Aliveness and Harmony

Author
Christopher Alexander
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Image of the Weekजीवंतता और सद्भाव
- क्रिस्टोफर अलेक्सेंडर

जब इंसान पूरे दिल से, अपनी तरह से, अपनी आंतरिक शक्ति के अनुसार जी रहा है, और वह जिस परिस्थति में है, उसके अनुसार, आसानी से काम कर सकता है, तब वह सजीव है।

[…] इस तरीके से सोचा जाए तो खुश रहना और जीवित रहना, लगभग एक ही बात है। हालाँकि, एक
इंसान जो जीवित है, वह हर समय ऐसे खुश नहीं होता कि जैसे उसे सुख का अहसास हो रहा हो; सुख और दुःख के अनुभव एक-दूसरे को संतुलन में रखते हैं।

इस मायने में, ज़िंदा होना कुछ शक्तियों या प्रवृत्तियों की कीमत पर दूसरी शक्तियों या प्रवृत्तियों को दबा देना नहीं है; यह तो जीवन की एक ऐसी अवस्था है जिसमें इंसान में पैदा होने वाली हर शक्ति को बाहर आने का मौका मिल सके; वह अपने अंदर उठने वाली सब शक्तियों के बीच संतुलन से रहता हो; वह अनोखा है जैसे कि उठती हुई शक्तियों रूप अनोखा है; वह शांत है, क्योंकि उसके जीवन में ऐसी कोई बाधाएं नहीं हैं जो सतह के नीचे उठने वाली शक्तियों को रास्ता न मिलने से बनती हैं, उसमें और उसके वातावरण में एकत्व है।

इस अवस्था पर सिर्फ अंदरूनी कार्य से नही पहुंचा जा सकता।

यह एक सोच है, कई बार काफी प्रचलित भी, कि इंसान को सिर्फ इस तरह से जीने के लिए सिर्फ आंतरिक कार्य करने की ज़रूरत है; कि हर इंसान अपनी परेशानियों के लिए खुद ही ज़िम्मेदार है; और खुद को ठीक करने के लिए, उसे सिर्फ अपने आप को बदलने की ज़रूरत है। इस सीख का कुछ फायदा है, क्योंकि आदमी के लिए यह सोचना बहुत आसान है कि उसकी परेशानियों की वजह 'और लोग' हैं। लेकिन यह एक-तरफा और गलत विचार है जो ऐसी अहंकार भरी धारणा को हवा देता है कि इंसान आत्म-निर्भर है, और किसी भी खास चीज़ के लिए अपने वातावरण पर निर्भर नहीं है।

असल बात यह है कि इंसान इस हद तक अपने वातावरण से बना है, कि उसकी सामंजस्य की अवस्था पूरी तरह से उसके और उसके वातावरण में तालमेल होने पर निर्भर करती है।

कुछ तरह की भौतिक और सामजिक परिस्थितियां इंसान में जान डालने में सहायक होती हैं। कुछ उसके जीवन को बहुत मुश्किल बनाती है।

- क्रिस्टोफर अलेक्सेंडर, "निर्माण के अनंत तरीके" से

विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: आप इस मत से क्या समझते हैं कि जीवंतता की अवस्था पर सिर्फ आंतरिक कार्य से नहीं पहुंचा जा सकता? क्या आप अपने कोई दो व्यक्तिगत अनुभव बाँटना चाहेंगे, एक जब वातावरण से आपको मदद मिली हो, और दूसरा जब वातावरण ने आपको पूरी तरह से जी पाने में बाधा डाली हो? आप इस मत से क्या समझते हैं कि आपके सामंजस्य की अवस्था पूरी तरह से आपके और आपके वातावरण में तालमेल होने पर निर्भर करती है?


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