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Image of the Week"मैं" रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा

मेरी चेतना के रंग ने पन्ने को हरा और माणिक को लाल रंग दे दिया ।

मैंने आसमान को निहारा , और वहाँ प्रकाश पूर्व और पश्चिम में चमक फैला गया ।

मैंने गुलाब की ओर देखा और पुकारा - 'यह सुंदर है!' और सुंदर वह बन गया ।

आप कहते हैं, 'यह दर्शनशास्त्र है, कोई काव्य रचना नहीं।' मैं कहता हूँ, 'यह सत्य है, और यह ही इसे कविता बनाता है।

यह मेरा गर्व भरा दावा है – और यह गौरवता पूरी मानवता की ओर से , कि ब्रह्मांड की कलात्मक उत्कृष्ट कृति , सिर्फ मानव अहम् के कैनवास पर ही खींची जाती है |

दार्शनिक वर्ग हर सांस में अस्तित्व को नकार रहे हैं - 'नहीं, नहीं, नहीं। पन्ना नहीं है , माणिक नहीं है , प्रकाश नहीं है , गुलाब नहीं है । न मैं हूँ , न तुम हो ।

इस बीच, असीमता में लिप्त स्वयं, मानवता की सीमाओं के भीतर खुद को तलाश रहा है। इसे 'मैं' कहा जाता है।

चिंतन के लिए बीज प्रश्न: आप इस धारणा से कैसे संबंधित हैं कि सिर्फ मानव अहम् के कैनवास पर ही ब्रह्मांड की कलात्मक उत्कृष्ट कृति खींची जाती है? क्या आप उस समय की कोई व्यक्तिगत कहानी साझा कर सकते हैं जब आपने अपनी असीमता को, अपनी मानवीय सीमाओं के भीतर , खुद को तलाशते हुए महसूस किया हो ? आपकी असीमता, आपके मानवता के कलात्मक कैनवास पर, अपने आपको कैसे अभिव्यक्त करती है ?
 

Rabindranath Tagore was a poet, author, artist, and the receipient of the Nobel Prize for Literature in 1913 for his poetry.


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