पूर्ण आशावादिता द्वारा रेवरेंड जोआन हलीफैक्स
पूर्ण आशावादिता , एक क्षण का एक वृहद् दृष्टिकोण है जिसमे उस क्षण का परिणाम शामिल नहीं है| उसे अगर एक और तरीके से कहें तो पूर्ण आशावादी व्यक्ति कोई निवेश योजना नहीं अपना रहे | बल्कि उसके विपरीत वो लिप्त हैं एक ऐसी योजना में जो किसी भी उद्देश्य से मुक्त है|
चाहे हम वो दृष्टा Auschwitz में हों, चाहे Bowery की गलियों में, पर हैं तो दृष्टा ही | सिर्फ एक पूर्ण आशावादी ही दृष्टा बन सकता है : अगर कहीं भी फल की ओर मन है , तब वो उस क्षण में घटित सत्य के साथ, एक नहीं हो सकता|
हम में से कई, उस अध्यात्मिक प्रतिफल की ओर क्यों देखते रहते हैं ? हम शायद जल्द ही मृत्यु को भी प्राप्त हो सकते हैं|पर , इस में बड़ा सौदा क्या है? क्या हम एक अच्छी मृत्यु की आशा संजोय बैठे हैं? क्या ये ख्याल ही वो है जो हमें चलाता है? या क्या हम चाहते हैं अध्यात्मिक मार्ग पे बड़ी तरक्की , अभी और इसी वक़्त ?
त्रुन्गपा रिनपोचे , ने जब इस “ अध्यात्मिक भौतिकवाद “ की कहावत का उपयोग किया था, तब वो सिर्फ इस अध्यात्मिक मार्ग में भौतिक श्रृंगार जैसे बजने वाली घंटियों या प्रयोग में आने वाली सीटियों की बात, नहीं कर रहे थे | वो हमारी उस इच्छा की ओर सीधा इशारा कर रहे थे जो इन घंटियों एवं सीटियों के द्वारा “ज्ञानोदिप्ती प्राप्ति “ चाहती है|हमारे जीवन में अनगिनत सत्य की घटनाएँ हैं : प्रत्येक क्षण ही एक सत्य घटना है |
अगर हमारे नित्य प्रयोग, हमारे स्वयं की सेवा है, और , कहें तो, एक वृहद् अंत का जरिया है , तो हमारे सारे नित्य प्रयोग एक निवेश बन जाते हैं जिनसे हम कुछ फल/मुनाफे की आशा रखते हैं|हम किसी निर्धारित क्षण के साथ पूर्ण रूप से कैसे हो सकते हैं अगर हम कुछ होने की प्रतीक्षा कर रहें हैं तो?
जब नित्य प्रयोग ज्ञानोदिप्ती के उद्देश्य से नहीं किया जाते हैं तो उसे जीवन के साथ पूर्ण रूप से रहना कहते हैं| जब फल की इच्छा हमारे कार्यों को दिशा देती है, तब हम द्वैतवाद की भयंकर भ्रान्ति में उलझ जाते हैं|जीवन, जिसमे किसी फल की आशा ही न हो , एक पूर्ण आशावादिता का नित्य प्रयोग है, एक ऐसी आशावादिता जो समय एवं अंतराल से मुक्त, वस्तु एवं विषय वस्तु से मुक्त है , और फिर भी, हमारे जीवन के अभिन्न अंग में संयोजित होना है | ये एक ऐसी आशावादिता है जिसे Bernie Glassman ने “नहीं जानना “ कहा है, या जिसे विमला कीर्ति ने “अनिर्णनिय” (inconceivable ) कहा है|
Dogen ने हमें याद दिलाया है कि अपने मन की करुणात्मक जाग्रति को बढ़ाना , कुछ भी अन्य नहीं है सिवाय इसके कि हमारे सारे एवं पूर्ण कार्य, हमारे स्व- स्वार्थ की इच्छा से न हों, किसी फल की आशा लिए भी न हों, किसी प्रकार की स्वयं परित्रिष्टि के लिए भी न हों| ये ही पूर्ण आशावादिता है|इसका अर्थ यह है की जो इस क्षण है ,जो इस क्षण घटित है, वह ही इस क्षण का उत्तम स्वरुप है| यह ही, पूर्ण रूप से यह ही, सिर्फ यह ही क्षण|
मनन के लिए मूल प्रश्न : आप इस धारणा को कैसा मानते हैं कि सिर्फ एक पूर्ण आशावादी ही एक दृष्टा हो सकता है ? क्या आप उस समय की एक निजी कहानी साझा कर सकते हैं जब कुछ कार्य आप बिना किसी फल की इच्छा के कर पाए हों ? अध्यात्मिक भौतिकवाद के जाल में फंसने से बचने में आपको किस चीज़ से मदद मिलती है?