ध्यान का नए तौर से इस्तेमाल
-गिल फ्रोंस्डैल (14 जनवरी, 2013)
तो एक चीज़ जो हम यहाँ करने जा रहे हैं, वह यह सीखना कि हम उन चीज़ों पर कैसे ध्यान लगायें जो हमारे ध्यान को उलझाती हैं -- हम कहाँ अटक जाते हैं, और ऎसी क्या चीज़ें हैं जो ध्यान के रास्ते में आती हैं। क्योंकि जिस जगह पर हम अटक जाते हैं, वही ऐसी जगह है जहाँ हमें तनाव महसूस होगा। जिस जगह पर हम फंसते हैं वह अकसर इस बात की चेतावनी देती है कि हमें किस किस्म के कष्ट भुगतने की सम्भावना है, या फ़िर हम अपनी ज़िंदगी में किस तरह की परेशानियों को बुलावा देने वाले हैं।
तो फिर हम ध्यान देने से शुरुआत करते हैं , जो कि हम सब में करने की क्षमता है। पर जब इस अभ्यास को करने में हमारी रूचि बनती है, तो ऐसा क्यों होता है कि हमारा इस क्षण के साथ शांति से जुड़े रह पाने के सामर्थ्य में किसी न किसी तरह विघ्न का पड़ जाता है। जो लोग ध्यान करते हैं वे कभी-2 सोचते हैं कि यही उनकी सबसे बड़ी समस्या है। विघ्न एक बड़ा बुरा शब्द मालूम होता है: "मेरा ध्यान बंट गया।" मैं अटक गया। जब हम इस तरह का ध्यान अभ्यास करते हैं, हम कोशिश करते हैं कि हम किसी भी चीज़ के बारे में ऐसा मत न रखें कि यह बुरा है या यह अनुचित है। बल्कि हम हर चीज़ को वापिस अपने ध्यान में लाने की कोशिश करते हैं। दूसरे शब्दों में, हम उस पर विचार करते हैं। उस पर ध्यान देते हैं। यह क्या हो रहा है। इस पर ध्यान दो, उस पर ध्यान दो। "मेरा ध्यान फिर कहीं अटक गया। मैंने किसी को खांसते सुना,और उससे मुझे याद आया कि मेरा दोस्त बीमार था, और मैं सोचने लगा कि मुझे अपने दोस्त को मिलने के लिए हस्पताल जाना चाहिए, और फ़िर मैंने सोचा मालूम नहीं काइसर हस्पताल कब तक खुला है, और तब मैं ध्यान देता हूँ, "मैं तो अपनी क्लास पढ़ा रहा हूँ ...!" तो यह एक उदाहरण है कैसे इंसान अपने विचारों में खिचता चला जाता है। यह कुछ अनजाने में होने का उदहारण है, पर यह ज़रूरी नहीं है की हम अनजाने में ही ऐसे सोच में पड़ते हों। तो बजाए यह कहने के कि ऐसा नहीं होना चाहिए था, मुझे एक विचार के बाद दूसरे विचार में नहीं पड़ना चाहिए था, हमें करना यह चाहिए कि हम उन सब विचारों को वापिस अपने ध्यान में ले आएं। "देखो, तो ऐसे ध्यान भंग होता है। ऐसे मन चीज़ों में फँस जाता है, विचारों और भावनाओं में बह जाता है। तो यह इस तरीके से होता है। तो यह ठीक इस तरीके से होता है।"
क्या आप इस सिद्धांत को समझते हैं? यह एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। कभी-कभी जो लोग दस-दस साल से ध्यान कर रहे हैं, उन्होंने भी यह सिद्धांत नहीं सीखा है। उन्होंने यह नहीं सीखा है कि ऐसा कुछ भी नहीं होता है जिसे होने की ज़रुरत नहीं है। ऐसा कुछ भी नहीं है जो आप कहें कि," ऐसा नहीं होना चाहिए"। बल्कि, यह एक और चीज़ है जिस पर हमें ध्यान देना सीखना चाहिए। और अगर आप अच्छी तरह से ध्यान देना सीख लें, तो उस ध्यान देने में भी आप मुक्ति का अहसास पाएँगे। जब हम किसी चीज़ पर ध्यान दें, उस ध्यान देने का भी एक खास तरीका है जहाँ आप उस समय जो भी हो रहा है, उसमें अटके या फंसे नहीं है, उससे पीड़ित या प्रभावित नहीं हैं, या आप इस बात से संचलित नहीं हैं कि आपके अन्दर या बाहर क्या हो रहा है। और अगर आप में अपने अंदरूनी दबावों और बाहरी प्रभावों से बचने की क्षमता है तो यह प्रक्रिया आपको अपना जीवन बिताने के लिए अक अद्भुत शक्ति देती है। यह ज्ञान हमें तब मिलता है जब हम ध्यान को इस नए तरीके से इस्तेमाल करना सीखते हैं।
-गिल फ्रोंस्डैल
SEED QUESTIONS FOR REFLECTION: What do you understand by "folding everything back into the attention?" How do you develop the ability to not beat yourself up for lapses, and instead constructively move forward? Can you share a personal story where this principle has played an important role in your life?
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