हाड मांस से परे की चीज़ों की उपस्थिति , द्वारा ड्रियू लन्हम
व्याख्यान मेरे लिए बहुत आसान रहा है | तकनिकी जानकारी की बुनियाद पे, सिद्धांतों के बुनियाद पे, कुछ सहयोगी प्रतिलिपियों की मदद से , एक प्रकार के बंदी बने हुए कॉलेज के छात्रों या हमउम्र साथियों को, एवं कक्षाओं में एवं व्यवसायिक संगोष्टियों में मैंने सैकड़ों प्रस्त्तुतिकरण दिए हैं || और कई वर्षों की घिसी पिटी भूमिकाएं, तरीके , नतीजे, और निष्कर्षों के बाद मुझे आश्चर्य होता है की क्या कोई सुन भी रहा था -और क्या उनके पास इसे सुनने का कोई विशेष कारण भी था|
व्याख्यान दर व्याख्यान मैं असत्यापित सूचनाओं एवं आंकड़ों को उगलता रहा , जो कि उन लेखों में भी आसानी से उपलब्ध थे| और उन जानवरों के बारे में जो विलोपन के कागार पे हैं, और वे जंगल, जो ट्रोपिक ऑफ़ कैंसर एवं ट् कैपरीकॉर्न के मध्य स्थित है, और कैसे उनका विनाश काटने, जलाने व मवेशियों द्वारा हो रहा है | उनकी तस्वीरों के बीच मेरे विचार, मेरे कानों को ही, एक विनाशकारी धर्मवक्ता के रूप में लग रहे थे| मैं अपने सुनने वालों को देखता था और मैं देखता था की उनके हाव भाव नीरसता एवं खौफ वाले होते थे|दिन प्रति दिन, छमाही दर छमाही, वर्ष दर वर्ष मैं ऐसा ही करता रहा| हाँ, मैं असलियत बताता था | हाँ मैं असलियत छापता था|पर मुझे ऐसा लगा कि असलियत शायद चीज़ों को अच्छा बनाने के लिए प्रोत्साहित नहीं कर पाती |
कुछ वर्ष बाद, मैं कई वसंत ऋतुएँ उत्तरी वेरमोंट में बिताना हुआ , कुछ लिखते हुए एवं प्रकृति के बारे में कुछ अलग तरीके से विचार करते हुए| उस विचित्र सी जगह में मेरा दायाँ मष्तिष्क दोबारा रोशन हुआ| अन्य प्राध्यापकों पे अपना प्रबाव डालने की जरूरत, अपने समुयाईयों की समीक्षा की हुई प्रकाशनों को इकठ्ठा करने की जरूरत, और दान में आये डॉलर की नगद राशि की जगह, अब मेरी इच्छा अपने चैतन्य को जाने की होने लगी| वेरमोंट में , उन सभी जगहों में , जहाँ मैं आज तक गया था, सबसे ज्यादा हरियाली थी| ये एक ऐसी जगह थी जहाँ मुझे कोई नहीं जानता था| उस स्वतंत्रता ने मेरे तनाव से कसे कंधो को ढीला कर दिया, और जो खिंचाव मेरे जबड़ों में रहता था काफी कम हो गया| मैंने अपनी जीवन गति धीमी कर दी और मैं धूल भरी राहों पे चलने लगा, कभी कभी नंगे पाँव भी, और बिलकुल मन से खाली रहने लगा| मेरे दिमाग में सिर्फ वर्त्तमान क्षण से ज्यादा कुछ होता नहीं था| मैं सिर्फ मधुर संगीत वाली चिड़ियाओं एवं बुलबुल को ही अपना श्रोता बनाता था | पिछले दो वर्षों के दौरान मैंने बहुत कम ही आंकड़ों वाले प्रस्तुतीकरण दिए हैं| मैं अपने आपको ज्यादा,उन भारी आंकड़ों को, एक सहज सेवा में लपेटता पाता हूँ| मैं चाहता हूँ की जो शब्द निकलें वो सीधा एक प्रेरणा के झुण्ड हों और मेरे मूंह से निकल कर सबके मन एवं ह्रदय में बस जाएँ| मैं हाथ कम मिलाता हूँ और गले ज्यादा लगाता हूँ| मैं अपने व्यापारिक पहचान पत्र के बजाये दिल की धड़कन का आदान प्रदान ज्यादा करता हूँ| और इससेजो उर्जा महसूस होती है वह प्रत्यक्ष है|
मैं किसी भी अजनबी के सामने, अपने स्वीकारोक्ति ( confessions )के क्षणों में , जब भी अपने आप से भी ज्यादा बड़े प्रेम की बात करता हूँ तब मैं अपना , एक ज्यादा स्वतंत्र रूप पाता हूँ| प्रत्येक क्षण जैसे मेरे नया जन्म हुआ हो| अपने इतने वर्षों की शिक्षा, जो थोड़ी धार्मिकता जैसी लगती है. और वैज्ञानिक प्रशिक्षण ,जो हर उस वस्तु से शंका करना सिखाता है जो आंकड़ोंमें नहीं आती हो, के बावजूद वर्त्तमान में मैं अपना परिचय उस व्यक्ति का देता हूँ जो ज्यादा उस वास्तु से प्रभावित है जो वो नहीं देख सकता हो, बजाये उससे जिसे वो देख सकता हो| जैसे जैसे मैं पौ फटने से पहले के अँधेरे में , शरद ऋतू के वृक्षों में टहलता हूँ, वैसे वैसे मुझे उन चीज़ों का एहसास होता है जो मांस , हड्डी एवं रक्त से परे हैं| मेरा अस्तित्व खुल कर जंगलीय जीवन की असीमितता में समा (Fit ) जाता है | मेरी सभी इन्द्रियां लालिमा से पूर्ण हो जाती हैं एवं मेरे दिल की धड़कन इस जानकारी से तेज हो जाती है की मैं अकेला नहीं हूँ|
मनन के लिए बीज प्रश्न: आप इस धारणा से कैसा नाता रखते हैं कि हम अपनी आवाज़ को उस जगह पहचान पाते हैं जहाँ हमें कोई जानता नहीं हो? क्या आप कोई समय की कहानी साझा कर सकते हैं जब आप बौद्धिक ज्ञान से आगे बढ़ कर वास्तविक सेवा में लग पाए हों ? आपको अपने अस्तित्व को जंगलीय जीवन की असीमितता में समा (fit) जाने में किस चीज़ से मदद मिलती है?