"अस्तित्व में होना "द्वारा लता मणि
“अस्तित्व में होना” वह समझ है कि जो कुछ भी मौजूद है वह न केवल अनंत रूप से जीवित है बल्कि उसकी अपनी विशेष जीवंतता, कंपन, विशिष्टता और खास तौर से हर दूसरे अस्तित्व के साथ एक गहन जटिल, आपस में प्रेमपूर्ण, एक दूसरे पर आधारित संबंध में है। और सभी अस्तित्व उस चीज का हिस्सा हैं जिसे हम गैर-पदानुक्रमित (जहाँ कोई बड़ा -छोटा, आगे-पीछे नहीं है) बहुअस्तित्व कह सकते है, जिसे हम सृजन कह सकते हैं। इसलिए न केवल हर चीज अपने विशेष अस्तित्व को व्यक्त और प्रकट करती है - जैसे कि उदाहरण के लिए हम जानते हैं कि एक पेड़ पर दो पत्ते एक दूसरे के समान नहीं हैं। हम यह भी जानते हैं कि ऐसे दो व्यक्ति नहीं हैं जो एक दूसरे के समान हों। हर कोई अपनी विशेष ऊर्जा को प्रकट करता है, और प्रकट करता है अपनी विशिष्टता को [...]
जब आप अस्तित्व से शुरू करते हैं तो यह एक बहुत ही अलग यात्रा होती है। यह समझने का एक बहुत ही अलग तरीका है। सबसे पहले, अस्तित्व का सृजन होता है। यह इस समझ का हिस्सा है कि निर्माता ने अनंतता, या अस्तित्वों की नजदीकी अनंतता को प्रकट किया है, जिनमें से सभी का उद्देश्य परस्पर प्रेमपूर्ण, सहयोगी और एक दूसरे पर आधारित तरीके से आपस में संबंधित होना है। हो सकता है कि आप ऐसे व्यक्ति हों जो सृष्टिकर्ता में विश्वास नहीं करते। कोई बात नहीं , लेकिन आप जो कर सकते हैं वह यह है कि ब्रह्मांड जिस तरह से है, ब्रह्मांड जिस तरह से काम करता है, उसका निरीक्षण करें और आपको यह बात निश्चित रूप से दिखाई देगी कि चीजें आपस में गहराई से जुड़ी हुई हैं। सभी वस्तुएँ वा प्राणी , सभी अन्य वस्तुओं एवं प्राणियों के साथ एक संयुक्त नृत्य में है।
“अस्तित्व में होने “ की महिमा है कि यह आपको उन सामाजिक श्रेणियों से पूरी तरह पहचान बनाने से बचाता है, जिन्हें समाज ने आपके लिए एक तरह के दर्पण के रूप में दिया है, जिससे आप स्वयं को खोज सकें। दूसरे शब्दों में, आप इन सामाजिक श्रेणियों से पूरी तरह नहीं बंधते। आप इससे बचते हैं क्योंकि आप समझते हैं कि आपका अस्तित्व इन श्रेणियों से कहीं अधिक व्यापक है।आप इस प्रवृत्ति से भी बचते हैं कि अपनी सच्ची आत्मा तक पहुँचने के लिए मानवता से ऊपर उठने की कोशिश करें। 'ट्रांसेंड' का अर्थ ही होता है ऊपर उठना। अस्तित्व हमें अपने अस्तित्व में गहराई से साँस लेने की अनुमति देता है—जीवन के अर्थ को खोजने के लिए, अपनी यात्रा के अर्थ को समझने के लिए, ताकि इससे हम जीवन के सार को समझ पायें| ।
यह बातें सुनने में थोड़ी जटिल लग सकती हैं, लेकिन अगर आप ध्यान (मेडिटेशन) के बारे में सोचें, तो आपको समझ में आएगा। ध्यान में क्या किया जाता है? या तो आप अपनी साँसों को देखते हैं या अपने विचारों को। इसका मकसद बस यह होता है कि आप शांत और स्थिर हो जाएँ। जब आप ऐसा करते हैं, तो आप धीरे-धीरे उन धारणाओं से नीचे उतरते हैं, जिन पर आप अब तक जी रहे थे। और जब आप उस गहराई में उतरते हैं, तो आप असल में अपने अस्तित्व को महसूस करने लगते हैं।
