Transforming The Wandering Mind

Author
Ven. Master Miao Tsan
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Image of the Weekभटकते मन का परिवर्तन करना
- पूजनीय मास्टर मिआओ सान
अप्रैल ३०, २०१४
ध्यान उस प्रक्रिया को बदलना है जो हमारी आदतन बनी प्रवृत्तियों को स्थापित करती है। परिणामस्वरूप, आदतन बनी प्रवृत्तियों की स्थापना एक से विचारोँ के बार-बार दोहराने की वजह से होती है। अगर हम इन विचारों के पीछे दौड़ना बन्द कर सकें, और फ़िर उन्हें बनाने और बढ़ाने की प्रक्रिया को रोक सकें तो निर्माण की इस प्रक्रिया का पलटना हमें इस आदत से मुक्त करने लगता है। फिर हमारा मन वापिस अपने असली, पुण्य स्थान पर पहुँच जाएगा। क्योंकि भ्रम मन से ही उत्पन्न होता है, अत: मन की मूल पवित्रता को भ्रम निकाल कर ही पुनः प्राप्त किया जा सकता है। दुश्मन के खिलाफ दुश्मन के ही तरीके को लगाओ। ध्यान अभ्यस्त प्रवृत्तियों को खत्म करने का एक बहुत प्रभावी तरीका है। केंद्रित ध्यान के माध्यम से, ध्यान करने वाला लगातार भटकते हुए विचारोँ को छोडने लगता है। जब इन विचारों पर ध्यान देना बन्द कर दिया तो धीरे-धीरे वो अपनी शक्ति से वंचित हो जाएंगे।

साधक कभी कभी भटकते हुए विचारोँ को देखकर हैरान हो जाते हैं, और पूछते हैं, "मुझे ध्यान के दौरान इतने भटकते हुए विचार क्यों आते है?" बात यह है कि ध्यान भटकते हुए विचारों को जन्म नहीं देता। लेकिन, क्योंकि मन के पास पकड़ने के लिए कोई ठोस तथ्य नहीं है, तो अपने से बाहर की ओर की चीज़ों को खोजने की प्रवृत्ति, जो अभी भी सक्रिय है, वो अराजक, भटकते हुए विचारों के रूप में प्रकट हो जाएगी। [... ]

ध्यान के दौरान, मन बाहरी घटनाओं को नहीं समझ सकता, इसलिए वह "मैं" की चेतना के गहरे स्तर पर, पहले जो अज्ञात गतिविधियों थीं उनकी तरफ और अधिक जागरूक हो जाता है। यही कारण है कि ध्यान का निरंतर अभ्यास हमारे अंदर जागरूकता को जन्म देगा और उसे गहरा करेगा, और धीरे-धीरे भटकते विचार कम हो जाएंगे। उदाहरण के लिए जब हम कुछ दोस्तों या रिश्तों से खुद को दूर करना चाहते हैं तो उनके साथ बिताने के अवसरों और समय को हम बस कम करने लगते हैं, जब तक वो आखिर हमारे जीवन से गायब नहीं हो जाते। हमें भटकते हुए विचारों के साथ भी इसी तरह का बर्ताव करना चाहिए। धीरे-धीरे भटकते विचारों के पीछे भागने की आदत से हटने से, जब उनपर ध्यान नहीँ दिया जाएगा, वे खुद ही लुप्त हो जाएंगे। [... ]

विचारों को बदलना, भटकते हुए विचारों से परेशान हुए बिना, ध्यान की प्रक्रिया पर केन्द्रित रह पाना है। वो शक्ति जो आमतौर पर अचेत विचारों को दे दी जाती है, वो यहां सचेत तरीके का इस्तेमाल करने की ओर लगा दी जाती है। किसी भी साधना की नींव ऐसे तरीके का इस्तेमाल करना है जिससे बिखरे और भटकते हुए विचारों को केन्द्रित कर के "एक सूत्रीय मन बनाया जा सके। "

विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: आप अपने भटकते विचारों से दूरी बनाने से क्या समझते हैं? क्या आप अपना कोई व्यक्तिगत अनुभव बांटना चाहेंगे जब आपको अपने भटकते विचारोँ का बहुत गहराई से ज्ञान हुआ हो? मन को एक-सूत्रीय केन्द्रित करने के लिए आप को किन तरीकों से फायदा हुआ है?


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