वो दुविधा जो हम सबके समक्ष आती है द्वारा केंट नीबुर्ण
ये वो दुविधा है जो हम सबके समक्ष आती है जब हम क्षमादान जैसे मुश्किल रास्ते पर चलने का निर्णय लेते हैं | जिसने हमारे साथ गलत किया उसके खिलाफ आवाज़ न उठा कर ,कहीं हम उस गलत कार्य का साथ तो नहीं देते प्रतीत हो रहे ? अथवा क्या हम, जिसने उस अन्याय को जन्म दिया है, उसकी ह्रदय शुन्यता एवं निर्दयता के जाल में उलझ रहे हैं एवं इस दुनिया में उस अन्धकार का सहयोग कर रहे हैं ?
में नहीं जानता हूँ | और फिर भी यह मुझे जानना चाहिए | किसी भी तरह मुझे, आपको, हम सबको, एक रास्ता खोजना होगा , इस विश्व की निर्दयता एवं अन्याय का उत्तर देने का, और वो भी इस तरह जिससे, हमें जो नुक्सान पहुंचा रहे हैं, उन्हें बढ़ावा न मिल जाए | और साथ ही साथ , हमें उनके क्रोध और ह्रदय शुन्यता में उलझ जाने से भी बचना होगा |
और यह हम इंसानों का एक तरह का दाव है, कि क्या यह सबसे अच्छा तरीका होगा इसे करने का जिसमे हम क्षमा दान की एक शुद्ध ज्योति अन्धकार में फैलाएं , यह विश्वास रखते हुए कि यह ज्योति औरों को अपनी और खींच लेगी, अथवा दूसरा तरीका यह कि उस अंधकार के विरुद्ध उसकी बराबर की शक्ति से खड़े हो जाएँ और फिर वहां से दुनिया में रौशनी फैलाएं , अन्धकार के एक तरफ रुकने के बाद|
दोनों ही रास्तों में , एक बात तो निश्चित है : क्षमा दान एक अलग थलग पड़ी हुई, बेजान भावना नहीं हो सकती | उसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है, इंसानी खून खराबे के हालात में , एवं उसे डटना इंसानी क्रोध एवं नफरत की आंधी के विरुद्ध | इस दुनियादारी के सन्दर्भ में, एक उत्तम गुणवत्ता के रूप में उभरने के लिए , क्षमा दान को जीवंत, मजबूत होना होगा एवं उसमे अमानवीय कृत्यों एवं अमानवीयता के सामने खड़े होने की क्षमता होनी चाहिए | क्षमा दान को मानवीय स्थिति के अन्धकार स्वरुप के समक्ष खड़े होने का साहस होना चाहिए|
कैसे हम इस प्रकार के क्षमा दान को प्रारूप देते हैं , यह हमारे जीवन का अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न है| और, ये आसान नहीं है|कभी कभी हम इतने हतोत्साहित हो जाते हैं और हमें लगता है हम और नहीं झेल पाएंगे|
पर हम कर सकते हैं, और हमें करना भी चाहिए | यह हमारी इंसानी जिम्मेवारी है| जब कि हमें यह पता है कि क्षमा दान का यदि गलत अर्थ निकल जाता है या उसका गलत प्रयोग हो जाता है तो हमारे इर्द गिर्द हो रहे गलत कार्य एवं व्यवहार का वो सहायक बन जाती है , परन्तु हमें यह भी पता है उसका सही प्रयोग होने पर वो एक चिपकाने वाले गोंद की तरह बन जाती है, जो पूरे इंसानी समुदायों को जोड़ के रखता है|
वो एक तरीका है हमारे अकेलेपन को पार करने का, जो अधिकतर हमें घेरे रखता है | हमें उस, इंसानों को जोड़ने वाले, पुल का निर्माण करने के रास्ते खोजने हैं , बिना यह परवाह करे कि हमारे चारों हाथ बेढंगे हैं और जिन चीज़ों का हम प्रयोग कर सकते हैं उनमे कई कमियाँ हैं|
मनन के लिए बीज प्रश्न:: आप उस धारणा से कैसा नाता रखते हैं कि क्षमा दान को सही गुणवत्त होने के लिए मजबूत एवं जीवंत होना चाहिये? क्या आप ऐसे समय की एक निजी कहानी साझा कर सकते हैं जब आपने क्षम| दान को मानवीय परिवार के चिपकाने वाले गोंद के रूप में अनुभव किया हो? आपको क्षमा दान के पुल निर्माण करने में किस चीज़ से सहायता मिलती है ?