Perfume Of Wholeness

Author
Vimala Thakar
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Image of the Week“संपूर्णता की सुगंध “
विमला ठाकर के द्वारा

इक्कीसवीं शताब्दी की शुरुआत में एक नई चुनौती हमारा इंतजार कर रही है: विभाजन ( छोटे छोटे टुकड़े करने की प्रक्रिया ) से परे जाना, गंभीर सोच वाले लोगों द्वारा रखे गए मूल्यों के अनुचित संग्रहों से परे जाना, अपने स्वीकृत दृष्टिकोणों की आत्म-धार्मिकता से परे परिपक्व होना और संपूर्ण जीवन और संपूर्ण क्रांति के लिए तैयार होना।

इस युग में, सामाजिक चेतना के बिना आध्यात्मिक जिज्ञासु बनना एक विलासिता है जिसे हम बर्दाश्त नहीं कर सकते, और मन की आंतरिक कार्यप्रणाली की वैज्ञानिक समझ के बिना सामाजिक कार्यकर्ता बनना सबसे बड़ी मूर्खता है। इन दोनों में से किसी भी दृष्टिकोण को कोई महत्वपूर्ण सफलता नहीं मिली है। अब कोई शंका ही नहीं है कि एक जिज्ञासु को सामाजिक रूप से सचेत होने का प्रयास करना होगा या एक कार्यकर्ता को मानव मानस में नैतिक संकट, आंतरिक जीवन के प्रति चौकस रहने के महत्व के बारे में समझना होगा। हमारे लिए चुनौती यह है कि हम मनुष्य के रूप में बहुत गहराई तक जाएं, ऊपर ऊपर के पूर्वाग्रहों और प्राथमिकताओं को त्यागें, वैश्विक स्तर पर समझ का विस्तार करें, जीवन की समग्रता को एकीकृत करें, और उस समग्रता के बारे में जागरूक हों जिसकी हम अभिव्यक्ति हैं।

जैसे-जैसे हम समझ में गहरे उतरते हैं, आंतरिक और बाह्य के बीच स्वेच्छित विभाजन गायब हो जाता है। जीवन का सार, जीवन की सुंदरता और भव्यता, इसकी संपूर्णता है। वास्तव में जीवन को आंतरिक और बाह्य, व्यक्तिगत और सामाजिक में विभाजित नहीं किया जा सकता। हम सामूहिक जीवन की सुविधा के लिए, विश्लेषण के लिए अपनी इच्छा से विभाजन कर सकते हैं, लेकिन मूलतः आंतरिक और बाह्य के बीच किसी भी विभाजन की कोई वास्तविकता नहीं है, कोई अर्थ नहीं है।

हमने समाज के ठोस और पूरी तरह से बंद डिब्बों और जीवन के विभाजन को सत्य और आवश्यक मान लिया है। हम इन टुकड़ों के साथ संबंध में रहते हैं और आंतरिक विभाजनों को स्वीकार करते हैं - हम जो विभिन्न भूमिकाएँ निभाते हैं, विरोधाभासी नैतिक मूल्य प्रणालियाँ, विरोधी उद्देश्य और प्राथमिकताएँ - वास्तविकता के रूप में। हम आंतरिक रूप से खुद से असहमत हैं; हम मानते हैं कि आंतरिक मूल रूप से बाह्य से अलग है, कि जो मैं हूँ , जो स्व है, वह गैर-मैं, दूसरों से बिल्कुल अलग है, कि लोगों और राष्ट्रों के बीच विभाजन आवश्यक है, और फिर भी हम आश्चर्य करते हैं कि दुनिया में तनाव, संघर्ष, युद्ध क्यों हैं। संघर्ष उन दिमागों से शुरू होते हैं जो विभाजन में, टुकड़ों में विश्वास करते हैं और पूर्णता के बारे में जानते नहीं हैं।

एक समग्र दृष्टिकोण का अर्थ है जीवन को एक पूर्ण और एकजुटता के रूप में देखना। इसका मतलब है कि जीवन को हम किसी भी रूप में विभाजित नहीं कर सकते, जैसे आध्यात्मिक और भौतिक, व्यक्तिगत और सामूहिक, या राजनीति, समाज, और पर्यावरण में। हम जो भी करते हैं, वह संपूर्णता पर असर डालता है, क्योंकि हम हमेशा संपूर्णता से जुड़े होते हैं। यह महसूस करना कि हम एकजुट हैं, और यह कि अलगाव केवल एक भ्रम है, यह हमारी सोच और कार्यों को बदल सकता है। जब हम सत्य को समझते हैं, तो हम असत्य से दूर रहते हैं और उसे कोई महत्व नहीं देते। इस प्रकार की मानसिकता को अपनाना सामाजिक बदलाव की ओर पहला कदम है।

जब समग्रता, संपूर्णता का बोध हृदय में होता है, और प्रत्येक प्राणी के एक दूसरे से संबंध का बोध होता है, तब किसी एक टुकड़े के प्रति अनन्य दृष्टिकोण अपनाने और उसमें अटक जाने की कोई संभावना नहीं रह जाती। जैसे ही संपूर्णता का बोध होता है, हर क्षण पवित्र हो जाता है, हर गतिविधि पवित्र हो जाती है। एकता की भावना अब बौद्धिक संबंध नहीं रह जाता। हम अपने सभी कार्यों में संपूर्ण, समग्र, स्वाभाविक, बिना प्रयास के होंगे। प्रत्येक क्रिया या अक्रिया में संपूर्णता की गेहरी सुगंध होगी।

चिंतन के लिए बीज प्रश्न:
⁃ क्या आप मानते हैं कि समाज में विभिन्न विभाजन और भेदभाव की मानसिकता को समाप्त करना, समाज में सुधार और सकारात्मक बदलाव की ओर पहला कदम है?
⁃ क्या आप उस समय की कोई व्यक्तिगत कहानी साझा कर सकते हैं जब आपको अपने किसी विशिष्ट दृष्टिकोण के बारे में पता चला और आप उससे आगे बढ़कर संपूर्णता के स्थान पर पहुँच पाए?
⁃ आपको प्रत्येक क्षण को संपूर्णता की जागरूकता के साथ जीने में क्या मदद करता है?

 

Vimala Thakar was a spiritual teacher, author and revered mystic. Excerpted from her book, Spirituality and Social Action.


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