शम्भाला योद्धाओं के हथियार
- दुगु चोएग्यल
ऐसा समय आएगा जब पृथ्वी पर हर प्रकार का जीवन खतरे में होगा। महान बर्बर शक्तियों का उदय हुआ है। वैसे तो ये शक्तियां अपनी बोहोत सारी संपत्ति एक दुसरे का विनाश करने की सामग्री बनाने में खर्च करती हैं, उनमें कई समानताएं हैं : अथाह विनाशकारी हथियार और तकनिक जो हमारी दुनिया को बरबाद कर सकती है। ऐसे समय जब सवेदनशील जीवन बोहोत नाज़ुक धागों पे झूल रहा होता है, तब शम्भाला योधा प्रकट होते हैं।
इन योधाओं का कोई घर नहीं होता। वे बर्बर शक्तियों के क्षेत्रों में घूमते हैं। महान सहस की आवश्यकता होती है, दोनों नैतिक और शारीरक, ताकि वे उन बर्बर शक्तियों के ह्रदय में जाके उन विनाशकारी हथियारों को निष्क्रिय करें, जहाँ ये हथियार बनाये जाते हैं, सत्ता के गलियारों में जहाँ निर्णय लिए जाते हैं।
शम्भाला योधाओं के पास केवल दो हथियार हैं - करुणा और अन्तर्दृष्टि। दोनों ही बोहोत जरुरी हैं। करुणा उन्हें आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करती हैं, दुनिया के दर्द से निर्भय बनाती है। करुणा से प्रेरित योधा दुनिया से भिड़ते हैं, आगे बढ़ते हैं और काम करते हैं। पर अकेले करुणा बोहोत सारे जोश के साथ जलती है और अंत में हमें बोहोत थका देती है। इसलिए दुसरे हथियार की आवश्यकता है - सभी की एक दुसरे पे अन्तर-निर्भरता की अन्तर्दृष्टि।
इस अन्तर्दृष्टि से हम देख सकते हैं की लड़ाई " सज्जनों " और " दुर्जनों " के बीच नहीं है, क्युंके अच्छे और बुरे के बीच की रेखा तो हर मानव ह्रदय से होकर जाती है। हमारी गहरी अन्तर-निर्भरता से हम सही कर्म को देख सकते हैं, जानते हुए की नेक इरादे से किये हुए कर्मो का प्रभाव पूरी जीव-श्रुष्टि पे पड़ता हैं, देखने और गणना किये जाने से परे।
ये दोनों हथियार साथ में योधा को जीवित रखते हैं : दुनिया के प्रति हमारे दर्द का ज्ञान और अनुभव, और समस्त जीवन से हमारी गहरी अन्तर-निर्भरता का ज्ञान और अनुभव।
- दुगु चोएग्यल से अनुकूलित, ब्यौरा जोआना मेसी।
आत्मनिरीक्षण के लिए प्रशन :
सभी की एक दुसरे के प्रति अन्तर-निर्भरता में करुणा और अन्तर्दृष्टि की परस्पर क्रिया से आप कैसे जुड़ते हैं ?
अच्छाई और बुराई हमारे ही दिलों में है इस विचार को आप कैसे समझते हैं?
क्या आप अपने जीवन के किसी ऐसे समय का विवरण दे सकते हैं जब करुणा और अन्तर्दृष्टि एक दुसरे के संतुलन में थे?
कभी कभी, इस धन्य जीवन में, एक ऐसा समय आता है जब हम आध्यात्मिक खोज, भगवान, और सत्य की खोज करना चाहते हैं। ऐसा लगता है कि इस काम को करने के आम तरीके कुछ काम नहीं आते हैं। हम जीने के आम तरीके को छोड़कर अपने ध्यान को आध्यात्मिक जीवन की ओर ले जाते हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश जिन तरीकों से हम अपनी आम ज़िंदगी जी रहे थे, हम उन्हीं तरीकों से अपनी आध्यात्मिक खोज भी करने निकल पड़ते हैं, और फिर वह खोज सिर्फ आध्यात्मिक खुशी, आध्यात्मिक शान्ति, आध्यात्मिक सुरक्षा की खोज बन के रह जाती है। कभी ना कभी इस खोज से भी हमारा मन भर जाएगा। [...]
