What Is Prayer?

Author
Rupert Spira
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प्रार्थना क्या है?--रूपर्ट स्पाइरल द्वारा

प्रार्थना क्या है? यहाँ मैं , मैं मौन रखना चाहूँगा, क्योंकि मौन में ही हम इश्वर के सबसे करीब पहुँच पाते हैं, खुद को इस मौन में खोने से पहले । प्रार्थना का मतलब है 'मैं हूँ' शब्दों के सामने 'मैं हूँ' के रूप में बने रहना। उसी रूप में बने रहना। बस होना। अगर यह आपको स्पष्ट हो गया है, न केवल दार्शनिक रूप से, बल्कि अनुभवात्मक रूप से भी , तो आगे न पढ़ें।

ईश्वर के बारे में हमारी समझ और प्रार्थना के बारे में हमारी समझ, हमारे स्वयं के बारे में हमारी समझ पर निर्भर करती है। दुनिया के अधिकांश महान धार्मिक साहित्य व्यक्ति को सृष्टिकर्ता ईश्वर के प्रति भक्ति के रिश्ते में रखते हैं। भक्ति और समर्पण का यह मार्ग धीरे-धीरे व्यक्ति को शुद्ध और शून्य करता है जब तक कि यह प्रश्न नहीं उठता, 'यदि ईश्वर का अस्तित्व अनंत है, तो उसके भीतर एक व्यक्तिगत अस्तित्व के लिए जगह कैसे हो सकती है?' असंख्य सीमित प्राणियों का अस्तित्व अनंत अस्तित्व के एक हिस्से को विस्थापित कर देगा और अनंत अस्तित्व तब अनंत नहीं रहेगा।

ईश्वर तब ईश्वर नहीं रहेगा। हम समझ जाते हैं कि अनंत में सीमित के लिए कोई जगह नहीं है। मनुष्य , ईश्वर की ऐसी अवस्था है, जो कुछ काल के लिए, मानवीय गुणों से सुसज्जित है। ईश्वर का प्राणी एक ऐसा मानव अस्तित्व है जिसकी ईश्वरीय गुणशक्ति क्षिन चुकी है|

प्रार्थना में हम अपने अनुभवोँ की विभिन्न परतों (layers) के बीच से अपने अंतःकरण में इस तरह की यात्रा करते हैं , जैसे की मनन करना, महसूस करना, संवेदना महसूस करना, अनुमानित करना ( perceiving), उस पर अमल करना एवं उससे जुड़ जाना , जब तक कि हम स्थिर एवं अपरिवर्तनीय अंतरात्मा तक न पहुँच जाएँ| हम स्वयं अपने अनुभवोँ के सार से मिले गुणों को छोड़ देते हैं और जैसे ही हम मानवीय गुणों से अलग हो जाते हैं , उस वक़्त वो सारे गुण एक ईश्वरीय गुण के रूप प्रगट हो जाते हैं | प्रार्थना का तात्पर्य है, ये समझ पाना और महसूस भी करना कि हमारे अन्तःकरण में जो भी जीव बैठा है, वो इश्वर का ही प्रारूप है, और उसी पर आगे अमल करना| उस वक़्त वो सारे गुण एक ईश्वरीय गुण के रूप प्रगट हो जाते हैं |

जीवन जीने का अर्थ है जीव का गति में होना, और हमारे होने का अर्थ है उस समस्त जीवन का शांति में वास | वस्तु विषयों की उत्पत्ति / प्रगटीकरण से पहले , जो जीव था वो अप्रभावित था| वो शुन्य , बिना आकार के, पारदर्शी , शांत , बिना किसी हलचल के, स्थिर था| जो आकार है वो शुन्यता का गति में होना है , और जो शुन्यता है वो है उस आकार का शांति में वास | स्तुति का मायने है प्रार्थना का गति में होना, और प्रार्थना है उस स्तुति का शांति में वास| जब हम बिना किसी हलचल के, शांत होते हैं तब हम इश्वर के सबसे करीब पहुंचते हैं | शांत , बिना हलचल के जीवन जीयें और माने कि मैं ही इश्वर हूँ| (psalm 46:10). मईस्टर एकहार्ट ने कहा है “, पूरी श्रृष्टि में इश्वर से सबसे करीबी, मिलता जुलता, कुछ भी नहीं है सिवाय शांत , हलचल रहित, स्थिर ,समता पूर्ण जीवन के” |

. मन की गतिविधि का आकार वह है जिसमें ‘एक’ ‘अनेक’ के रूप में नज़र आता है। वस्तुओं और स्वयं की एक स्पष्ट बहुलता और विविधता में खुद को खोल लेने के बाद, प्राणी अनुभव करता है, स्वयं को उनमे से एक रूप में, -जहाँ अंदर दुःख है, और बाहर द्वन्द एवं टकराव है । अतीत को देखने के बाद , वह सोचने और समझने की गतिविधियों के माध्यम से, खुद को विभाजित करना बंद कर देता है, और पूर्णता, उत्कृष्टता और शांति की अपनी प्राकृतिक अवस्था में लौट आता है।

हमारा होने का अस्तित्व हमारे किसी भी वैयक्तिक गुण को साझा नहीं करता है, हालांकि यह हमारा स्वयं का सार है और हमारे लिए सब कुछ है, जैसे कि एक स्क्रीन फिल्म के किसी भी गुण को साझा नहीं करती है, पर साथ ही, इसका सार भी है और वास्तविकता भी। इस प्रकार, हमारा होना अवैयक्तिक होते हुए भी पूर्णतः अंतरंग है। अंतरंग, निर्वैयक्तिक, अविभाज्य, अनंत अस्तित्व, ईश्वर का अस्तित्व। ये ही वो इश्वर का अनंत अविन्भाज्य स्वरुप है और हम वो ही हैं | ये ही वह परम समर्पण है


मनन के लिए बीज प्रश्न: आप इस धारणा से कैसे संबंधित हैं कि अनंत में सीमित के लिए कोई जगह नहीं है? क्या आप उस समय की कोई निजी कहानी साझा कर सकते हैं जब आपने शांति एवं स्थिरता में लौटकर पूर्णता महसूस की हो? आपको पूर्णता, उत्कृष्टता और शांति की अपनी प्राकृतिक अवस्था में लौट कर आने में किस चीज़ से मदद मिलती है ?
 

Excerpts from The Heart of Prayer.


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