True Meditation Has No Direction

Author
Adyashanti
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Image of the Weekसच्चे ध्यान की कोई दिशा नहीं होती।

- आद्यशान्ति

सच्चे ध्यान की कोई दिशा या लक्ष्य नहीं होता। वह एक पवित्र निशब्द समर्पण है, पवित्र मौन प्रार्थना। सभी तरीके जो की एक विशिष्ठ मनः स्तिथि पाने के लिए उपयोग किये जाते हैं सीमित हैं, अनित्य हैं और ढाले गए हैं। मनः स्तिथि का मोह केवल बंधन और निर्भरता बढ़ता हैं। सच्चा ध्यान आदिकालीन सजगता का पालन करना है।

सच्चा ध्यान हमारी चेतना में स्वाभाविक रूप से स्फुर्ता है जब हमारी सजगता में कोई हेर-फेर नहीं किया जाता, नहीं उसे नियंत्रित किया जाता है। जब आप पहले-पहले ध्यान करना शुरू करते हैं, आप देखते हैं के आपका ध्यान किसी वस्तु पर स्तिथ हैं : विचारों पर, शारीरक संवेदनाओ पर, भावनाओं पर, स्मृतियों पर, ध्वनियों पर इत्यादि। ऐसा इसलिए होता होता है क्यूँकी मन को आदत पड़ गयी है किसी वास्तु पर केन्द्रित और संकुचित होने की। फिर मन किसी अनिवार्य तरीके से उस वास्तु जिस पर वह केन्द्रित है उसका अर्थघटन करता है और बोहोत ही यांत्रिक और विकृत तरीके से उसे नियंत्रित करने की कोशिश करता हैं। मन पूर्व संस्कारों से प्रेरित होकर निष्कर्ष निकालने लगता है और मान्यताएं बनाने लगता है।

सच्चे ध्यान में सभी वस्तुओं ( विचार, भावना, स्मृति इत्यादि) को अपना प्राकृतिक कार्य करने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसका मतलब है की हमारी चेतना के किसी भी भाग पे ध्यान लगाने के लिए, उस में हेर-फेर करने के लिए, उससे नियंत्रित करने के लिए या दबाने के लिए कोई प्रयत्न नहीं किया जाता। सच्चे ध्यान में सजग बने रहने पे ज़ोर दिया जाता है ; न के किसी वस्तु पे ध्यान लगाने पे पर हम आदिकालीन सजगता स्वरुप हैं - इसी में स्तिथ रहने पे जोर दिया जाता है।

जैसे ही आप कोमलता से आराम करते हैं अपनी सजगता में, सुनने में, मन का वस्तुओं पर अनिवार्य संकुचन क्षीण हो जायेगा।
अस्तित्व का मौन बोहोत स्पष्टता से आपकी चेतना में प्रवेश करेगा आपको रहने और आराम करने का निमंत्रण देते हुए। खुली ग्रहणशीलता का दृष्टिकोण, बिना किसी धेय्य और अपेक्षा के, मौन और स्थिरता को आपकी प्राकृतिक स्तिथि के रूप में प्रकट होने में सहायता करेगा।

जैसे जैसे आप स्थिरता में और गहराई से आराम करने लगते हैं, आपकी सजगता मन की नियंत्रित, संकुचित और पहचान करने की अनिवार्यता से मुक्त हो जाती है। सजगता प्राकृतिक रूप से अपनी संपूर्ण अव्यक्त सामर्थ्य की अ-स्तिथि में पहुच जाती है, वह शांत रसातल जो समस्त ज्ञान के परे है।

आत्मनिरीक्षण के लिए प्रश्न:
१ " सजगता बने रहना " से आप क्या समझते हैं?
२ क्या " सजगता बने रहने " का कोई निजी अनुभव आप हमारे साथ बाँट सकते हैं?
३ जब की ' सच्चे ध्यान की कोई दिशा या लक्ष्य नहीं होता ' फिर आप ' सच्चा ध्यान करने का प्रयत्न करना ' इन दोनों विरोधाभासी विचारों से उत्पन्न होने वाले व्यंग को कैसे समझते हैं?


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