तीर चलाना बंद करो
- थानिसरो भिक्कू (11 मार्च, 2013)
महात्मा बुद्ध दर्द की तुलना तीर से घायल होने से करते हैं। शारीरिक दर्द एक तीर से घायल होने जैसा है, लेकिन फिर हम उसके ऊपर से अपने को एक और तीर का निशाना बना लेते हैं, उस दर्द के बारे में सोचकर जो हालत हम अपने मन की कर लेते हैं, वह बिलकुल अनावश्यक है। जब आपके पास यह शरीर है, तो कोई ने कोई दर्द भी ज़रूर होगा। यहाँ तक कि महात्मा बुद्ध को निर्वाण मिलने के बाद भी शारीरिक दुखों का सामना करना पड़ा, लेकिन फर्क यह है कि उन्हें इस बात का ज्ञान था कि अपने आप की दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवें तीरों का निशाना बनाना ज़रूरी नहीं है। और होता यह है कि वह ज्यादा दुःख देते हैं। उन्हीं से असल में परेशानियाँ खड़ी होती हैं।
लेकिन आप बस यूँ ही मार्च करते नहीं पहुँच जाएँगे और अपने आप से कहेंगे, "हाँ तो आप, बाहर निकल जाओ! रुक जाओ! तीर चलाना बंद करो!" आपको यह जानना होगा कि शारीरिक और मानसिक दर्द के बीच की सीमा रेखा कहाँ है। यह आप प्राणायाम के साथ प्रयोग करके, अपने दर्द पर लगाए जा रहे अलग-अलग लेबलों के साथ प्रयोग करके, अपने आप से दर्द के बारे में प्रश्न करके - और कभी-कभी अजीब प्रश्न ही दर्द के बारे में बनाये हमारे अजीब नज़रिओं को खोज निकालते हैं। उदाहरण के लिए, आप यह पूछ सकते हैं, "इस दर्द का क्या आकार है?" यह काफी अजीब सवाल मालूम होता है, लेकिन जब आप इस सवाल की तह तक पहुँचते हैं तो पाते हैं कि आपकी कल्पना ने ही इस दर्द को आकार दिया है। अगर आप उसे कोई आकार न दें तो क्या होता है? वह दर्द इधर-उधर कैसे जाता है? क्या वह खुद ही इधर-उधर जा रहा है या वह इधर-उधर इसलिए जा रहा है क्योंकि आप उस पर इतना ध्यान दे रहे हैं? ये सब चीज़ें आप केवल प्रयोग से ही जान सकते हैं। प्रयोग से ही चीज़ें खुद ही विभाजित होने लगती हैं। दूसरे शब्दों में, अगर आपने पहले से ही ऐसी राय बना रखी है कि, "विभाजन रेखा यहाँ होनी चाहिए या वहां," तो मालूम चलता है कि ऐसा कुछ भी नहीं है। आप अपनी अज्ञानता को उस दर्द पर थोप रहे हैं, जो कि ज़ाहिर है उस दर्द को और भी ख़राब बना रही है।
तो आप को प्रयोग करना सीखना होगा। आपकी सांस लेने की गति में होते बदलाव का दर्द पर क्या असर है? दर्द के बारे में आपके नज़रिए में होता बदलाव आपके दर्द को कैसे बदलता है? आपका अपने मन और शरीर के सम्बन्ध के बारे में बदलता नजरिया: क्या मन शरीर में बसा है? क्या शरीर मन में बसा है? शरीर में मन कहाँ स्थित है? ये सब सवाल काफी अजीब लगेंगे, लेकिन आप यह महसूस करने लगेंगे कि एक अव्यक्त स्तर पर मन इसी तरह सोचता है। और हमारी बहुत सी आम मान्यताएं कि हमारी जागरूकता का केंद्र कहाँ है, उस केंद्र के सम्बन्ध में हमारा दर्द कहाँ स्थित है, और वह उस केंद पर क्या असर डालता है: ये सब बातें इस बात पर खास असर डालती हैं कि हम उस दर्द को कैसे अनुभव करते हैं और कैसे हम बिना वजह इस दर्द से खुद को पीड़ित करते हैं। इसलिए आपको इन सब चीज़ों के साथ प्रयोग और उनका परीक्षण करना होगा।
SEED QUESTIONS FOR REFLECTION: How do you relate to shooting the unnecessary second, third, fourth and fifth arrows at yourself? Can you share insights from a personal experience where you attempted to examine your pain? What are your thoughts on the "strange questions" that the author asks in the last paragraph?
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