He Who Accumulates Cannot Learn

Author
J. Krishnamurti
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Image of the Weekजो इकठ्ठा करते है वो सीख नहीं सकते हैं - जे कृष्णमूर्ति द्वारा (2 अप्रैल 2013)

ऐसा लगता है कि संवाद एक बेहद ही कठिन कला है। एक दुसरे से हमारी परेशानियों पर संवाद करने के लिये हमें सुनना और सीखना आना चाहिए। और यह दोनों ही काफी कठिन है करने के लिए। हम में अधिकतर लोग मुश्किल से थोडा सुनते है, और बहुत थोडा सीखते है। एक दुसरे से संवाद करने के लिए, जिसके लिए यह बैठक रखी जाती है, एक ख़ास प्रकार की खूबी होनी चाहिए, एक निश्चित सुनने का तरीका, ना कि केवल जानकारी इकठ्ठा करना, जो एक स्कुल जाता बच्चा भी कर सकता है।

मुझे अत्यंत महत्वपूर्ण लगता है कि सीखने कि लिए हम एक दुसरे की सुने। सीखना केवल ज्ञान का संचय करना नहीं है। ज्ञान कभी धारणा नहीं लाता है , अनुभव कभी समझ की सुंदरता में पैदा नहीं होता। हम में से अधिकतर लोग, हमारे पास जो जानकारी है या हमारे पास जो अनुभव है उसकी पृष्टभूमि को ध्यान रखकर ही सुनते है। शायद आपने कभी वह मन जो सचमुच सीखता है और वह मन जो केवल ज्ञान बटोरता है और जमा करता है , उसके बीच फर्क नहीं किया। जो दिमाग केवल जमा करता है वो कभी सीखता नहीं है। वह हमेशा अपने अनुभव और जो भी ज्ञान उसने इकठ्ठा किया है, उसके अनुसार हर सुनी बात का अनुवाद करते रहता है। वह जमा करने के प्रक्रिया में फसा हुआ है, जो जानता है, उसमे जोड़ने में लगा है, और ऐसा दिमाग सीखने के काबिल नहीं है। मुझे नहीं पता कि आपने ध्यान दिया क्या? तो इसलिए यह ज़रूरी है कि हम एक दुसरे से शान्ति से संवाद करें, एक सम्मानजनक ढंग से, जिसके लिए सुनना और सीखना ज़रूरी है।

जब आप अपने दिल से संवाद करते है , अपने दोस्त से, आसमान से, तारों से, सूर्यास्त से, फूल से, तो ज़रूर ही आप सीखने के लिए सुन रहे है। जिसका यह अर्थ नहीं है कि आप उसे स्वीकार या इंकार करे। आप सीख रहे है, और किसी भी कही बात को स्वीकार या इंकार करना, सीखने का अंत कर देता है। जब आप सूर्यास्त से , एक दोस्त से, अपनी बीवी-बच्चे से बात करते है, तो आप आलोचना नहीं करते, ना ही ज़ोर देते है या इंकार करते है, ना ही उस बात से अनुवाद या पहचान करते है । आप जब बात करते है, तब आप सीख रहे है। और इसी खोज से सीख की हलचल होती है , जो कभी भी इकठ्ठा करते नहीं चलती।

मैं मानता हूँ कि यह समझना ज़रूरी है कि जो इकठ्ठा करते है वो सीख नहीं सकते हैं। स्वयं को सीखाने के लिए एक ताज़ा और उत्सुक दिमाग चाहिए, ऐसा दिमाग जो किसी चीज़ के लिए प्रतिबद्ध नहीं है , जो किसी चीज़ के किसी विशेष क्षेत्र में सीमित या सम्बंधित नहीं है। केवल ऐसा दिमाग ही सीख सकता है।


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