छोटी छोटी दयालुता , द्वारा दनुषा लामेरिस
मैं सोच रहा था, कैसे तुम जब भी एक भीड़ भरे गलियारे
से गुजरती हो . लोग कैसे अपने पैर समेट लेते हैं
तुम्हे रास्ता देने के लिए| या कैसे अजनबी, किसी के छींकने
पे “ खुदा सलामत रखे” का आशीर्वाद दे देते हैं, भले ही वो पुराने ज़माने
की Babonic प्लेग की ही उतरण है| आप “ जिन्दा रहो “ हम कहते हैं|
जब भी आप, हाथ में पकडे राशन वाले थैले से
निम्बू गिरा देते हैं, कोई अन्य आपको उन्हें उठाने में
मदद कर देता है| ज्यादातर हम किसी का नुक्सान नहीं करना चाहते|
हम चाहते हैं की हमारी चाय की प्याली गरम दी जाय ,
और हम उसे देने वाले को धन्यवाद कह पायें| हम उनकी ओर मुस्कुराएँ
और वो भी हमारी ओर वापस मुस्कुराएँ|हम चाहते हैं कि
सेविका ( Waitress) हमें “प्यारीं “ (honey) कह के पुकारे
जब वो हमारे लिए स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ (clam chowder) परोस रही हो,
और वो सामने जा रही लाल रंग की ट्रक हमें अपने से आगे निकल जाने दे|
एक दुसरे का साथ हमारे पास कितना कम है, अभी|हम अपने समुदाय एवं प्यारी
गर्मी देने वाले अलाव से कितनी दूर हैं| सिर्फ छोटे से लम्हें ही आदान प्रदान के हैं|
क्या हो अगर यही लम्हें उस दैविक आभास के प्रतीक हों, वो प्यारे देवालय
जिन्हें हम उजागर कर लेते हैं जब हम कहते हैं, “ ये लीजिये,
कृपया आप मेरी कुर्सी में बैठ जाएँ, “, “आगे आइये - आप पहले “,
“आपकी टोपी मुझे बेहद पसंद है”|
मनन के लिए बीज प्रश्न : आप इस धारणा से कैसा नाता रखते हैं कि जो छोटी छोटी दैनिक दयालुता (small everyday kindness) हम प्रदर्शित करते हैं और हमें प्राप्त होती हैं, वो ही दैविक आभास के प्रतीक हैं ? क्या आप उस समय की निजी कहानी साझा कर सकते हैं, जब एक छोटी दयालुता ने आपको धन्य महसूस करा दिया हो ? आपको एक छोटे लम्हें के आदान प्रदान में दयालुता याद रखने में किस चीज़ से मदद मिलती है ?