The Endless Fertility of Walking

Author
Rebecca Solnit
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Image of the Weekपैदल चलने के अनंत फायदे
- रेबेका सोनित (१जून, २०१३)

देखा जाए तो पैदल चलना कुछ ऐसी अवस्था है जिसमें हमारा मन, शरीर और संसार जैसे एक सीध में खड़े हों, जैसे कि तीन पात्र आख़िरकार एक दूसरे से बातचीत कर पा रहे हों, जैसे तीन स्वर अचानक मिलकर एक सरगम बना रहे हों। पैदल चलना हमें अपने शरीर और दुनिया द्वारा व्यस्त हुए बिना हमें अपने शरीर और दुनिया के साथ चलने में मदद करता है। यह हमें अपने विचारों में खो जाने कि बजाए हमें सोचने की आज़ादी देता है।

मुझे ठीक से पता नहीं था कि मैं उस चट्टान के सिरे पर कुछ जल्दी पहुँच गया था या की कुछ देर से, जहाँ जमुनी रंग के लूपिन के सुंदर फूल खिलते हैं, लेकिन मिल्कमेड के फूल सडक के किनारे छाया में, पगडंडी के रास्ते पर खिले हुए थे, और उन्होंने मुझे अपने बचपन के उन पहाड़ों की याद् दिला दी,जहाँ सबसे पहले ये सफ़ेद फूल खिलते थे। काले रंग की तितलियाँ मेरे चारों ओर मंडरा रहीं थीं, हवा के झोंकों और पंखों की फड़फड़ाहट से इधर उधर उड़तीं, और उन्होंने मुझे अपने उस गुज़रे ज़माने की याद दिला दी। पैदल चलने से समय के साथ-साथ चलना कुछ आसान हो जाता है; हमारा मन पल में योजनाओं से यादों, और यादों से प्रत्यक्ष में भटक लेता है।
पैदल चलने की लय से मन की सोच में भी एक लय पैदा होती है, और किसी प्राकृतिक रास्ते से गुजरने से मन में बहुत से विचार भी उत्पन्न होते हैं, या गूँज उठते हैं। इससे हमारे आंतरिक और बाहरी रास्तों में एक अजीब-सा तालमेल हो जाता है, जिससे हमें लगता है कि मन भी एक तरह का दृष्य है और पैदल चलना उसे पार करने का एक तरीका है। हर नया विचार उस दृश्य का हिस्सा ही लगता है जो हमेशा से वहीं था, मानो यह सोच एक यात्रा ही है , उस विचार की शुरुआत नहीं। इसलिए पदयात्रा के इतिहास का एक पहलू है विचारों के इतिहास को ठोस बनाना - क्योंकि मन की चाल की खोज कर पाना मुश्किल है, पर पैरों की चाल की खोज कर पाना आसान है।

पैदल चलने को एक देखने लायक गतिविधि भी माना जा सकता है, हर पदयात्रा इत्मिनान से उन दृश्यों को देखने और उन पर विचार करने के लिए है, अज्ञात चीज़ों को ज्ञात चीज़ों से जोड़ने के लिए। शायद पैदल चलने की यही अजीब उपयोगिता विचारकों के बहुत काम आती है। इस यात्रा से पैदा होने वाले आश्चर्य, मुक्ति, और चीज़ों का साफ-साफ दिखाई पड़ना, इन सबको पाने के लिए हम अपने आस-पड़ोस का चक्कर लगा सकते हैं, और या फिर दुनिया का, और पास और दूर की जगहों की सैर कर सकते हैं।

या शायद चलने को गतिविधि ही कहना चाहिए, यात्रा नहीं, क्योंकि इंसान एक दायरे में चल सकता है या एक कुर्सी पर बंधे पूरे विश्व का चक्कर लगा सकता है, और यात्रा का मज़ा तो सिर्फ चलते शरीर की गतिविधियों से ही आता है, न कि कार, नाव या हवाई-जहाज़ के चलने से। वो तो शारीरिक गतिविधि और हमारे सामने निकलते दृश्य मिलकर हमारे मन में कोई गतिविधि पैदा करते हैं, यही हमारी यात्रा को अस्पष्ट और बेअंत फायदेमंद बनाता है; यह अपने आप में एक रास्ता भी है और एक अंत भी, यात्रा भी और उद्देश्य भी।
- रेबेका सोनित

कुछ मूल बीज सवाल: "आप अपने उन विचारों के बारे में क्या सोचते हैं जिन्हें एक ऐसे दृश्य की तरह माना जाए जो हमेशा से यहीं था? आपके लिए पैदल चलने और सोच-विचार करने का आपस में क्या सम्बन्ध है? क्या आप अपना कोई अनुभव सबके सामने रखना चाहेंगे जहाँ पैदल चलने और सोचने में कोई सम्बब्ध बना हो?"


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