सहानुभूति, परानुभूति, एवं करुणा द्वारा जय लित्विन
तरस, सहानुभूति, परानुभूति, करुणा | ये सब , जब कोई दबाव में होता है, उसे कई बार झेलनी पड़ती हैं| हमारे बुरे समय के सन्दर्भ में, हमें ऐसे बर्ताव औरों से देखने को मिलते हैं| जब भी हमें ये प्राप्त होते हैं, अलग अलग अनुभूति प्रदान करते हैं| इन सबका असर अलग अलग होता है, उन पर, जो उस वक़्त उन भावनात्मक एवं शारीरिक विपदाओं से जूझ रहे होते हैं|
इन चारों में से, करुणा का एक विशेष और अलग गुण है, एक ऐसा गुण जो बाकी सभी से इतना अलग है कि यह एक प्रकार की आध्यात्मिकता एवं भावनात्मकता का प्रतीक होता है| और शायद ये ही कारण है कि करुणा का वर्णन सभी प्रकार के अध्यात्मिक एवं धार्मिक ग्रंथों में मिलता है , एक ऐसे गुण के रूप में जिसे पाने और बढाने की आवश्यकता है|
जिसे करुणा प्राप्त होती है उसे उसकी उच्चता /महानता उसी वक़्त महसूस हो जाती है| तरस की तरह इसमें दयालुता / कृपादृष्टि का भाव नहीं होता| परानुभूति की तरह करुणा में प्रदान करने वाले के वर्तमान या पूर्व में हुए उसी प्रकार के अनुभव की जरूरत नहीं होती| यह भी सही है कि सहानुभूति एक अद्भुत गुण है फिर भी सहानुभूति करुणा से कम सहजता एवं विविधता दर्शाती है : उदहारण स्वरुप हम सहानुभूति के साथ कभी कभी भी खिलखिलाहट या हल्केपन का व्यवहार नहीं देखते | सहानुभूति के साथ दूरी अथवा अलगाववाद एक स्वाभाविक लक्षण लगता है, जैसे एक व्यक्ति ही दूसरे के साथ साहनुभूति रखता है |
यद्यपि सहानुभूति एक बहुत अच्छा गुण है पर फिर भी करुणा सहनुभूति से कहीं ऊपर स्तर पर है| यद्यपि सहानुभूति हमारी कोमलता एवं दयालुता का एक मीठा बर्ताव है, फिर भी करुणा जीवन जीने का एक तरीका है|
डिक्शनरी अंग्रेजी में करुणा को ऐसे विभाजित करती है COM ( यानि साथ में) -pati ( पीड़ा महसूस करना) यानि साथ में पीड़ा महसूस करना|
पर एक और परिभाषा है , और वह वो है जो करुणा को सिर्फ पीड़ा या कष्ट के जवाब में हमारे व्यवहार से सिमित नहीं रखती, पर शायद जीवन से ही नाता रखती है, और उसे ऐसे गुण के रूप में देखती है जो हर वक़्त और हर स्थिति में मनुष्य के साथ होता है , उसके हर व्यक्ति के साथ के बर्ताव के रूप में, न कि सिर्फ उसके साथ, जो विपदा झेल रहा है | उसका मायने है “ किसी के साथ एक गहरे एहसास के साथ रहना एवं खूब ही उत्साह के साथ रहना |
इस प्रकार से देखने से करुणा को किसी गम , या दुःख कि आवश्यकता नहीं होती और शायद किसी की मदद करने की कामना की भी आवश्यकता नहीं होती, , हालाँकि करुणा में ये तीनो शामिल हो सकते हैं| करुणा का अर्थ है , सिर्फ किसी अन्य के साथ पूर्ण रूप से उपस्थित रहना ,. चाहे वो जीवन के किसी भी घटना क्रम से गुजर रहा हो| करुणा निर्णायक दृष्टि को खत्म करती है, और हर स्थिति एवं घटना क्रम को बराबर मानती है, प्रत्येक क्षण मानो ऐसे जीवन का भाग हो जिसे पूर्ण रूप से जीना है| प्रत्येक, आ सकने वाली भावना, एहसास, एवं व्यवहार जिनके लिए हम लायक हैं, प्रत्येक क्षण एवं प्रत्येक स्थिति में स्वाभाविक तौर पे उपस्थित हैं |
अतः करुणा किसी भी पूर्वानुमान के नहीं होती | उसकी कोई प्रवृति नहीं होती| उसको कोई विशेष चेहरे के भाव या किसी विशेष वाणी स्वर की आवश्यता नहीं होती| करुणा किसी आचरण के नियमों में सिमित नहीं होती, किसी सदाचार या अपेक्षा से सिमित नहीं होती, हालाँकि करुणा इन तीनो चीज़ों से अपना मार्गदर्शन ले सकती है|
करुणा तैयार होती है, अन्य से, वहां मिलने के लिए जहाँ वो अभी वर्त्तमान में हैं, यह मानते हुए कि जो भी स्थिति या जीवन का कष्टमय घटनाक्रम ,अभी उनके समक्ष है , वो उनके अन्य किसी प्रकार के जीवन काल के समान ही है| करुणा हंस सकती है, रो सकती है, मजाक कर सकती है, संवेदना प्रकट कर सकती है , उत्सुक हो सकती है, जिज्ञासु हो सकती है , अधिक बात करने वाली या मौन हो सकती है| करुणा पूर्णतयः साथ होने से भी नहीं घबराती , आशावादी होने से नहीं घबराती या सहज होने मे नहीं घबराती | करुणा दूसरी और मूँह नहीं मोड़ती| वो कभी भी खूबसूरती देखने में नहीं घबराती , हंसी मजाक से नहीं घबराती, या एक टूटा हुआ दिल बांटने में नहीं घबराती|
मनन के लिए बीज प्रश्न : आप इस धारणा से कैसा नाता रखते हैं कि करुणा को उदासी या किसी के दुखी होने की आवश्यकता नहीं है, और उसे मदद की कामना की भी आवश्यकता नहीं है? क्या आप एक ऐसे समय की कहानी साझा कर सकते हैं जब करुणा का अनुभव आपने जीवन के क्षण को पूर्ण रूप से जीने के लिए किया हो? आपको करुणा को जीवन जीने की प्रक्रिया के रूप में बढ़ाने में किस चीज़ से सहायता मिलती है?