अस्तित्व में होना हमें अपने अस्तित्व की गहराई में जाने में मदद करता है ; जीवन के मायने खोजने में मदद करता है , हमारी जीवन यात्रा का मकसद खोजने में मदद करता है , हम कहाँ जाना चाहते हैं , आपने आप के स्वयं की खोज में, और हम यह कर पाते हैं अपने अस्तित्व पर ध्यान दे कर | यह सुनने में बहुत ही काल्पनिक लग सकता है| पर अगर हम ध्यान लगाने के बारे में सोचते हैं , तो वह अभ्यास हमें क्या करने को कह रहा है ? चाहे अपनी साँसों पर ध्यान देना हो अथवा अपने मन पर ध्यान देना हो, दोनों ही बातों में हम अपने आपको शांत करते हैं ओर हम स्थिर हो जाते हैं| हमारे उस प्रशिक्षण का ही हिस्सा है जो हमें नीचे गहराई में नीचे उतरने में मदद करता है , उस अनुभूति से भी नीचे जहाँ अभी तक हम क्रियारत थे| हम किस चीज़ में नीचे उतरते जाते हैं? मेरा मानना है कि हम अपने अस्तित्व में होने में उतर जाते है |
और आप जब अस्तित्व में रहने लग जाते हैं तब आप अपने बारे में ऐसी बातें देखने लग जाते हैं जो उन श्रेणियों से भी ऊपर हैं, और आप अपने बारे में ऐसी चीजें पाने लग जाते हैं हो आपने पहले नहीं देखीं हों | और इस प्रवृति में आप वो रूप रेखा जिसे आप दुनिया को समझने एवं पकड़ने के लिए इस्तेमाल करते हैं, वह भी देखने लग जाते हैं | आप जब किसी एक ध्यानशील अभ्यास की शांति में बैठते हैं , चाहे वो अभ्यास कैसा भी रूप ले, जैसे कोई भजन गाना, ध्यान में बैठना , किसी अनुष्ठान वाली कर्म क्रिया करना , अथवा कर्मयोगी बनना, तब आप क्या कर रहे हैं ? तब आप आप अपने अस्तित्व में स्थिर होने लग जाते हैं| | और जब आप अपने अस्तित्व में समा जाते हैं, , तब आप अपने बारे में बिलकुल नई तरह की जानकारियां हासिल करने लग जाते हैं | वह गूँज, वह लहराव जो सिर्फ विशेष रूप से आपका ही है, वह ही यथावत वही चीज़ है जो आपको चाहिए जिससे की आप कह सकें “ मैं कौन हूँ जो इन सबके बाहर हूँ , वह सब कुछ जो मुझे सिखाया गया है अपने आप को एक अस्तित्व के रूप में सोचने के “ |
मुझे धीरे धीरे नज़र आने लगा कि हमारे स्वयं के कुछ पहलूँ हैं जिनके बारे में मैं अभी तक अनभिज्ञ थी | मैंने अपने शरीर के ऊपर कभी ध्यान नहीं लगाया था | मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरा शरीर भी ज्ञान के स्तोत्र का स्थान है | मैंने मान लिया था कि जो भी मुझे जानकारी हासिल करनी थी वो मैं अपने मन /बुद्धि से कर पाऊंगी | और मुझे यह भी जानकारी प्राप्त हुई कि इस त्रिमूर्ति में तीसरी बिंदु ह्रदय है | ह्रदय की अपनी एक समझ है | मैं अपने दिमाग के सहारे रह रहा थी , और वह भी सतह पर| और उस एक्सीडेंट ने जो एक चीज़ मुझे समझाई कि कैसे ह्रदय की गहराई से गहराई में उतरा जा सकता है , कैसे शरीर की गहराई में उतरा जा सकता है, और उस प्रक्रिया में और अब तक के दस वर्ष के जीवन में , मैं जान पायी हूँ कि वो कैसा अनुभव है जब हम शरीर, मन/बुद्धि , एवं ह्रदय को गले लगा लेते हैं , एक ज्ञान की त्रिमूर्ति मानते हुए , वह त्रिमूर्ति जो हम सब इंसानों के पास उपलब्ध है
मनन के लिए मूल प्रश्न : आपके लिए “ अस्तित्व में होना “ क्या मायने रखता है ? क्या आप उस समय का अनुभव साझा कर सकते हैं , जब आप अपने स्वयं के बारे मैं ऐसे पहलु जान पाए , जिनके बारे में आप पहले अनभिज्ञ थे ? आपको शरीर , मन/बुद्धि, एवं ह्रदय को ज्ञान कि त्रिमूर्ति मान कर ,उसे गले लगाने में किस चीज़ से सहायता मिलती है ?