आज दोपहर मुझे किसी का पत्र मिला जिसमें मुझसे पूछा गया, "आपके सिद्धांत किस विश्व धर्म पर आधारित हैं?" खैर, मैंने विश्व के धर्मों का कोई खास अध्ययन तो नहीं किया है, लेकिन जो मैंने देखा है उससे यह लगता है कि हर इंसान का मन एक ही चीज़ चाहता है और वह वो चीज़ ऐसी है जिसे उस पल वह इंसान "खुशी" के नाम से जानता है। पर मैंने पाया है कि खुशी को ढूंढ पाना नामुमकिन है। जब तक आप खुशी को "कहीं" खोजने की कोशिश कर रहे हैं, खुशी असल में कहाँ है आप इस बात को बिलकुल अनदेखा कर रहे हैं। मैं भगवान के बारे में भी यही कहूँगा। जब तक आप भगवान को किसी खास "जगह" पर ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं, आप भगवान के बारे में एक मूल सच्चाई को अनदेखा कर रहे है, वह ये कि भगवान सर्वव्यापी है। जब आप किसी और जगह पर खुशी की खोज करने की कोशिश करते हैं, तो आप इस बात को नज़रंदाज़ क्रर रहे हैं कि आप की मूल प्रकृति सिर्फ खुशी ही है। आप खुद अपने आप को अनदेखा कर रहे हैं।
तो यह शिक्षण एक आमंत्रण और चुनौती है कि हम चीजों को अनदेखा करना बंद करें - बस, मूलतः,एकदम स्थिर हो जाएं। कम से कम एक पल के लिए, हम अपने उन सब विचारों को अपने दिमाग से निकाल दें कि भगवान कहाँ है, सच्चाई कहाँ है, या हम खुद कहाँ हैं। उन सब विचारों को कि भगवान् क्या है, सच क्या है, या हमें क्या देना या लेना है। उन सब विचारों को छोड़ दें। ठहर जाएँ। इधर-उधर ढूँढना बंद कर दें। खोजना बंद कर दें। बस रुक जाएँ। किसी हैरानी या बेहोशी की हालत में नहीं, और ना ही एक बड़े मैदान में चरती गाय की तरह, बल्कि उससे कहीं अधिक गहराई से, ताकि उस सर्वव्यापकता का रहस्य पहचाना जा सके, समझा जा सके, और आपकी अपनी असल प्रकृति को समझा जा सके। मेरा मतलब अपनी पर्सनैलिटी को समझने से नहीं है। मेरा मतलब अपनी पर्सनैलिटी से अधिक गहरा कुछ पहचानने से है, और जो कि आपकी पर्सनैलिटी के हर उतार चढ़ाव में मौजूद है। उस तत्व की मौजूदगी में अपने आप को स्थिर करो। ना कि उस को बनाने के लिए स्थिर होओ। उसे आमंत्रित करने के लिए भी स्थिर मत रहो। सिर्फ यह पहचानने के लिए स्थिर रहो कि ऐसा क्या है जो हमेशा मौजूद है, और तुम हर वक्त कौन हो।
कुछ मूल प्रश्न : "ऐसा क्या है जो हमेशा हमारे आस-पास है, ये जानने के लिए कुछ ठहरो", इस वाक्य से आप क्या समझते हैं? आप इस ठहराव को अपने जीवन में कैसे पैदा कर सकते हैं? क्या आप अपने जीवन से कोई ऐसा अनुभव बाँटना चाहेंगे जब आपने खोजना बंद करने से ठहराव पाया हो?