हिंडोला
- कार्ल रेंज (10 सितम्बर, 2012)
आपका स्वागत है| इस मेले मैं आपका स्वागत है| मैं देख रहा हूँ कि आप तो पहले से ही हिंडोले पर बैठ चुके हैं| आप इस हिंडोले को बहुत अच्छी तरह चला रहे हैं| आप हिंडोले की एक बहुत ख़ूबसूरत गाड़ी मैं बैठे है जिसमें एक्स्लरेटर भी है और ब्रेक भी| लेकिन इस गाड़ी कि सबसे बड़ी ख़ासियत है उसका स्टीअरिंग व्हील, जिसे आप जैसे चाहें वैसे घुमा सकते हैं, और आप यही कर भी रहे हैं| पर हैरानी की बात यह है आप स्टीअरिंग व्हील को घुमाने, गाड़ी की रफ़्तार को बढ़ाने या फ़िर उसे रोकने की जितनी भी कोशिश करते हैं, गाड़ी फ़िर भी बस एक ही दिशा मैं चलती रहती है|
आपका "अहम्" इसी गाड़ी की तरह है| ये कभी दायें को घूमता है तो कभी बाएं को, लेकिन वो किसी नतीज़े से पूरी तरह संतुष्ट नहीं होता| वो सोचता है, "मैं ज़रा देखूं की दूसरे लोग अपनी-२ गाड़ी कैसे चला रहे हैं? ये आदमी क्या कर रहा है या वो आदमी मोड़ आने पर निश्चित ही अपना सारा भार एक खास तरीके से एक ओर डाल रहा है| मुझे भी शायद ऐसा ही करना चाहिए|" पर ऐसा करने से कुछ नहीं बदलता| गाड़ी तो बस गोल- गोल ही घूमती रहती है|
कभी कभी हिंडोला कुछ रुक जाता है| यह एक अल्पविराम है जिसे तिब्बती लोग "बार्ड़ो" के नाम से बुलाते हैं| फिर आप किसी दूसरे वाहन की खोज करते हैं| "चलो अब इस घोड़े पर चढ़ कर देखा जाए| थोड़ी देर घोड़ा ही दौड़ाया जाए| शायद यही मेरे भाग्य में है|" काफी अच्छा सोचने का तरीका अपनाया है आपने| या फ़िर अगर आप ज़रा समझदारी से काम लें तो आप शायद एक छोटे स्कूटर को ही अपनी सवारी चुनें क्योंकि इन सब गाड़ियों को चलाने की दौड़ धूप ने आपको थका दिया है और आपके विश्वास को कुछ हिला दिया है| इन गाड़ियों के सञ्चालन ने आपके अहम् को अत्यधिक परिपक्व कर दिया है और कहीं संयोगवश आपकी गाड़ी भी उसी तरफ जा रही है जिधर हिंडोले का रुख है, फ़िर तो आप काफी गर्व से कहेंगे," वाह, मैंने तो कमाल कर दिया! अब तो मुझे सब बहुत अच्छे से समझ आ गया!" अब आपने जान लिया है कि ये सब कैसे चलते हैं| "देखो, ये अब पूरी तरह से मेरे नियंत्रण मैं है|" आप पूरे ब्रह्माण्ड से एकलय हैं , पूरी सृष्टि से अनुरूप| वो अहम् जो इतना सरल मालूम होता है, हमें उसी दिशा मैं धकेलता रहता है जिस दिशा मैं हिंडोला घूम रहा है| " देखो, मैं कितना बढ़िया सञ्चालन कर रहा हूँ! ये पूरा हिंडोला इसी लिए चल रहा है क्योंकि इसे मैं ऐसे चला रहा हूँ! अरे, मुझे देखो!"
अगर आप इस कला मैं इतने खास तरीके से माहिर हो गए हैं तो फ़िर और सबको भी यह बता सकते हैं कि वो अपनी गाड़ी कैसे चलाएं| " आपको भी बस वही करना है जो मैं कर रहा हूँ|"
अब आप एक पूर्ण रूप से जागृत ड्राइवर बन गए हैं| "उसकी तरह चलो|" पीछे से कुछ लोग उत्साहित हो कर कहते हैं| सबसे अच्छी बात तो ये होगी कि आप पूरे हिंडोले को ही घेर लें: " आप सब अन्दर आ जाइए और मेरे पीछे बैठ जाइये! मैं और ये हिंडोला अब एक ही हैं!" अब आप एक गुरु बन गए हैं|
अगर आप चुपके से और कार्यरत होना चाहते हैं तो आप कोई महत्वपूर्ण कार्य संभाल सकते हैं जैसे कि फायर ब्रिगेड या एम्बुलेंस चलाना| या फिर अगर आप सतर्क रहना चाहते हैं तो भले ही आप सिर्फ एक एम्बुलेन्स का पीछा कर सकते हैं!
यहाँ सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये है कि आप इस पूरी प्रक्रिया को अपने दिमाग मैं बिठा लें - आप सही वक्त पर एक्स्ल्रेटर यो ब्रेक दबाएँ और सबसे बड़ी बात ये कि आप स्टीअरिंग व्हील को बहुत माहिरी से घुमाएँ | इससे औरों को भी मदद मिलेगी| इस प्रकार न ही आप अपनी गाड़ी को एकदम ठीक रास्ते पर रख सकेंगे बल्कि आप पूरे हिंडोले के ठीक चलने कि कामयाबी में भी योगदान देंगे| काश हर कोई इस तरह ये गाड़ी चला सकता| आपने सब कुछ नियंत्रित कर लिया है| और एक दिन अचानक आप स्टीअरिंग व्हील से अपना हाथ हटा लेते हैं| अरे! अब आप हैरान हैं कि गाड़ी तो स्वयं ही चल रही है| ये तो अपने आप ही चलती है| हाँ, अहम् ही गाड़ी चला रहा है| आपको ज़रा भी ज़ोर लगाने कि आवश्यकता नहीं है| आप बस आराम से बैठें और इस सवारी का आनंद लें| ये हमेशा सुख की राह पर ही चलेगी|
-कार्ल रेंज
SEED QUESTIONS FOR REFLECTION: What has been your experience with the reflection that the Self "always drives directly to happiness?" The author contrasts the more visible driver to the quiet driver - how do you choose who you want to be? Can you share a personal experience where you found yourself aiming in the same direction as the merry-go-round (or united with it)?
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