मेरे जीवन का सबसे अच्छा दिन , डगलस हार्डिंग द्वारा
मेरे जीवन का सबसे अच्छा दिन - मेरा पुनर्जन्म, यूं कहें तो - वह दिन था जब मुझे पता चला कि मेरे कोई मस्तिष्क ( Head) नहीं है। यह कोई साहित्यिक चाल नहीं है, अथवा किसी भी कीमत पर दिलचस्पी जगाने के लिए बनाया गया कोई मज़ाक नहीं है। मैं पूरी गंभीरता से कह रहा हूँ: मेरे कोई मश्तिष्क नहीं है।
अठारह साल पहले, जब मैं तैंतीस साल का था, तब मैंने यह खोज की थी। हालाँकि यह निश्चित रूप से अचानक हुआ था, लेकिन यह एक ज़रूरी पूछताछ के जवाब में हुआ था; मैं कई महीनों तक इस सवाल में डूबा रहा था : मैं क्या हूँ? इस तथ्य का शायद इससे कोई लेना-देना नहीं था कि मैं उस समय हिमालय में घूम रहा था; हालाँकि उस देश में मन की असामान्य अवस्थाएँ अधिक आसानी से आ जाती हैं। हालाँकि वह चाहे जो भी हो, एक बहुत ही शांत साफ़ दिन, और जिस चोटी पर मैं खड़ा था, वहाँ से धुंधली नीली घाटियों के ऊपर दुनिया की सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला का नज़ारा, जिसमें कंचनजंगा और एवरेस्ट अपनी बर्फीली चोटियों के बीच अगोचर थे, यह एक शानदार दृश्य के योग्य व्यवस्था बनी थी।
जो वास्तव में हुआ वो कुछ बेतुके रूप से सरल था एवं भव्यता से भी परे था : हुआ ये कि मेरा सोचना बंद हो गया | एक तरह की ख़ामोशी , एक विचित्र प्रकार की चौकस लंगडाहट अथवा संवेद्शुन्यता मेरे ऊपर छाने लगी| तर्क और कल्पनाएँ एवं सभी मानसिक बकबक बंद होने लगी | एक बार के लिए तो जैसे शब्दों ने सही में मुझे छोड दिया | भविष्य काल और भूतकाल सब दूर छंट गए | मैं भूल गया कि मैं कौन हूँ, मैंक्या हूँ, मेरा नाम क्या है, मैं भूल गया मानवपना , जानवर पना और वो सभी चीज़ें जो मेरी कही जा सकती थीं | ऐसा लग रहा था मानो मैं उसी क्षण पैदा हुआ हूँ, बिलकुल ही नया , बुद्धिहीन , अपनी पुरानी यादों से एक बच्चे की तरह अनभिज्ञ | उस वक़्त सिर्फ “ वर्त्तमान “ ही बचा था , वह वर्त्तमान का क्षण और उस क्षण में जो भी समाया हुआ था | सिर्फ देखना ही काफी था | और मैंने देखा कि कैसे मेरे खाकी पतलून पहने हुए पैर, मेरे भूरे रंग के जूतों में समा रहे थे , खाकी पहने हाथों की बाहें कैसे मेरे गुलाबी हाथों पे जाकर ख़त्म हो रही थीं , मेरा खाकी शर्ट कैसे , जहाँ ख़त्म हो रहा है , वहाँ कुछ भी नहीं है | निश्चित ही वो मेरे गले या सिर में ख़त्म नहीं हो रहा था |
मुझे कुछ भी वक़्त नहीं लगा ये देखने में कि जो शुन्यता है, ये जो एक गड्ढा है जहाँ मेरा सर होना चाहिए था , एक साधारण खालीपन नहीं है , यह सिर्फ एक साधारण शुन्यता नहीं है | इसके विपरीत ये पूरी तरह से भरा हुआ था | यह एक विशाल शुन्यता है ,विशालता से भरी हुई, एक शुन्य जिसमे सबके लिए जगह थी – हरी घास के लिए जगह थी , पेड़ों के लिए जगह थी , दूर पहाड़ियों के लिए जगह थी और जगह थी दूर नज़र आती बर्फीली पहाड़ियों के लिए जो नीले आसमान में बादलों से ढकी हुई थीं| मैंने अपने मश्तिष्क ( सिर) को खो दिया पर मुझे एक नयी दुनिया मिल गयी |
यह सब, सचमुच, बहुत ही होश उड़ा देने वाला एवं शानदार था। मुझे लगा कि मैंने साँस लेना बंद कर दिया है, मैं ईश्वर में लीन हो गया हूँ। यहाँ यह शानदार दृश्य, साफ हवा में चमक रहा था, अकेला और बिना सहारे के, रहस्यमय तरीके से शून्य में स्थगित, और (और यह सच में चमत्कारिक , आश्चर्यजनक और आनंददायक था) "मैं" से पूरी तरह मुक्त, किसी भी निरीक्षक द्वारा दागदार नहीं। इसकी पूरी उपस्थिति ( मौजूदगी ) मेरी पूरी अनुपस्थिति ( ग़ैरमौजूदगी) थी, शरीर और आत्मा। हवा से हल्का, कांच से साफ, खुद से पूरी तरह मुक्त, मैं कहीं भी नहीं था।
फिर भी इस जादू और अलौकिक दृष्टि के बावजूद, यह कोई सपना नहीं था। यह कोई अच्छा रहस्य भी नहीं था। इसके विपरीत यह जैसे अचानक मेरे साधारण जीवन की मेरी नींद से जागने जैसा था। और यह सपनों का अंत भी लगता था। यह एक ऐसी चमकती वास्तविकता थी जो पूरी तरह से साफ और स्पष्ट थी और भ्रमित करते मन से बिलकुल मुक्त थी । यह एक उजागर होना था , आखिरकार, उस बात का जो स्वतः स्पष्ट थी| यह जीवन काल के उलझे हुए इतिहास में एक स्पष्ट क्षण था | यह थी उस चीज़ को नकारने को छोड़ने की ( जिसे मैं अपने बचपन से) अपनी व्यस्तता एवं चलाकी पने के कारण देख पाने में असमर्थ था |
यह थी वह नग्न , बिना आलोचनात्मक ध्यान की अवस्था, उस स्थिति के लिए जो हमेशा से मेरे को घूर रही थी , मेरी बिना किसी चेहरे की स्थिति | । अगर संक्षिप्त में कहें तो यह बहुत ही साधारण , सहज एवं सीधी स्थिति थी जो बिना किसी बहस , सोच एवं शब्दों के थी |
अब मेरे मन में कोई सवाल नहीं उठ रहा था। उस अनुभव से ऊपर कोई संदर्भ भी नहीं था, बस शांति और गहरा आनंद था। और एक भारी बोझ को छोड़ने की एक खूबसूरत अनुभूति थी।
मनन के लिए मूल प्रश्न: आप इस धारणा से कैसा नाता रखते हैं कि हमारा मश्तिष्क सिर्फ एक शुन्य पन नहीं है पर एक ऐसा स्थान है जो सबकुछ अपने में समा लेता है ? क्या आप उस समय की एक कहानी साझा कर सकते हैं जब आपने महसूस किया को कि आपने अपना मश्तिष्क तो खो दिया पर एक दुनिया पा ली हो ? आपको रुक के सोचने एवं सोचने से रुकने के बीच सामंजस्य बैठाने में किस चीज़ से मदद मिलती है ?