अच्छे होना , करुणामयी होने जैसा नहीं है, द्वारा डोना कामेरोंन
करुणामयी व्यक्ति , जो उनसे उम्मीद की जाती है, उससे भी आगे जाते हैं | वे आसान प्रतिक्रिया से आगे जा कर , अपने आपका सबसे बेहतर स्वरुप पेश करते हैं|वे इससे किसी भी फल की इच्छा की उम्मीद के बिना ये कार्य करते हैं| वे ये इसलिए करते हैं ऐसा करना इनके स्वरुप में है और ऐसी ही उस विश्व की , जिसमे वो रहना चाहते हैं, उनकी परिकल्पना है|
ज्यादातर लोग आपको कहेंगे कि मैं एक अच्छी इंसान हूँ| मुझे अच्छा बनने के लिए ही बड़ा किया गया है | “अच्छे बनो” मेरी माँ का ही एक निरंतर मंत्र था| मेरी माँ , सामान्यतः अच्छी थी पर शायद उतनी करुणामयी नहीं थी|सिर्फ अच्छा होना उनको ये मौका देता था कि वो ज्यादातर लोगों से अपनी दूरी रख सकें, और लोगों से सिर्फ सतही तौर पे ही जुड़ सकें और बातें कर सकें| वे करीब करीब हरदम सभ्य रहती थी, पर जो रिश्तों की गर्माहट एवं जो रिश्तों में प्रयास होते हैं, वो सिर्फ पारिवारिक एवं करीबी मित्रों तक ही सिमित थे और यहाँ तक कि उनके साथ भी उनकी करुणा नियंत्रित ही रहती थी | बचपन से अभीतक के ,लगातार, नुकसानों ने उन्हें ज्यादा विश्वास नहीं करना और किसी से ज्यादा आशा नहीं रखना, सिखा दिया था और साथ ही में अपनी दृष्टि भी सिमित ही रखना सिखा दिया था| वो अपनी सुरक्षा के प्रति बहुत जागरूक थी और उन्हें और नुक्सान का भय हमेशा सताता था| मेरी माँ को अपने आदर्श स्वरुप देखते हुए, मैं खुद भी संदेह पूर्ण, अपने आप में सिमित और सिर्फ अच्छा बनना ही सीख पाई|
पर कुछ वर्ष पूर्व मुझे लगा कि ये सब काफी नहीं है| मुझे सिर्फ अच्छे से भी कुछ ज्यादा बनना था|मुझे अपने अन्दर के मंडराते भय को छोड़ देना था और अपना दृष्टिकोण दूर तक ले जाना था| मुझे करुणापूर्ण बनना था| करुणामयी व्यक्तियों में कुछ ख़ास होता है| वो अपने कृत्यों से और कभी कभी तो सिर्फ महज अपनी उपस्थिति से, हमें ख़ुश महसूस करा देते हैं| वे हमें इस दुनिया के प्रति आशा करना सिखाते हैं| मेरे लिए करुणामयी होने का मायने था , दिन के अंत में यह जानना कि मैंने मदद की है, मैंने अपना सबसे अच्छा स्वरुप सामने रखा है, और शायद मैंने किसी के जीवन में कुछ अच्छेपन का बदलाव किया है| उसका ये भी मायने था कि मैं अपने समय का प्रयोग आशंकाओं या विफलताओं से आगे बढ़ कर , बहुतायत एवं करुणा में व्यतीत कर सकूं |मैंने देखा कि मेरे लिए यह महत्वपूर्ण होगा की मेरे अंत समय में लोग ये कहें कि वो “करुणामयी इंसान थी” | मुझे इससे ज्यादा प्रशंशा का ख्याल कभी नहीं आया| मैंने करुणामयी बनने की महत्वाकांक्षा रखी और मैं ज्यादा समय होती भी थी| पर फिर भी मैं कई बार धैर्य विहीन , चिडचिडी, निर्णयात्मक होती थी , या मैं उदासीन होती थी, या सिर्फ देख के भी अनजान|
करुणामयी होना, वास्तविक करुणामयी होना बहुत कठिन है| अच्छा होना थोड़े प्रयास का ही काम है| मैं अच्छी हो सकती हूँ,और उसके साथ उदासीन , दोष ढूंडने वाली और , कई बार, व्यंगपूर्ण भी हो सकती हूँ| पर मैं करुणा पूर्ण होने के साथ ये सब नहीं हो सकती| करुणामयी होना का मतलब सेवा रत होना| उसका मतलब है पूर्ण प्रयास करना| उसका मतलब है उस असर का भी ख्याल रखना जो मेरे किसी के संपर्क में आने से हो रहा है और पूरा प्रयास की वो अच्छा एवं सामने वाले के लिए लाभकारी एवं मायने पूर्ण हो | जो सामने वाले की उस वक़्त की जरूरत को, समझ के पूरी करता हो, बिना उस बात की चिंता करे कि उससे मुझे क्या मिलेगा| उसका मायने है मेरी निर्णयात्मकता को छोड़ना और जो जैसे हैं उन्हें उसी तरह अपनाना| करुणामयी होना मुझे वो करने को कहता था जिसे मुझे बचपन से नहीं करने को बताया गया था - कि मैं आगे बढ़ के अपनाऊँ और साथ ही जोखिम भी उठाऊँ|
