क्रोध का खुले मन से प्रसंस्करण
- जौन रॉबिन्स और ऍन मौर्टिफी (20 फरवरी, 2013)
क्रोध जीवन शक्ति की एक गहन और मौलिक अभिव्यक्ति है, एक जलती लौ जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। यह मन का चेतावनी देने का तरीका है, जो झकखोर कर हमारे ध्यान को इस बात पर खींचने का प्रयत्न करता है कि हमारी सीमा या मर्यादा पर वार हो रहा है, या किसी चोट या दर्द पर जिसे नकारा जा रहा है, या हमारे अस्तित्व के उस हिस्से पर जो दूषित हो गया है। क्रोध का काम ज्वर के काम जैसा ही है। यह अवांछित और प्रतिकूल तत्वों को जलाने में मदद करता है। इसका उद्देश्य है हमारे जीवन में संतुलन और खुशहाली वापिस लौटना |
अगर ज्वर के लक्षणों को दबा दिया जाए और अनदेखा कर दिया जाए तो बीमारी अनियंत्रित रह जाएगी। ऐसा ही क्रोध के साथ भी है। फायदा इस में है कि हम उस सन्देश को ध्यान से सुनें और फिर उसे अपने विकास और कल्याण के लिए इस्तेमाल करें।
हमें यह याद रखना होगा कि जो क्रोध हम किसी दूसरे व्यक्ति के लिए महसूस करते हैं, वह वास्तव में उस व्यक्ति का एकदम ठीक मूल्यांकन या उसकी ठीक पहचान नहीं हैं। वह तो सिर्फ हमारी खुद की भावनाएं हमसे कुछ कहना चाह रही हैं, उस दूसरे व्यक्ति की बजाय हमें हमारे ही बारे में कुछ और बता रही हैं। यह तो और अधिक स्पष्टता तथा खुद की पहचान की शुरुआत है, ताकि हम अपने हर जुनून को ईमानदारी से जी सकें, अपनी भीतरी शक्ति का विकास कर सकें, और जो हमारे मन की चाहते हैं, उन्हें आक्रामकता (aggressively) से पूरा करने की जगह दृढ़तापूर्वक पाने में सक्षम हो सकें।
असल में दो अलग-अलग शब्द होने चाहिएं, एक "क्रोध जो बंद मन में हो" और दूसरा वो "क्रोध जो खुले दिल में हो"। समाज में ज़्यादातर वह क्रोध होता है जो "क्रोध बंद मन वाला" है, हम में से बहुत से लोग आदतन अपने क्रोध का इस्तेमाल बदले के भाव में स्वतः अपने को बचाने के लिए या दूसरे पर अपनी इच्छाएं थोपने के लिए करते हैं। हम मानते हैं कि दूसरों के आत्म सम्मान को नीचा दिखाना पूरी तरह ऊचित है। हम सोचते हैं कि यह हम "उन्हीं के भले" के लिए कर रहे हैं। हम शायद ऐसा विश्वास करते हैं कि जो इच्छा हम थोपने की कोशिश कर रहे हैं, वह ईश्वर की इच्छा है। इस अज्ञानता ने पीढ़ियों से दुर्व्यवहार को बढ़ावा दिया है। इस दंभ (self-righteousness) ने सदियों से कितने ही "धर्म" युद्धों को जन्म दिया है।
"बंद मन से उत्पन्न क्रोध" विनाशकारी है। लेकिन ऐसा भी समय आता है जब हमारा क्रोध दूसरे व्यक्ति के लिए देन बन सकता है, जब वह केवल हमारा अहंकार खुद को एक ऐसी गाँठ में नहीं बाँध रहा है जहां हम दूसरे व्यक्ति को सिर्फ अपना तनाव कम करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि हमें बहुत रोष और तात्कालिकता महसूस होगी, लेकिन उसे निर्दयता से अभिव्यक्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है। क्योंकि जब हमारे मन में किसी को चोट पहुँचाने, सजा देने या दोषी ठहराने की इच्छा नहीं होती, तब हम स्पष्टता और शक्ति से बात करने में समर्थ हो जाते हैं। हम भले ही शेर की तरह चिंघाड़ रहे हों, लेकिन वह एक कल्याणकारी गर्जन है। हम चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं, लेकिन हम अत्यंत निष्पक्ष होंगे। हम भयंकर क्रोध में हो सकते हैं, लेकिन फिर भी हम सम्मानपूर्वक व्यवहार करेंगे। यह "खुले दिल से क्रोध" करने का तरीका है, और इसमें एक सौंदर्य है, एक जुनून है, और एक स्पष्टता है जो कि अचूक हैं।
SEED QUESTIONS FOR REFLECTION: How can we test if we are fooling ourselves into believing that we are angry "with-the-heart-open" when we may in fact be angry with "with-the-heart-closed?" How do we develop the ability to keep our heart open, even when we are angry? Can you share a personal story that illustrates being angry "with-the-heart-open?"
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