Death Connects Us To Life


Image of the Weekमृत्यु हमें जीवन से जोड़ती है
- सौमिक राहा

बचपन में मिली जीवन की अनित्यता और वैराग्य की सीख का उपयोग करने का मौका, एक के बाद एक मेरे दादी और दादा की मृत्यु पर करने को मिला। मैंने अपने आप से कहा के केवल शरीर की मृत्यु हुई है। उनकी आत्माएं अमर हैं, इसलिए शोक करने का कोई कारण नहीं है।

फिर सालों बाद मुझे एहसास हुआ एक मैंने दादी - दादा के प्रति अपने प्रेम को दबा दिया था। मुझे उन भावनाओं को प्रमाणिकता से अभव्यक्त होने देना होगा। अपने आप को अभिव्यक्ति की जगह न देकर मैंने अपने को अपनी ही भावनाओ के प्रति स्तब्ध कर दिया था।

कई वर्षों तक भावनात्मक बोझ ढ़ोने के बाद मुझे एहसास हुआ के मृत्यु हमें जीवन से जोड़ती है। अपने जीवन से। यह न सिर्फ जीवन की अनित्यता और अपने जीवन के उद्देश्य को याद करने का मौका है। साथ ही शोक करने की प्रक्रिया में प्रेम और कृतज्ञता को पूर्णता से अनुभव करने का मौका है।

शायद यही कारण रहा होगा के प्राचीन सभ्यताओं में, स्वर्गवासी व्यक्ति से हमारे सम्बन्ध की गहराई के अनुपात में, उतने समय तक प्रति दिन के सामान्य काम न करने की व्यवस्था थी। इस समय में, हमें अपने समुदाय से पूरा सहयोग मिलता था एक ऐसी जगह बनाने में जहाँ हम अपनी भावनाओ से पूर्णता में मिल सकते थे। इस तरह हमें मौका मिलता था, अपने प्रिय-जान के पारगमन को वास्तव में स्वीकार करने का, न केवल बौद्धिक रूप से स्वीकार करने का।

हम किस प्रकार के स्वीकार पे पहुंचे हैं ये इस बात से पता चलता है के हम पुर्णता का अनुभव कर रहे हैं या अपने शोक में टुकड़े-टुकड़े हो गए हैं। जो अब हमारे साथ नहीं हैं उनके प्रति हमारे अंदर उभरने वाली हर भावना के सच्चे स्वीकार से पूर्णता का अनुभव होता है। जब हम प्रिय-जन की मृत्यु के दुःख को महसूस करने से डरते हैं तब बिखर जाते हैं। बिखराव में हम उस प्रेम को हर जगज ढूंढ़ते हैं, सिवाय उस जगह के जहाँ हम उसे पा सकते हैं - अपने हृदय में।

दूसरी तरफ पूर्णता हमें दिवंगत के प्रति हमारे प्रेम के सार को महसूस करने में मदद करती हैं और उस प्रेम को हमारे अस्तित्व का अभिन्न अंग बना देती है। वह प्रेम हमें अपनी भावनाओ के प्रति भय से मुक्त करता है और हमें इस आनंद और कृतज्ञता के भाव में स्थिर करता है के एक दूसरे जीवन ने हमें छुआ, चाहे थोड़े ही समय के लिए।

मनन के लिए प्रश्न :
शोक करना, अपनी भावनाओ से मिलने की जगह बनाना है - इस भाव को आप कैसे समझते हैं?
क्या आप किसी ऐसे समय का अपना निजी अनुभव बाँट सकते हैं जब प्रमाणिकता और पूर्णता से शोक करके आपने आनंद और पूर्णता का अनुभव किया?
अपनी भावनाओ को पूरी तरफ स्वीकार करते हुए अपने दुःख से न टूटने में आपको क्या मदद करता हैं?

लेखक द्वारा लिखा गया एक और लेख निचे दी हुई कड़ी पर पढ़ा जा सकता है :
https://medium.com/voluntary-social-systems
 

by Somik Raha.


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