अच्छा बनना हमसे बहुत कुछ मांगता नहीं है| और अच्छा होना कोई बहुत कठिन भी नहीं है; वस्तुतः, वो आसान है| वो सौम्य भी है| निष्क्रिय है | सुरक्षित है | व्यक्ति अच्छा हो सकता है बिना अपनी शक्ति का ज्यादा उपयोग करे, अपने आप को, दूसरों के लिए, दाव पे लगाये बिना भी व्यक्ति अच्छा हो सकता है |व्यक्ति अच्छा हो सकता है बिना किसी जोखिम उठाये भी| अच्छे होने का मायने है किसी के लिए दरवाज़ा पकडे रखना, केशियर के साथ वार्तालाप के समय मुस्कुराना : अच्छा होने का मायने यह भी है की किसी जरूरतमंद की पैसे से सेवा करना बिना उससे आँखें मिलाये हुए और बिना उससे कुछ भी अच्छा कहते हुए| करुणामयी का मतलब है यह पूछना कि मैं आपकी कैसे मदद कर सकता हूँ, , अपना हाथ निरंतर सेवा में बढ़ाना , बिना मांगे या बुलाये मदद को आगे बढ़ना, और उस वार्तालाप पे उतरना जो सतही तौर से आगे हो| इस प्रकार के सभी करुणामयी कृत्यों में एक जोखिम है : हो सकता है हमें झिडकी मिले, हमें कोई नज़रंदाज़ कर दे अथवा कोई हमारा तिरस्कार कर दे|
वर्षों पहले मुझे डॉ डेल टर्नर को जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जो एक लेखक हैं , वक्ता है, अध्यात्मिक पुरुष है और एक अत्यंत ही करुणामयी इंसान हैं| वो अपने साथ कुछ हरे रंग के कार्ड रखते थे जिन्हें वो औरों में बांटते रहते थे और जिन पर लिखा होता था” अपनी क्षमता से आगे उठें”| मैंने उन कार्ड को अपने बटुए में रखा है और पिछले तीन दशकों से उन शब्दों को अपने टेबल के पास लगा रखा है | मुझे लगता है कि ये शब्द “ क्षमता से आगे उठो” , करुणामयी इंसान की खूबियों को पूर्ण रूप से अपने अन्दर समाते हैं | साथ ही साथ वो अच्छेपन एवं करुणापूर्ण व्यक्तित्व के फर्क को उजागर करते हैं |
करुणामयी जीवन मैं सिर्फ उस वक़्त नहीं जीती , जब वो मेरे माफिक हो| मैं करुणामयी इंसान नहीं हूँ, अगर मैं सिर्फ उस समय करुणामयी हूँ जब वो मेरे लिए आसान हो या सुविधाजनक हो| करुणा पूर्ण जीवन का मायने है करुणामई होना, तब जब वो आसान एवं सुविधाजनक नहीं हो- बल्कि वो कभी कभी अत्यंत कठिन हो और बिलकुल असुविधाजनक हो| उस वक़्त ही उसका सबसे ज्याद महत्व होता है| उस वक़्त ही उसकी जरूरत सबसे ज्यादा होती है और शायद हमारे अंदरूनी बदलाव की सम्भावना उस वक़्त ही सबसे ज्यादा होती है| उस वक़्त ही जरूरी है की हम एक गहरी सांस लें और करुणामयता के नृत्य को अपने जीवन में आमंत्रित करें|
मनन के लिए बीज प्रश्न : आप अच्छे होने एवं करुणामयी होने के भेद के साथ कैसा नाता रखते हैं? क्या आप ऐसे समय की कहानी साझा कर सकते हैं जब आपने पूरा प्रयास किया हो कि एक पारस्परिक वार्तालाप , लाभकारी एवं मायनेपूर्ण हो? आपको उस समय , अपने आपको ,आगे बढ़ाने में ,किस चीज़ से प्रेरणा मिलती है, जब वो कार्य अत्यंत कठिन एवं बिल्कुल असुविधाजनक हो?