Does Life Have A Purpose?


Image of the Weekक्या जीवन का कोई उद्देश्य है ?
- जे. कृष्णामूर्ति

प्रश्नकर्ता:
आप क्यों मानते हैं के जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है? अगर जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है, तब व्यक्तिगत जीवन, भले ही शुद्ध स्वरुप में हो, उसका भी कोई उद्देश्य नहीं होगा; क्यूँकि व्यक्तिगत पूर्णता तभी सार्थक होगी जब सृष्टि की रचना का कोई उद्देश्य हो।

कृष्णामूर्ति:
जीवन, जिससे मेरा मतलब है, वह जीवन जो सत्य है, जिसमें कोई विभाजन नहीं है, जिसमें सभी चीज़ें समाहित हैं, जिस पर सभी निर्भर हैं, जिसमें सभी का अस्तित्व है, उस जीवन का कोई उस्देश्य नहीं है, वह बस है।

वह जो है, उसका कोई उद्देश्य नहीं हो सकता, क्यूंकि उसमें सब समाहित है, उसमें समय और स्थान दोनों का अस्तित्व है, और व्यक्तिगत अस्तित्व भी, पर वह व्यक्तिगत अस्तित्व जिसने अभी पूर्णता का अनुभव नहीं किया, उसका उद्देश्य है। वह उद्देश्य है उस पूर्णता का अनुभव करना।

वैयक्तिकता अपने आप में उद्देश्य नहीं हो सकती क्यूंकि वैयक्तिकता अपूर्णता है। उस पर अपूर्णता का भोझ है; और इसलिए उस वैयक्तिकता का चाहे जितना विस्तार किया जाए, वो वैयक्तिकता ही रहेगी। अपूर्णता को विस्तार या गुणा करके पूर्णता में परिवर्तित नहीं किया जा सकता।

इसलिए व्यक्तिगत अस्तित्वा का असली उद्देश्य सृष्टि की एकता का अनुभव करना है, इस सत्य का जिसमें वस्तु और विषय का, "आप " और "मै" का कोई भेद नहीं है, जिसमें कोई प्रतिक्रिया नहीं है, बस केवल विशुद्ध अस्तित्व का सकारात्मक और सक्रिय भाव है। (जब मै "सकारात्मक" शब्द का उपयोग करता हूँ, तब मै उससे नकारात्मकता अलग नहीं करता)। यह जीवन इस मेज़ की हर चीज़ में है, जितना की सुसंस्कृत मनुष्य में।

पर वह व्यक्ति जिसमें अलगाव है, जिसमें विषय और वास्तु में भेद है, जिसमें विभाजन है, उसकी अपनी सीमा, अपनी अपूर्णता के कारण, उसे अपने आप को पूर्ण और भ्रष्ट न किया जा सके ऐसा बनना चाहिए।

इसलिए व्यक्तिगत अस्तित्व का उद्देश्य है, पर जीवन का नहीं।

मनन के लिए प्रश्न:
अपने आप को पूर्ण बनाने के सुझाव को आप कैसे समझते हैं?
क्या आप एक निजी अनुभव बाँट सकते हैं जब आपने हर वास्तु में जीवन का अनुभव किया हो?
सकारात्मकता के आपके विचार में नकारात्मकता को सम्मिलित करने में आपको क्या मदद करता है?


जे. कृष्णामूर्ति, १९३० में ओमेन, हॉलैंड में एक सभा को दिए गए भाषण में से
 

by J. Krishnamurti, from a gathering at Oomen, Holland, 1930


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