Do we Use Thought, or Does Thought Use us?

Author
Dada
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Image of the Weekहम अपने विचारों का इस्तेमाल करते हैं, या हमारे विचार हमारा इस्तेमाल करते हैं?
- दादा
क्या आपने कभी विचारों के कारण और परिणाम को ध्यान से देखा है, विचारों के जन्म और मरण की ओर, ये चक्कर जो डर और मत-भेद पैदा करता है और अंत में दुःख देता है?
विचारों और भावनाओं की हर अभिव्यक्ति हमारे मानसिक बल को नष्ट करती है, और विचारों का हर प्रदर्शन हमारी प्राण शक्ति को कम करता है। हम सब को एक सीमित मात्रा में यह मूलयवान जीवन शक्ति प्रदान की गयी है। इन पुरानी आदतों से मजबूर हमारा इस यांत्रिक तरीके से अपनी शक्ति का लगातार खोते रहना एकदम मूर्खता और बेकार है। बिना सोचे-समझे, ये लगातार चलती हुई दिमागी गतिविधि हमारी शक्ति का नाश करती है, मानसिक थकावट का कारण बनती है, और मनोदैहिक विकारों को आमंत्रण देती है।
बहुत ही कम विचार ऐसे हैं जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी और कार्यवाही के लिए ज़रूरी हैं। जहां ज़रूरी न हो वहाँ हमें विचारों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। विचारों को अपने-आप काम करने की ज़रूरत नहीं है।

लेकिन अब दिमाग में विचारों का कोई अंत नहीं है, जब हम सोने के लिए बिस्तर में लेटते हैं, तब भी नहीं। हैरानी कि बात है कि नींद में भी विचारों का सिलसिला चलता ही रहता है। हमारा दिमाग कल्पनाओं और आशंकाओं को प्रदर्शित करता है। और जब हम सो भी रहे होते हैं, हमारा दिमाग अधूरी योजनाओं और गतिविधियों में डूबा रहता है। दिमाग का वही खेल बराबर चलता ही रहता है। ये जीवन इस विचाओं की धारा के सिवा कुछ भी नहीं है।
दिल की धड़कन की तरह, दिमाग पूरी ज़िंदगी हर समय चलता ही रहता है, पहले उलझने बनाने में व्यस्त, फिर उन्हें सुलझाने में। हम शायद ही कभी आराम की अवस्था में होते हैं और पूरी शांति की अवस्था में कभी भी नहीं।

आप सोचते हैं कि आप सोच-विचार का इस्तेममल कर रहे है, पर मैं ऐसा नहीं मानता। लोगों और चीज़ों पर अपना नियंत्रण कर के, उन पर हावी होकर, अपनी मुट्ठी में जकड़ कर और आप पर शासन कर के, ये विचार आपका इस्तेमाल कर रहे हैं, आपकी जीवन-शक्ति का इस्तेमाल कर रहे हैं।

दिमागी सोच एक ऐसी प्रबल शक्ति है जो बहुत उग्र और अपना बना लेने वाली होती है, जो रचनात्मक प्रकृति को दबाने और रोकने का काम करती है। सोच की सीमाओं को देख पाना, उसकी विशिष्ट गतिविधियों और आम प्रकृति को, उसकी यांत्रिक आदतों और सूक्ष्म मज़बूरियों को जान लेना समझदारी है। यह सहज बुद्धि के जागरण की शुरुआत है।

एक नए आयामी अस्तित्व का अनुभव करने के लिए दुनिया को इस तरह के ज्ञान की खोज की जरूरत है : सार्वजनिक समझ का एक रास्ता , सुखी और रचनात्मक जीवन का एक तरीका, स्वतंत्रता और शांति का जीवन। ध्यान की सतर्कता हमें मुक्त, स्वतंत्र और अपने आप में सम्पूर्ण बनाते हुए, स्वाभाविक तौर पर सृजनात्मक प्राणी की तरह काम करने के लिए एक नए निरीक्षण के तरीके को जन्म देती है। फिर मानव संवेदनशीलता के क्षेत्र के भीतर एक नई ऊर्जा का स्रोत उभरेगा। एक नए अवैयक्तिक ज्ञान की सुबह फूलेगी और हमारे मन में फूट पड़ेगी।

कुछ मूल प्रश्न: अपने विचारों का इस्तेमाल करने की बजाय विचार हमारा इस्तेमाल करते हैं, इस धारणा के बारे में आपका क्या विचार है? आप सहज बुद्धि से क्या समझते हैं? क्या आप अपना कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँटना चाहेंगे जो सहज बुद्धि का उदाहरण दे सके?


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