एक विशाल उलझन, द्वारा निक अस्कू
नहीं अपनाये जाने का भय ही , ज्यादातर , जो भी हम करते हैं या जैसे भी हम हैं, को दिशा देता है|
अनजाने में , ये हमारे पूरे जीवन के अनुभव को निर्धारित कर सकता है|
हम में से ज्यादा इस बुनियादी बोध के साथ जीते हैं कि हम अभी तक पर्याप्त नहीं हैं|
और ये मान के चलते हैं जब तक हम पर्याप्त नहीं हो जाते तब तक हम वास्तविकता से अपनाए नहीं जायेंगे |
हम मानते हैं कि हमें अपना एक बेहतर स्वरुप बनना होगा|
पर हम कभी भी इस अपनाए जाने की अनवरत कोशिश में पर्याप्त नहीं बन पाते|
हम न ख़त्म होने वाली इस स्वयं सुधार की प्रक्रिया में खो जाते हैं|
क्या ऐसा तो नहीं है कि जिस वस्तु /स्थिति को बाहर हम खोजने की कोशिश कर रहे हैं, वो हर समय हमारे अन्दर ही थी ?
क्या ऐसा तो नहीं है कि हम अपना जैसा स्वरुप पाने में लगे थे, वैसे तो हम पहले से ही हैं |
एक न ख़त्म होने वाले खेल, जिसमे हम उसे जोड़ने का प्रयास कर रहे, जो टूटा हुआ है, के परे, इस ज्ञान का एक ऐसा गंभीर अनुभव है , कि कोई टूटा हुआ नहीं जिसे जोड़ने की आवश्यकता हो |
और यह ज्ञान कि हम जैसे हैं, पयाप्त हैं| और हम बिना किसी शर्त के अपनाने योग्य हैं|
फिर भी हम उसे खोज कर पाने की आशा नहीं कर सकते| यह उसकी प्रकृति में है, हमें खोजना | और बिना संदेह के हमारा उपभोग करना|
हमें कोई भी इसे पढ़ा नहीं सकता| हम इसे सीख भी नहीं सकते|
समर्पण के एक क्षण में , एक ऐसे क्षण में जिसमे हम कुछ खोज कर पाने की कोशिश नहीं कर रहे, वो अनुभव पुनः जागृत हो सकता है|
कुछ भी बदलता नहीं है, पर शायद सभी चीज़ें अलग लगती हैं|
और फिर सभी चीज़ों में अपना अंदरूनी बदलाव शुरू हो जाता है|
मुक्ति ( liberation), शांति और जो सब कुछ इसके पीछे होता है वो हमारे अन्तः करण की दृष्टि का कार्य होता है|
मनन के लिए बीज प्रश्न: आप इस धारणा से कैसा नाता रखते हैं कि हमारा सबसे गहन अनुभव ऐसे क्षण में पुनः जागृत होता है , जिसमे हम समर्पित हैं, और कुछ खोज कर पाने की कोशिश नहीं कर रहे ? क्या आप एक ऐसे गहन अनुभव की कहानी साझा कर सकते हैं जब आपने कुछ खोज कर पाने की कोशिश छोड़ दी हो और अपने आपको समर्पित कर दिया हो? आपको अपने अन्तः करण की दृष्टि में गड़े रहने (rooted) में किस चीज़ से सहायता मिलती है|