स्वयं से सत्य निष्ठा ( हमारे )अस्तित्व का गुण है द्वारा पिएर्र प्रादेर्वंद
स्वयं से सत्य निष्ठा , ( हमारे )अस्तित्व का गुण है| इसका अर्थ है अपने सत्य, अपने विवेक एवं अपनी दृष्टि की सबसे उत्कृष्ट पहचान पे खड़े रहना , चाहे उसकी कुछ भी कीमत चुकानी पड़े | इसमें आता है अपने अस्तित्व के सबसे आतंरिक धागे से सामंजस्य बनाना एवं एक इंच भी अपने इरादे से न डगमगाना , चाहे सामने वाले व्यक्ति या संस्था की प्रतिष्ठा एवं प्रभुत्व कुछ भी हो : और वो भी हठ या हेकड़ी के कारण नहीं, पर इस कारण कि हमारे अंतःकरण से आवाज़ यह आती है, “ अपने आप से सत्यनिष्ट रहें” ये ही उत्तम ऊँचाई है|
स्वयं से सत्य -निष्ठा का अर्थ है , जो हमारे सबसे ऊँची समझ के मुताबिक सही पथ है , उसी पथ पे चलते रहना, चाहे उसके कुछ भी परिणाम हों , चाहे हम उस पथ में अकेले ही क्यों न हो, और चाहे हमें भीड़ एवं धार्मिक नेताओं के कितने ही जोरदार ताने एवं मसखरी सुननी पड़े |
स्वयं से सत्य निष्ठा पे चलते रहने का मतलब है . जैसी एक quakerबुधिमत्ता कहती है, ‘ “शक्ति से सत्य कथन, “ यानि “सत्याग्रह” , वह भी वहां , जहाँ पर मौन रहने से हमारा ज्यादा हित निकल सकता था | इसका अर्थ है उस वक़्त भी सत्य पे अडिग रहना, जब हमारे आसपास वालों ने सुलह समझौते का मार्ग अपना लिया हो, या वो कहने लग गए हों कि उसकी उतनी अहमियत नहीं है| इसका अर्थ है अडिग एवं निर्भीक रहना, उस वक़्त भी, जब अन्य, अपने भय एवं बुजदिली के नीचे की शरण में गायब हो गए हों| स्वयं से सत्य निष्ठा का अर्थ है, अपने आप की अंदरूनी सत्यता की पहचान को थोडा भी कमज़ोर करने के लिए राजी न होना, चाहे वो अपने प्रेमी को ही को ही संतुष्ट करने के लिए या मनाने के लिए ही क्यों न हो, या फिर उसका अनुमोदन पाने के लिए ही क्यों न हो|
सबसे अहम् है , स्वयं से सत्य निष्ठा का अर्थ है, अपने आप से छल के लिए राजी न होना, अपने आप को असत्य न कहना या अर्ध सत्य के छेत्र से भी अपने को दूर रखना| आप औरों को असत्य कह कर - उनसे छल करके भी , उनके द्वारा माफ़ किये जा सकते हो | पर जब आप स्वयं से असत्य कहते हो तब आपको माफ़ी कौन देगा? इस प्रकार की हार के बाद , आप को फिर से उबरने में कौन सहायता कर सकता है? अगर आप फिर भी अज्ञानता के वश में आकर आपने आपको छलने जैसा ,मुर्खता पूर्ण , प्रयास कर पाते हो, तब क्या आपकी आतंरिक शक्ति आपका साथ आपके इस तरह का प्रयास करने के लिए छोड़ नहीं देगी ? इस प्रकार के क्षणों में सिर्फ कृपा (grace) ही आपको बचा सकती है|
अपने आपसे छल करने से से हमारा विवेक का नाश हो जाता है, वह भी उस विवेक का , जो हमारे इमानदारी पूर्ण निर्णयों और मायने पूर्ण चुनावों का आधार है| पूर्ण जागृत अवस्था या पूरी समझ के बावजूद उसे न करना जिसे हम सत्य मानते हैं, या आपने आपको असत्य कहना , हमारी उस आत्मा के साथ पाप है जो हम सभी में, हमारी अपनी गहराई में, निवास करती है|
स्वयं से सत्य निष्ठा , हमारे अस्तित्व की सबसे आतंरिक वस्तु के रूप में, हमारी तत्त्व की पहचान बन जाती है और हमारे सारे गुणों का आधार बन जाती है| इन गुणों में सबसे प्रथम प्रेम है| ये वो भरनी ( woof) है जिसके ऊपर , हम अपने जीवन की बेहतरीन रचनाएँ बुनते हैं, और एक चित्रपट का निर्माण कर लेते हैं| भरनी नहीं तो चित्रपट भी नहीं| जब स्वयं से सत्य निष्ठा का प्रेम से गठ बंधन , एक खुशनुमा नृत्य की तरह होता हैं, तो एक परिपूर्ण जोड़े का विकास होता है, और हमारा संपूर्ण जीवन एक समारोह बन जाता है|
इसलिए, जब हवा का रुख तूफानी हो या जब प्रलोभन देने वाला फुफुसायें “ एक समझौता अत्यंत आवश्यक है “ , और ऐसी कोशिश करें जिससे हम उन चुनौतियों से बचने की कोशिश करने लग जाएँ, जो हमारे बढ़ने एवं जागृत रहने के लिए आवश्यक हैं, तो चलो , हर कीमत पर ,हम उस अंदरूनी आधार , हमारी स्वयं से सत्य निष्ठा पर डटे रहें , क्योंकि उसी मे ही हमारे सच्चे जीवन का वास है|
मनन के लिए बीज प्रश्न : आप इस धारणा से कैसा नाता रखते हैं कि स्वयं से सत्य निष्ठा , हमारे अस्तित्व की सबसे आतंरिक वस्तु है? क्या आप उस समय की कोई कहानी साझा कर सकते हैं जब आपने, अपने सत्य की अंदरूनी पहचान को , सिर्फ दुसरे को संतुष्ट या खुश करने के लिए , हल्का करने से मना कर दिया हो? आपको स्वयं की सत्य निष्ठा से, समझौते के प्रलोभन को, दूर हटाने में, किस चीज़ से मदद मिलती है?