आध्यात्मिकता का सार
-विमला ठाकर (26 दिसंबर, 2012)
आध्यात्मिक होने का अर्थ है, जीवन के स्पष्ट, अस्पष्ट और अनंत तीनों ही पहलुओं से एक साथ सम्बन्ध रख पाना। सच्ची आध्यात्मिकता भय-आसक्त मनुष्यों के लिए जान बचाने का कोई रास्ता नहीं दिखाती । संसार में बच निकलने के और कई रास्ते हैं, पर वे आध्यात्मिकता का सार नहीं हैं। इस बात को ठीक से समझ लें।
असल में धार्मिक और पूर्णतः आध्यात्मिक इन्सान होना काफी हिम्मत का काम है। जब हम खुद को राष्ट्र, धर्म, सम्प्रदाय, और सिद्धांत के नाम पर मानव निर्मित दीवारों पर नहीं बल्कि जीवन की संपूर्णता पर समर्पित कर देते हैं, फिर हम किसी खास जाति या धर्म नहीं, बल्कि पूरे भूमंडलीय परिवार का हिस्सा बन जाते हैं।
आध्यात्मवाद में हम में से कोई भी चुनौतियों से नहीं बच सकता। हम जहाँ भी जाएँगे, वो चुनौतियाँ हमारा पीछा करेंगी। हमारे अन्दर मानव जाति की विरासत का निवास है; वह ज्ञान, अनुभव, सम्पूर्ण मानव जाति के वो संस्कार, हर मनुष्य के मन का हिस्सा हैं।
आप यह समझने लें कि आध्यात्मिक जांच का मतलब जीवन और जीवित चीज़ों से दूर हटना नहीं बल्कि जीने के तरीके में एक नए गुणात्मक दृष्टिकोण को जन्म देना है। यह जीवन से भागने का तरीका नहीं है और न ही मनोगत और श्रेष्ट अनुभवों को इक्कट्ठा करने का कोई अहंकार-केन्द्रित कार्य। हम अक्सर धार्मिक और आध्यात्मिक खोज, और साधना के बारे में बहुत तुच्छ तरीके से बात करते हैं।
अगर हम आध्यात्मिक जांच के माध्यम से कुछ व्यक्तिगत लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं, तो हम केवल अपनी महत्त्वाकांक्षाओं का शारीरिक और मानसिक क्षेत्र से धार्मिक क्षेत्र में स्थनान्तरण कर रहे हैं। आध्यात्मिक जांच, आत्मकेंद्रित या अहंकार-केन्द्रित कार्य नहीं है। मानव जाति जिन चुनौतियों से जूझ रही है, यह उनका सामना करने का तरीका है।
मनोगत क्षेत्र में हमें कई दिलचस्प अनुभव हो सकते हैं, इस किस्म की आध्यात्मिकता पैसा बनाने का एक अच्छा साधन बन चुकी है। कई लोग यही काम करते हैं, और दूसरों में खास मानसिक शक्ति को जागृत करने की उम्मीद जगा कर उनसे पैसा ऐंठते हैं।
लेकिन धर्म और आध्यात्मिकता अमूल्य, पवित्र चीज़ें हैं, खरीदने-बेचने का सामान नहीं, न ही नए संप्रदाय स्थापित करने और शिष्य इकट्ठे करने का साधन हैं।
अगर हम आध्यात्मिकता के नाम पर खेल खेलते रहे, हम अपने अहम् को परिवर्तन की आग से बचाने की कोशिश में लगे रहेंगे, वो परिवर्तन जो हमें सच्चाई तक पहुँचाने में मदद कर सकता है। अगर हम यही चाहते हैं, तो हमें अपनी सफाई देने की खुली छूट है, लेकिन अगर हम सिर्फ मानसिक अनुभव इकट्ठे करने में लगे हैं और तंत्र-मन्त्र से खिलवाड़ कर रहे है, तो यह नाटक करना बेकार है कि हम आंतरिक परिवर्तन का कार्य कर रहे हैं। आध्यात्मिकता की राह पर चलने का उद्देश्य है खुद को अहम् के जेलखाने से बाहर निकाल पाना; आंतरिक अनुभवों और तंत्र-मन्त्र के माध्यम से उस जेलखाने को पहले से ज्यादा रोचक बनाना नहीं।
हम में से बहुत से लोग अपने जीवन को आध्यात्मिक दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं, अज्ञात और गुप्त चीज़ों को जानने की कोशिश, प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों में पड़ने की कोशिश, अलौकिक ज्ञान में उलझने की कोशिश, लेकिन जब तक इन्सान अपने आप को संस्कारों के जंजाल से मुक्त नहीं कर लेता, सिर्फ नाम के लिए आध्यात्मिक जानकारी का कोई फायदा नहीं है।
मानव जाति की सबसे बड़ी ज़रुरत अलौकिक जानकारी और अनुभव इकट्ठे करना नहीं, अत्यावश्यक हैं परिपक्व और सम्पूर्ण इंसान जो अहंकार, आसक्ति, भावनात्मक असंतुलन से परे हैं और जो सचेत, ध्यानशील, संवेदनशील, रचनात्मक और सजीव हैं।