सबसे सरल ध्यान प्रक्रिया है, इंतज़ार की प्रक्रिया , द्वारा पीटर रुसेल
हम में से ज्यादा के लिए इंतज़ार करना आसान नहीं है, बल्कि बोरियत भरा होता है| हम जब भी किसी बस या ट्रेन का इंतज़ार करते हहिं , तो हम खोजते हैं कुछ करने को, जिससे हमारा समय व्यतीत हो जाय| हम जब भी किसी डॉक्टर के कमरे में इंतज़ार करते हैं , तो हम उन मिनटों को व्यर्थ बिताते हैं, उन पुस्तकों को पलटने में , जिनमे शायद हमारा मन भी नहीं होता|
हम चाहते हैं की हमारा इंतज़ार ख़त्म हो और हम वो अगला कार्य शुरू कर पायें जिसका हमें इंतज़ार है| परन्तु इंतज़ार की प्रक्रिया को इस तरह करके हम एक बहुमूल्य अवसर गँवा देते हैं| शुद्ध इंतज़ार की प्रक्रिया , वो प्रक्रिया नहीं है जिसमे हम कुछ होने का इंतज़ार कर रहे हैं | इंतज़ार की प्रक्रिया , जिससे हम कुछ भी चाह नहीं रहे, अपने आप में एक अद्भुत अध्यात्मिक अभ्यास हो सकता है|
जब आप सिर्फ इंतज़ार कर रहे होते हैं, और यह इंतज़ार कुछ होने या नहीं होने का नहीं है, और यह भी इच्छा नहीं है कि जो है, उससे कुछ बेहतर हो जाय, तो हमारा मन स्वतः शांत हो जाता है| और जैसे जैसे आप कुछ होने की चाह से ऊपर उठने लगेंगे , आप देखेंगे कि आपकी वर्त्तमान क्षण के प्रति जारूकता बढ़ने लगी है|
बहुत से अध्यात्मिक मार्गदर्शकों ने हमें उकसाया है वर्त्तमान के क्षणों के प्रति ज्यादा जागरूक होने को, “यहीं रहो , वर्त्तमान क्षण” में रहो | और बहुत सारे अभ्यास यह कोशिश करते हैं कि हम वर्तमान में रहें| इनमे से ज्यादा हमें अपना ध्यान वर्त्तमान के कुछ पहलु की ओर ले जाने को कहते हैं जैसे कि हमारी स्वास प्रक्रिया, एक मन्त्र , एक दृष्टिगत वस्तु| इस परकार के ध्यान का केन्द्रीकरण यद्यपि बिना किसी प्रयत्न के होता है, पर फिर भी वो है, ध्यान को एक सूक्ष्म दिशा देने का|
दूसरी तरह से देखें तो, शुद्ध इंतज़ार की प्रक्रिया में , कोई ऐसा प्रयास नहीं है की वर्त्तमान के किसी विशेष पहलु की और जागरूकता जाये | इसके विपरीत, कुछ न कर रहे होने की स्थिति में, किसी विशेष चीज़ के इंतज़ार के अभाव में, वर्त्तमान को अपने प्रारूप में खुलके सामने आने की ज्यादा जगह मिलती है|
हमें अपनी दुनिया के ऐसे पहलू नज़र आने लगते हैं, जिनके प्रति हम पहले जागरूक नहीं थे, जैसे घडी की ध्वनि, या दूर में होता कोई वार्तालाप, किसी वृक्ष का हवा के साथ धीमे धीमे हिलना, कपड़ों का हमारी त्वचा से स्पर्श | यह मायने नहीं रखता कि क्या हो रहा है|और शायद यह हर बार अलग होगा , सिर्फ इसलिए क्योंकि वर्त्तमान का हर क्षण दुसरे क्षण से अलग होता है|
और जैसे ही आप इस सरलतम इंतज़ार की प्रक्रिया में अभ्यस्त हो जायेंगे , आप अपने आपको , इस वर्त्तमान क्षण में, बिलकुल सहज भाव से , मासूमियत से भरपूर , और बिना किसी विशेष दिशा पे केन्द्रित , पाएंगे|
अतः जब भी अगली बार आपको इंतज़ार करना पड़े, आप उस समय का उपयोग करें , जागरूक होने के एक अवसर के रूप में| उस विशेष चीज़ के इंतज़ार में होने के बजाय , सिर्फ इंतज़ार करें | कोई अपेक्षा नहीं|सिर्फ थम जाएँ और इंतज़ार करें , एक खुले दिमाग से|
यह भी आवश्यक नहीं है कि हम किसी बस के विलंबित होने का इंतज़ार करें, या किसी प्रतीक्षा कक्ष में बैठें हों, इस सरल इंतज़ार की प्रक्रिया करने के लिए| दिन के किसी भी क्षण को हम चुन सकते हैं, थम जाने के लिए, और शुद्ध इंतज़ार की प्रक्रिया के लिए|
इंतज़ार करना, बिना किसी अपेक्षा के , जो भी अगले क्षण होने वाला है| हो सकता है कोई चिड़िया हमारी खिड़की के आगे से उड़ जाये | हो सकता है हमारा फ्रिज़ चालू हो जाये| औ शायद हम पायें की हम किन्हीं ख्यालों में खो गए हैं|| क्या होता है यह मायने नहीं रखता | इंतज़ार की प्रक्रिया ही’ सब कुछ’ है |
मनन के लिए मूल प्रश्न| बिना किसी अपेक्षा के, सिर्फ शुद्ध इंतज़ार करना , आपके लिए क्या मायने रखता है ? क्या आप ऐसे समय की एक कहानी साझा कर सकते हैं जब आप एक खुले दिमाग से , इंतज़ार करने की ओर झुके हों ? आपको वर्त्तमान क्षण में , सहज भाव में, मासूमियत भरे भाव में, और बिना किसी दिशा में केन्द्रित होने में , किस चीज़ से मदद मिलती है?