“मुक्ति बोध “ - साल्वाडोर पो के द्वारा
अगर मुझे मुक्ति बोध को परिभाषित करना होता, तो मैं कहता, "यह अपने आप से सामंजस्य बैठाना है कि “जो है, वह ही है।" इस बात का यहाँ पर कोई विरोध करने वाला नहीं है। (इसे फिर से पढ़ें।)
मुक्ति बोध अच्छा महसूस करने की कोई नई स्थिति नहीं है। आप जिस भी स्थिति में हों या भावना जो भी आ जा रही हो, , प्रिय या अप्रिय, वह आएगी भी और जाएगी भी । मुक्ति बोध कोई अंतिम स्थिति या अनुभव नहीं है जहाँ आप हमेशा एक निश्चित एहसास या भावना में सुखद आराम कर रहे होते हैं ।
मुक्ति बोध एक सामंजस्य है जो कहता है: जो है, वह यह ही है; ये अभी जो और जैसा हो रहा है इसके अलावा किसी अन्य तरीके से नहीं हो सकता है; और कोई भी इसके बारे में कुछ कर नहीं सकता । जब यह सामंजस्य हो जाता है तो विरोध और बहस समाप्त हो जाती है। यह प्रतिरोध और बहस ही अहंकार है। अहंकार वह है जो मानता है कि वे ही कर्ता हैं ,और ऐसा कुछ है जो वे ही कर सकते हैं , करना चाहिए या करने की आवश्यकता है। यह एक मान्यता है; यह वास्तव में सच नहीं है। यह एक लहर है जो आती है और जाती है।
सुन के ऐसा प्रतीत होता है मानो ऐसी परिस्थितियां पैदा हो रही हैं, और मन एवं शरीर का जीव तंत्र अपना काम कर रहा है | कुछ भी गलत नहीं है| अगर विचार एवं भावनाएँ उन परिस्थितियों के वजह से सतह पर आ रही हैं , तब वह गलत नहीं हैं , तब वह सही हैं | अगर आपका ही कोई परिवार जन बीमार है , और उसके वजह से काफी मात्रा में भय एवं चिंता है , तो यह गलत नहीं है, यह सही है | मन एवं शरीर का जीव तंत्र यही काम करता है| अगर हमारे मन में ये विचार उठता है कि “ ये गलत है कि मेरे अंदर भय और चिंता है , क्योंकि मुझे तो इनसे मुक्ति बोध पाना है” तो ये ही अपने आप में एक कथित समस्या है| यह विचार कि तुम्हे मुक्ति बोध पाना है और मुक्ति बोध मिल भी जायेगा , तुम्हारे अन्दर एक संघर्ष पैदा कर रहा है|
हाँ , और मैं यह भी सुनता रहता हूँ कि उसके बाद एक गहरी शान्ति महसूस भी होगी|
आप इसलिए यह कहते हैं क्योंकि आपके विचार से मुक्ति बोध का अर्थ है शांति और ख़ुशी का एहसास होना| हम सबकी तरह, आप भी ख़ुश होना चाहते हैं | यह भी ठीक है , पर क्या हम इस सोच को इमानदारी से देख सकते हैं | आप एक तरफ यह कहते हैं कि आपको मुक्ति बोध चाहिए, देखिये , आपको मुक्ति बोध नहीं चाहिए| वास्तव में आप यह कह रहे हैं कि मुझे मुक्ति बोध की उतनी परवाह नहीं है , मुझे तो बस खुश होना है| शांन्ति पाना और ख़ुश होना , स्थितियां हैं और वो आती जाती रहती हैं | मानसिक स्वतंत्रता इन स्थितियों से आज़ाद है|
मुक्ति बोध का अर्थ है इस बात की चिंता का नहीं होना कि कौन सी स्थिति आ रही है और कौन सी स्थिति जा रही है | आपको को इमानदारी से देखना होगा – आपको मुक्ति बोध नहीं चाहिए |लेकिन आप जिस शांति की बात कर रहे हैं, वह क्या है?
शांतिपूर्ण भावनाएं आती और जाती रहती हैं। मैं जिस शांति की बात कर रहा हूं, वह बस अपने आप से सामंजस्य बैठाना है कि जो है, वह ही है। कभी-कभी यह अच्छा महसूस कराता है और कभी-कभी यह अच्छा नहीं महसूस करता है । यही जीवन है, और आप इस बात से अपने आप में सामंजस्य बैठा लेते हैं। उस अपने आप के सामंजस्य में, अस्तित्व की सहजता है। यह बहस का अंत है, और इसके साथ ही, आप अधिक से अधिक शांत हो जाते हैं और मानसिक उत्तेजना की उलझन कम से कम होती जाती है।
सिर्फ़ आप ही नहीं,हर कोई,यह दृढ़ विचार रखता है कि मुक्तिबोध भावना महसूस करने की ही कोई अवस्था है | हर कोई | विचार कुछ इस तरह लग सकता है, "मैं अच्छा महसूस करने की कोई स्थिति प्राप्त करने जा रहा हूँ, और जब मैं ऐसा करूँगा, तो मुझे हमेशा अच्छा महसूस होगा," या "मैं शुन्यता या शुन्य विचार की स्थिति प्राप्त करने जा रहा हूँ, और जब मैं ऐसा कर लूँगा , तो मेरे मन में कभी भी , कोई भी विचार नहीं आएगा ।" इस विशिष्ट स्थिति की धारणा के साथ यह अपेक्षा भी जुड़ी हुई है कि "यह कब होने वाला है?"
अगर आप इन विचारों से आज़ादी चाहते हैं, तो अभी ही छुट्टी ले लें | देखें कि आप मानसिक रूप से स्वतंत्र हैं, अभी । इस छुट्टी में ही मानसिक स्वतंत्रता दिख्नने लगती है।
चिंतन के लिए बीज प्रश्न: आप इस धारणा से कैसा सम्बन्ध रखते हैं कि मुक्ति बोध अच्छा महसूस करने की कोई नई स्थिति नहीं है, बल्कि 'जो है' उसी की स्वीकृति है? क्या आप किसी ऐसे समय की व्यक्तिगत कहानी साझा कर सकते हैं जब आप अपने जीवन में जो कुछ भी हो रहा था, उसके साथ पूरी तरह से अपने में सामंजस्य बिठा पाए थे ? जो हो रहा है उसे स्वीकार करने, और उसका अपने आप में सामंजस्य ,अपने कार्यों की प्रेरणा के साथ बिठाने में, आपको किस बात से मदद मिलती है ?