“स्वयं के बिना”
आफ्टन वाइल्डर के द्वारा ,
एक शुद्ध कांच का गोला उड़ रहा है
चट्टान के ऊपर
बस, जरा सा धार के परे
हमारे अंत:करण, अंतरात्मा और स्वयं का प्रतिनिधित्व कर रहा है
अगर यह बिखर (टुकड़े टुकड़े हो) गया तो ?
बर्फीले शीशे की उलझन बनना ,
और फिर कोई बात नहीं?
अगर यह लुप्त (गायब) हो जाए तो ?
हम किसके लिए लड़ेंगे?
क्या हम तब भी स्वयं को जान पाएंगे
ऐसे स्नेहमय,
पीठ पीछे छुरा घोंपने वाले,
सुंदर,
भयंकर,
भावुक,
हृदयहीन,
सहानुभूतिपूर्ण,
धूर्त,
अनोखे लोग हैं हम?!
क्या हम अपने स्वयं के बिना आगे बढ़ सकते हैं?
बिना किसी आधार के?
वे कहते हैं, हल्के से कदम बढ़ाओ
अपने आप को दुपट्टे की तरह जंगल में मत छोड़ो
समुद्र तट पर एक चप्पल की तरह
इसे सुरक्षित रखो
इसे मुक्त मत करो
इसे मत खोओ
एक कठघरे (रेलिंग) के बाहर मत जाओ
लेकिन क्या हम और विशाल हो सकते हैं?
बिना किसी अपनी स्वयं की
सीमा के ?
अगर हम जोखिम ले सकें
तो क्या आख़िरकार हम परेशानियों से बाहर नहीं आ जाएँगे ?
मनन के लिए मूल प्रश्न: अपने स्वयं को त्याग कर अपने आप को मुक्त करने का आपके लिए क्या मतलब है? क्या आप कोई निजी कहानी साझा कर सकते हैं जब आपने अपनी स्वयं की सीमा से परे जाने का जोखिम उठाया हो? दुनिया के भार के बिना आपने जो सीखा उसे पहचानने/समझने में आपको किससे मदद मिलती है?
Afton Wilder is a 10 year old, who recently started a blog of her poems.