सेवारत मार्गदर्शक -विनोबा भावे
आज समाज को प्रगति के लिए "नेताओं" की ज़रुरत नहीं है। मेरा सोचना है कि महान व्यक्ति उभरते रहेंगे और वे मानवता की प्रगति के लिए महत्त्वपूर्ण भी होंगे, पर वे इतने महान होंगे की वे नेतृत्व के मोर्चे पर खड़े होने से इंकार कर देंगे। आम आदमी ऐसे व्यक्तियों के पीछे-पीछे भले ही न चले, लेकिन उनके विचारों, सिद्धांतों, और दृष्टिकोण पर ध्यान ज़रूर देगा और जब वह इन विचारों को और लोगों के साथ बांटेगा तो समाज ज़रूर आगे की ओर बढ़ेगा।
उदाहरण के लिए "भूदान आन्दोलन" को ही ले लें - क्योंकि उस आन्दोलन का पूरा संचालन पद यात्रा के दौरान हुआ इसलिए वहां कोई केन्द्रित नेतृत्व नहीं था। देखा जाए तो महात्मा बुद्ध ने भी कुछ सामान्य विचारों को लेकर हजारों किलोमीटर की पद यात्रा की। पर क्योंकि उनके विचार इतने योग्य थे और उन्होंने अपना पूरा जीवन उन विचारों में लीन होकर बिता दिया कि बौद्ध धर्म पूरे विश्व में फैल गया और आज ढाई हज़ार सालों बाद भी मान्य है।
कोई भी बदलाव, या आन्दोलन हमेशा एक छोटी जगह से शुरू होता है, पर हवाएं उन्हें दूर-दराज़ तक फैला देती हैं। इसी तरह क्योंकि हम पैदल चलते हैं, इसलिए जो नेतृत्व बनता है वह केवल स्थानीय और सीमित रह जाता है। बल्कि मैं फिर कहना चाहूँगा की हम स्थानीय नेता नहीं, हम स्थानीय सेवक बना रहे हैं।
जब हम लोगों को सेवा के भाव से संपर्क करते हैं तो हम उनके ह्रदय को छूते हैं और उनका मन खुद ही अपने भाइयों को ज़मीन देने के लिए पसीज उठता है। वास्तव में, हमारी असली शक्ति इसी बात में है कि हम सेवक हैं। जब हम किसी व्यक्ति की तरफ ईमानदारी और सेवा भाव से बढ़ते हैं, तभी उसके मन में छुपे ईश्वर को देखा या पाया जा सकता है।
सोचो कि कैसे अलग-अलग अंग मिलजुल कर हमारे शरीर की सेवा करते हैं। अगर कोई आपके सिर पर वार करने की कोशिश करता है तो हाथ खुद बा खुद आपके सिर को बचाने के लिए उठ जाता है। हाथ यह काम किसी उम्मीद या डर की वजह से नहीं करता। हाथ इसलिए उठता है क्योंकि वह अपने आप को उस पूरे शरीर का अंग समझता है और इसलिए शरीर को बचाना अपना कर्तव्य मानता है।
जब हम सब समाज में अपने आप को एक सेवक की दृष्टि से देखेंगे तो पूरा आकाश ऐसे जगमगा उठेगा जैसे अँधेरी रात में अनगिनत तारे टिमटिमा रहे हों। समाज को पूर्णिमा के चन्द्रमा से सजा आकाश मत समझो। चाँद की तेज़ चमक, हजारों तारों की साधारण पर असल रोशनी से हमारा ध्यान हटा देती है। लेकिन अंधेरी रात में ये असली सेवक ही आगे बढ़कर आते हैं, मानो इस विशाल और असीम ब्रह्मांड में वे एक दूसरे से किसी अनदेखी शक्ति से जुड़े हों।
-विनोबा भावे
SEED QUESTIONS FOR REFLECTION: What does being a servant leader mean to you? How can we cultivate ourselves to be servant leaders? Can you share a personal story that illustrates servant leadership?
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