नन्हे चमत्कार
-बारबरा किन्गस्लोवर (23 जनवरी, 2013)
बैरी लोपेज़ ने लिखा है कि अगर हम खुद के अलावा अपने आस-पास की प्रकृति का संरक्षण करने का प्रयत्न करना चाहते हैं तो, "हमें अपने जीवन को एक नए नज़रिए से देखना होगा ... ज़रुरत होगी एक ऐसी इंसानियत की जो हमने अभी तक संचित ही नहीं की है, और ऐसी ईश्वरीय कृपा की जिसे जब तक हम महसूस नहीं करते, हमें उसकी चाहत का ज्ञान भी नहीं होता।"
और आज इससे अधिक महत्त्वपूर्ण कोई प्रयास नहीं है। इस धरती, जिसने सम्पूर्ण जीवन को आधार दिया, उसकी रक्षा करना ही शायद हमारे जीवन की असल सच्चाई है। ये ज़मीन अब भी हमें पोषण देती है, लेकिन हम फिर भी शायद यह भूल जाते हैं कि हमारा भोजन इस गंदे, कीचड़ में पैदा होता है, वो ओक्सिजन जो हमारे फेफड़ों में भरी है, वह अभी-अभी किसी हरे पत्ते के भीतर थी, और हर अख़बार या किताब जिसे हम हाथ लगाते हैं (इस किताब को मिलाकर, जो आख़िरकार पुनरावर्तित है) वो उन पेड़ों के ह्रदय से बने हैं, जिन्हें हमारे जीवन की कल्पनाओं को सच्चाई देने की खातिर काट दिया गया। आप इस समय अपने हाथ में जो पकड़े हुए हैं, इन शब्दों के पीछे, वह एक समर्पण है, हवा, समय और सूर्य की किरणों का, और सबसे पहले भूमि का। चाहे हम इससे दूर जा रहे हैं, या इसमें समा रहे हैं, मुख्य बात यह है कि यह यहाँ है, इस स्थान पर। चाहे हम यह समझते हैं कि हम कहाँ हैं या कहाँ नहीं, वह एक अलग कहानी है। यहाँ होना या न होना। कथाकारिता उतनी ही पुरानी कला है जितनी कि हमारी यह याद रखने की ज़रुरत कि पानी कहाँ मिलेगा, सबसे अच्छा अनाज कहाँ उगेगा, और हम शिकार खोजने का साहस कहाँ से पाते हैं। यह उतनी ही स्थाई है जितनी कि हमारी अपने बच्चों को इस संसार में जीना सिखाने की इच्छा, जिस संसार को हम उनसे बहुत ज्यादा समय से जानते हैं। हमारे खुद को दिए बड़े से बड़े और छोटे से छोटे जवाब इस धरती से ऐसे ही पैदा होते है जैसे कंदमूल इस मिट्टी से उगते हैं। मैं आपको कुछ ऐसा कहने की कोशिश कर रही हूँ जो मैं तर्क से साबित नहीं कर सकती पर जिसे मैं एक धार्मिक आस्था की तरह महसूस कर सकती हूँ। यह मेरा विश्वास है ...
मैं कैसे कह सकती हूँ: हमें जंगलों की ज़रुरत है। चाहे हम ऐसा सोचें या नहीं, पर हमें इन जगहों की ज़रुरत है। हमें ईश्वरीय कृपा को महसूस करने की ज़रुरत है, और हमें एक बार फिर यह जानने की भी ज़रुरत है कि हमें उस कृपा की इच्छा है। यह ज़रूरी है कि हम उस प्राकृतिक दृश्य को अनुभव कर सकें, जो समय के बंधनों से दूर है, जिसकी गति नयी जातियों के जीवों के उद्भव और हिमनदियों के चलने की रफ़्तार की तरह धीमी है। हम अन्य जीव-जंतुओं की आवाज़, मिलन और हल-चल से घिरे हुए हैं, वे सब जीव जो अपने जीवन को उतना ही प्यार करते हैं जितना हम अपने जीवन को, और उनमें से शायद कोई भी ऐसा जीव नहीं है जिसे हमारी आर्थिक स्थिति या हमारे व्यस्त जीवन की कोई परवाह हो। प्रकृति हमें दिखाती हैं कि हमारी असल अहमियत क्या है। वह हमें याद दिलाती है कि हमारी योजनाएं बहुत तुच्छ और कुछ बेतुकी हैं। वह हमें याद दिलाती है कि हमारी जिन योजनाओं से आने वाली बहुत सी पीढ़ियों पर असर पड़ेगा, वहां हमें सोच-समझ कर कदम उठाना होगा। अगर हम पृथ्वी के एक साफ़ सिरे पर खड़े होकर दूर तक निगाह डालें तो हमारा मन उन भूरी आँखों में जीवन की सम्भावना को देख कर सिहर उठेगा, वो जीवन जो हमसे अलग किसी और जीव की सच्चाई है।
-बारबरा किन्गस्लोवर ("स्मॉल वंडर" -नन्हे चमत्कार)
SEED QUESTIONS FOR REFLECTION: How do you relate to the notion that "our plans are small and somewhat absurd." Is there a way in which you connect personally with your "place"? Can you share a personal experience of a timeless landscape?
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