कछुए का चाँदी के मोती नुमा एकांत द्वारा गेल बॉस
दिसंबर के हिसाब से दिन चमकीला एवं थोडा गर्म था , लेकिन लकड़ी के लोथे जो तालाब में पड़े थे वो बिना पत्तों के थे| बसंत से ग्रीष्म ऋतू तक एवं शरद ऋतू तक , सुनहरी धूप वाले दिनों में, वो पेड़ों के लोथे उन दर्ज़न भर कछुओं को धूप सेकने के काम आते थे|में उन्हें देखता था, धूप सेकते हुए, पैर फैले हुए, अपनी लम्बी गर्दन दूर तक बाहर निकलते हुए , उस सूर्य की गर्मी से अपने पूरे शरीर के, हरेक कोने को, उसका आनंद दिलाते हुए|
अभी वो दृष्टि से दूर हैं, और आने वाली कड़कती सर्दी उनसे छिपी हुई नहीं है|
उस तालाब में पानी लगभग कमर तक होगा, एक गाढ़ी मिट्टी से सना हुआ, और पोधों और जड़ों से भरा हुआ| शरद ऋतू में एक दिन, जब पानी और हवा ठंडी होने लगी, और एक डिग्री तक तापमान पहुंचते ही, शायद एक पुरानी घंटी ने उन कछुओं के दिमाग में कुछ ध्वनि की| एक संकेत था : गहरी सांस लो|प्रत्येक कछुआ उन लकड़ी के लोथे से नीचे उतर कर बिलकुल दलदली तह में पहुँच गया| उन पौधों के बुनी हुई दीवारों के बीच से तैरते हुए , उन कछुओं ने बिलकुल तह में अपनी जगह खोज ली | अपनी आँखें बंद करके , उस दलदल में घुस गए|उन्होंने अपने आपको वहां दफना लिया |
और फिर उन्होंने, अपने कवच में, हाथ पैरों को समेट कर , उस गहन अँधेरे में , वो एक गहन स्थिरता में वास करने लग जाते हैं| उनकी हृदयगति धीमी , और धीमी होते होते लगभग रुक जाती है | उनके शरीर का तापमान कम होता जाता है, और फिर जम जाने के टीक पहले रुक जाता है| अब उस दलदल के नीचे, उस जमे हुए बर्फीले पानी के भार एवं जमी हो बर्फ एवं हिम के भार के नीचे , उनके सब चीज़ें इतनी स्थिर हो जाती हैं की उन्हें सांस लेने की भी जरूरत नहीं रहती|और वैसे भी , उस बर्फ से ढके तालाब में ऑक्सीजन रह ही नहीं जायेगा|
और फिर, दलदल के तले, छः महीने तक, वो अपने फेपड़ों में हवा नहीं लेंगे|उस ठण्ड में अपने आपको बचा लेने के लिए जो शायद उनको मार सकती है, या उन्हें इतना धीमा कर सकती है कि उनके परभक्षी उन्हें मार दें, वो अपने आपको ऐसी इतना स्थिर कर लेते हैं , बिना सांस लिए, जहाँ सांस लेना भी मुमकिन नहीं है|
और वो इंतज़ार करते हैं| जब बर्फ उस तालाब के पानी को बाँध लेती है, और बर्फीले तूफ़ान उन पौधों को तहस नहस कर देते हैं, तब उन सब के नीचे वो इंतज़ार करते हैं|
उनका ये एक ही काम है और ये आसान नहीं है|आक्सीजन की कमी उनके शरीर के प्रत्येक कण को तनावग्रस्त कर देती है| दूध युक्त तेज़ाब पूरे शरीर में फैल जाता है|उनकी मांस पेशियाँ , यहाँ तक के ह्रदय की भी मांस पेशी भी, जलने लग जाती हैं और ये एक घातक स्थिति है| उस फैलते तेज़ाब को निष्प्रभावित करना है, और कैल्शियम ऐसा कर सकता है| उनकी हड्डियों से, उनकी पीठ से, उनका शरीर , वहां का कैल्शियम खींचने लगता है, और उससे उनका शरीर छोटा होने लगता है, उनका आकार और उनकी शक्ति घटने लगती है| पर अगर वो इससे बचना चाहें , तो उन्हें सांस लेना पड़ेगा और वहां से हटना पड़ेगा, और चूँकि वहां ऑक्सीजन नहीं है, ऐसा करते ही वो दम घुट के मर जायेंगे|इसलिए यद्यपि उनका विलय हो रहा है, फिर भी उनके तनावग्रस्त शरीर का प्रत्येक कण उस चाँदी के मोती नुमा गहन एकांत में ध्यान लगाये रहता है|
ये ही वो पूर्ण (radical) सरलता है, जो उन्हें बचा लेगी | और उनके गहराई में स्थापित , उनके स्थिरता के मध्य में, जिसका उनको नाम लेने की भी जरूरत नहीं, पर शायद जिसे हम विश्वास का नाम दे सकते हैं, यह है कि : एक दिन, हाँ, पूरी दुनिया फिर से गर्म होएगी, और उसके साथ उनका जीवन भी गर्माहट से भर जायेगा|
मनन के लिए मूल प्रश्न : आप एक कछुए की, बदलाव के विश्वास में जड़ितजीवन यात्रा, से कैसा नाता रखते हैं? क्या आप उस समय की एक कहानी साझा कर सकते हैं, जब आपने अपनी बदलाव की यात्रा , यह विश्वास मानते हुए शुरू की, कि आपका वृहद् सन्दर्भ एक अपने ही बदलाव की राह पे है? जब आप एक बदलाव की रूपरेखा बना रहे होते हैं, तब आपको अपने विश्वास का सम्मान करने एवं उसको दर्शाने में किस चीज़ से सहयते मिलती है?