प्रेम के सूक्ष्म क्षण
- बारबरा फ्रेदेरिकक्सों
समय आ गया है के हम प्रेम के प्रति हमारे नज़रिए को और उन्नत बनाएं। सबसे पहले प्रेम एक भावना है, एक क्षणिक स्तिथि जो हमारे मन और शारीर दोनों पे असर करती है। प्रेम, और भावनाओं की तरह एक विशिष्ठ और तेज़ी से बदलते मौसम की तरह उभरता है, एक सूक्ष्म और सदा-बदलते रहते बल की तरह। सभी सकारात्मक भावनाओं की तरह प्रेम आपको जो आतंरिक अनुभूति देता है वह नितांत स्वाभाविक, कोमल और अत्यंत सुखद होती है - असाधारण तृप्ति का अनुभव होता है - ठीक वैसे ही जैसे - जेठ की दोपहर में एक ठन्डे पानी का प्याला आपको तृप्त करता है। और अच्छा लगने से कहीं आगे, प्रेम का एक सूक्ष्म क्षण आपके मन को सचमुच बदलता है। वह आपकी अपने और अपने आस-पास के परिवेश के प्रति सजगता को और गहरी बनता है। आप जो हैं और आप जो नहीं हैं उसके बीच की सीमा - जो आपकी त्वचा के परे है - आराम करें और अपने आपको और पारगम्य (permeable) होने दें। प्रेम में रहते हुए आप अपने और दूसरों के बीच अंतर कम होते देखते हैं। आपकी दूसरों को देखने की क्षमता - वास्तविकता से देखने की, पुरे दिल से - खिल जाती है। प्रेम आपको एकता और सम्बन्ध की स्पर्शनीय ( palpable ) समझ प्रदान कर सकता है, एक उन्नति प्रदान करता है जिससे आप अपने आपको अपने से कहीं बड़े अस्तित्व का हिस्सा महसूस करते हैं।
प्रेम, और भावनाओं की तरह एक विशिष्ठ और तेज़ी से बदलते मौसम की तरह उभरता है, एक सूक्ष्म और सदा-बदलते रहते बल की तरह। और प्रेम के बारे में नयी समझ जो मै आप से बांटना चाहती हूँ वह यह है के - लगभग किसी भी समय जब दो या ज्यादा लोग - चाहे वे अजनबी ही क्यूँ न हों - किसी साझा सकारात्मक भावना से मिलते हैं तब प्रेम खिलता है।
संभव है, अगर आप पश्चिमी संस्कृति में पले-बढ़े हैं, तो आप भावनाओं को मोटे तौर पे एक निजी घटना समझते हैं। आप उन्हें एक व्यक्ति की सीमाओं में ही देखते हैं, उनकी त्वचा और मन से सीमित। भावनाओं के बारे में बात करते समय, एकवचन अधिकारात्मक विशेषणों का उपयोग आपका यह दृष्टिकोण दर्शाता है। आप ' मेरी चिंता ', ' उनका गुस्सा ' या ' उनकी रूचि ' जैसे उल्लेख करते हैं। इस तर्क से तो प्रेम सिर्फ उसीका लगता है जो उसे महसूस कर सकता है। प्रेम को सकारात्मक अनुनाद ( positivity resonance ) की व्याख्या देना इस मत को चुनौती देता है। प्रेम लोगों के बीच और उनमें प्रकट होता है और गूंजता है - पारस्परिक आदान-प्रदान में - और इस तरह वह सभी सम्बंधित पक्षों का है और उस प्रतीकात्मक संयोजक ऊतक ( metaphorical connective tissue ) का जो उनसभी को जोडती है, भले ही थोड़ी देर के लिए। तभी किसी भी और सकारात्मक भावना से ज़यादा प्रेम किसी एक व्यक्ति का नहीं होता, वह तो जोड़ों में या लोगों के समूह में होता है। प्रेम संबंधों में रहता है।
शायद प्रेम के बारे में सबसे चुनौतीपूर्ण विचार यह है की - न तो वह स्थायी है और नहीं बिना-शर्त। सबसे क्रन्तिकारी बदलाव जो हमें लाना है वह यह है के - प्रेम, जैसे हमारा शारीर अनुभव करता है, सम्बन्ध का एक सुक्ष्म क्षण है दुसरे के साथ। और दशकों का अनुसन्धान अब यह सिद्ध करता है के प्रेम जिसे सकारात्मक सम्बन्ध का सूक्षम क्षण समझा जाता है, आपके मष्तिष्क और आपके ह्रदय के बीच सम्बन्ध मज़बूत करता है और आपको और स्वस्थ बनता है। [ ... ] यह आश्चर्य की बात लगेगी के एक अनुभव जो कुछ ही क्षण रहता है हमारे स्वस्थ्य और धिर्घ-आयु पे स्थायी प्रभाव दाल सकता है। फिर भी यहाँ एक महतवपूर्ण प्रतिक्रिया पाश ( feedback loop ) काम कर रहा है, एक उर्ध्व जाती सीढ़ी आपके सामाजिक और शारीरिक कल्याण के बीच। इसका मतलब है के आपके प्रेम के सुक्ष्म क्षण न सिर्फ आपको स्वस्थ बनाते हैं पर स्वस्थ रहनेसे आपकी प्रेम करने की क्षमता भी बढ़ती है। धीरे - धीरे, प्रेम और प्रेम उपजाता है आपका स्वस्थ्य सुधारते हुए। स्वस्थ्य और स्वस्थ्य उपजाता है आपकी प्रेम करने की क्षमता को बढ़ाते हुए।
- बारबरा फ्रेदेरिकक्सों, प्रेम 2.0 में
आत्मनिरीक्षण के लिए प्रश्न :-
१ प्रेम और स्वस्थ्य के पारस्परिक सम्बन्ध से आप कैसे जुड़ते हैं?
२ प्रेम - सकारत्मक सम्बन्ध का एक सुक्ष्म क्षण - आप इससे क्या समझते हैं?
३ क्या आप प्रेम के एक सुक्ष्म क्षण की कोई निजी कथा हमारे साथ बाँट सके हैं जिसने आपको रूपांतरित किया हो?
SEED QUESTIONS FOR REFLECTION: How do you relate to the circular relationship of love with health? What do you make of love as a micromoment of positive connection? Can you share a personal story of a micromoment of love that left you transformed?
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