आतंरिक सोच क्या कह रही है|
मेरे लिए, यह कहावत ( जैसे रास्ता खुलता जाए ) इशारा करती है समय को एक दैविक प्रसाद के रूप में अनुभव करने को | यह इशारा करती है समय को एक ऐसी स्थिति के रूप में अनुभव करने को जिससे हमारी आतंरिक अपस्थिति से और बढाया जा सकता है| उस विराम में , मैं यह देखने में ज्यादा सक्षम हूँ कि क्या वो अन्दर में सही लग रहा है, अथवा उस बात पे ध्यान दे सकूं औए एक अच्छा प्रश्न कर सकूं, जब अन्दर में कुछ सही नहीं लग रहा | इस विराम की धारणा के प्रति झुकाव एक निष्क्रियता को बुलावा नहीं है, इसके विपरीत यह एक प्रकार से जागरूकता से अपने ह्रदय के अन्दर चल रहे भाव को देखने की धारणा है| और कभी कभी तो, जो सबसे कठिन बात है, वो कूद के “ कार्य करना “ अथवा उसको बिगड़ी चीज़ को सही कर देना नहीं है , पर पूर्ण जागरूकता के साथ उस प्रश्न के साथ रहना है , अपने आप को समय देना उस बात के साथ नैठने का जो अस्पष्ट है , अनिश्चित है ,अथवा असुविधाजनक है |
संगीत इस्तेमाल करता है , ध्वनि एवं ख़ामोशी , दोनों को जरूरत अनुसार | अगर संगीत विराम का न इस्तेमाल करे तो वो कोलाहल एवं कटु स्वर बन जायेगा| संगीत में, और मेरा विश्वास है जीवन में भी, विराम लेना कर्णमयता है और जीवन का एक महत्वपूर्ण अभिप्राय है| इसके लिए इस कहावत “ जैसे रात खुलता जाए “ के पीछे के अभ्यास को मैंने बहुत सराहा है |
मुझे याद है कि में अपने संगीत के career के बीच में , मैं काफी हतोत्साहित हो गयी थी इस संगीत के व्यापार से| मैंने तय किया कि में विश्वविद्यालय में जा कर धर्मशास्त्र एवं मनोविज्ञान की शिक्षा ग्रहण करूं | मैंने काफी प्रतिष्ठित seminary में आवेदन किया और मैं ली गयी| पर सीधे कक्षाओं में जाने के बजाय मैंने लगभग एक वर्ष निकाल दिया कोर्स शुरू होने तक| मैंने उस वर्ष में यह पता लगाने की कोशिश की किमैं संगीत क्यों करती हूँ और संगीत मेरे जीवन में क्या दे सकता है| इसी दौरान मैंने एक लाभार्थ संगीत एल्बम भी बनाया जिसकी काफी प्रशंसा हुई , साथ ही ऐसे दो प्रोजेक्ट भी करे जो संगीत को सेवा के रूप पर केन्द्रित थे और संगीत को एक दुःख से उभरने का जरिया मानते थे और संगीत के आध्यात्मिक अनुभव पर केन्द्रित थे | पर उस साल के अंत में विश्वविद्यालय जाना उतना नहीं जमा क्योंकि शायद “रास्ता नहीं खुला था” | मुझे नहीं पता था कि आगे का रास्ता बिलकुल कैसा नज़र आएगा पर यह मुझे एहसास आने लगा था कि में कैसे जान बूझ कर संगीत की ओर झुक सकती हूँ और संगीत और रचनात्मक विद्या मेरे लिए क्या मायने रखती है| मैं कृतज्ञ हूँ कि में अपने फैसले को एक वर्ष दिया और उससे मेरे जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव आया| चूँकि वो रात नहीं खुला , इसलिए मैं उस राह पे नहीं रह पाई |
पार्कर पाल्मर ने अपनी बेहतरीन पुस्तक “ अपनी जिंदगी को बोलने दें” (Let your life speak ) में एक कहानी का जिक्र किया है जिसमे एक वृद्ध क्वेकर Quaker संप्रदाय की महिला ने उन्हें एक बहुत ही महत्वपूर्ण समय पे समझाया था “ एक बंद दरवाज़ा और एक खुला दरवाज़ा , एक ही चीज़ हैं| वो दोनों ही आपको किसी दिशा में भेजते हैं” | “जैसे रास्ते खुलते जाएँ “ में बढ़ने का मायने है की जीवन में एक दैविक गति है|
जी हाँ, यह ब्रह्माण्ड गर्म होता जा रहा है, युद्ध एवं घोर बेइंसाफी प्रभावी है, और लोकतंत्र खतरे में है | पर जब भी में विराम ले लेता हूँ , तब में आगे बढ़ सकता हूँ प्रेम में सम्मिलित , न कि भय में | मैं ये भी मानती हूँ कि जब भी मैं ऐसे निर्णय में कूद पड़ी हूँ, जो मुझे ह्रदय की गहराई में तो उचित नहीं लगता था , पर जिसमे मुझे भय या घबराहट के वजह से उतरना पड़ा, अपने अहम् एवं बेचैनी में उतरना पड़ा , वो कभी भी सही नहीं जा पाया|
यह एक बहुत ही साधारण कहावत है “ जैसे रास्ता खुलता जाए”| पर उसे जीना, हर वक़्त ,उतना आसान नहीं है | पर उस आतंरिक विराम की प्रज्ञा काफी निरंतर रही है |
मनन के लिए मूल प्रश्न : आप इस कहावत “ जैसे रास्ता खुलता जाया” के अनुरूप जीवन जीने की धारणा को कैसा मानते हैं ? क्या आप अपनी एक निजी कहानी उस समय की साझा कर सकते हैं, जब आपने जल्दबाजी में कूदने के बजाय “ रास्ते के खुलने ‘ का इंतज़ार किया? आपको रास्ता खुलने का इंतज़ार करने में किस चीज़ से मदद मिलती है?