Error Of Perception

Author
Ramana Maharshi
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Image of the Weekअनुभूति का भ्रम द्वारा रमण महर्षि

प्रश्न :क्या नाम और रूप वास्तविक हैं ?

रमण महर्षि : आपको दोनों वास्तविकता से अलग नहीं मिलेंगे| जब आप नाम और रूप की ओर जायेंगे आपको वास्तविकता ही मिलेगी|अतः उसका ज्ञान हासिल करें जो जागृत, स्वपनीय एवं सुप्त अवस्था जैसी, तीनो अवस्थाओं में वास्तविक है |

प्रश्न : क्या यह सही है कि स्वप्न, हमारी जागृत अवस्था में प्राप्त संस्कार, के कारण आते हैं?

रमण महर्षि : नहीं ये सत्य नहीं है| स्वप्न अवस्था में आप कई बार ऐसी चीजें और ऐसे लोगों को देखते हैं जिन्हें आपने जागृत अवस्था में कभी नहीं देखा है| ये भी मुमकिन है आप अपने स्वप्न में ही एक अन्य दूसरा स्वप्न देखें | जब आप दुसरे स्वप्न से जाग रहे होंगे आपको ऐसा एहसास होगा जैसे आप जाग जाये हैं , पर ये वो प्रथम स्वप्न की जागृत अवस्था होगी| इसी तरह मनुष्य जागता तो प्रतिदिन है पर ये वो वस्ताविक जागृत अवस्था नहीं होती|

प्रश्न: हम दुनिया को एक वास्तविक चीज़ की तरह क्यों देखते हैं?

रमण महर्षि: हम सिनेमा के परदे पे इतना कुछ देखते हैं, पर वो वास्तविक नहीं है|वहां पे उस परदे के अलावा कुछ भी वस्ताविक नहीं है| इसी तरह जागृत अवस्था में वास्तविकता के अलावा कुछ नहीं है| जागृत अवस्था का ज्ञान , उस जागृत अवस्था के जानकार का ज्ञान है| सुप्त अवस्था में दोनों चले जाते हैं|

प्रश्न: हम जागृत अवस्था में इतना स्थायित्व एवं इतनी नियमितता कैसे देखते हैं|

रमण महर्षि: ये गलत विचारों के कारण है| जब कोई कहता है कि मैं एक ही नदी में दो बार नहाया हूँ तो वो गलत कहता है, क्योंकि जब उसने दूसरी बार नहाया , तब वह नदी उसके पहली बार नहाने वाली नदी नहीं थी| कोई कह सकता है की वो प्रतिदिन एक ही फल को देख रहा है, पर वास्तविता में उस फल बदलाव हो रहे होते हैं| एक लौ को देख के ऐसा लगता है जैसे हम उसी लौ को देख रहे हैं पर उस लौ में प्रति सेकण्ड बदलाव आ रहे हैं| जैसे जैसे तेल कम होता जाता है वैसे वैसे लौ बदलती जाती है|जागृत अवस्था भी ऐसी ही है|वो स्थायी अवस्था हमारी अनुभूति के भ्रम की देन है|

प्रश्न : ये किसका भ्रम है|

रमण महर्षि: जानने वाले का| |

प्रश्न: वो जानने वाला कहाँ से आया ?

रमण महर्षि: अपनी अनुभूति के भ्रम की वजह से| वस्तुतः जानने वाला और उसका अशुद्ध ज्ञान दोनों साथ प्रगट होते हैं, और जैसे ही स्वयं के अस्तित्व का ज्ञान हो जाता है, दोनों एक साथ गायब हो जाते हैं|

प्रश्न : वह जानने वाला और उसका अज्ञान कहाँ से आया ?

रमण महर्षि : यह प्रश्न कौन पूछ रहा है?

प्रश्न करता : मैं

रमण महर्षि : आप उस “ मैं “ को जान लें, और आपकी सारी शंकाओं का समाधान हो जायेगा| जैसे की स्वप्न में एक कृत्रिम जानने वाला , ज्ञान और ज्ञात उभर के आता है, जागृत अवस्था में भी वैसी ही प्रक्रिया काम करती है| दोनों ही स्थितियों में “ मैं” की जानकारी होने से , आपको सम्पूर्ण ज्ञान हो जाता है, और कुछ भी जानने को शेष नहीं रहता | अगर, जागृत अवस्था में, “मैं “ की जांच की जाती है, तब हमारी समझ में सब कुछ आ जायेगा और जानने के लिए कुछ भी शेष नहीं रह जायेगा| गाढ़ निंद्रा में जानने वाला , जानंने योग्य ज्ञान एवं जिसे जाना गया , सभी अनुपस्थित हैं| वास्तविक “ मैं “ के अनुभव के समय भी ये तीनो अस्तित्व में नहीं होते| जो कुछ भी हो रहा है वो सिर्फ जानने वाले को ही होता है, और चूँकि जानने अवास्तविक है, वस्तुतः कुछ भी होता नहीं है|

प्रश्न: नींद से जागने के बाद , पहले दिन वाली दुमिया वैसी ही क्यों लगती है?

रमण महर्षि : पहले वाले दिन जो दुनिया देखि गयी वो वास्तविक नहीं थी | वो एक अवास्तविक जानने वाले का ज्ञान था| उसी तरह आने वाले कल की दुनिया भी ,एक अवास्तविक जानने वाले का ही ज्ञान है| अज्ञानी को दुनिया का ज्ञान कल और आज की तरह होता है| पर आत्मज्ञानी के लिए भूत, वर्तमान एवं भविष्य काल में, ये दुनिया कहीं भी नहीं है|

मनन के लिए मूल प्रश्न: आप इस विचार से कैसा नाता रखते है कि जानने वाला एवं उसका भ्रमित ज्ञान, हमारी वास्तविक एवं अवास्तविक के बीच पहचान करने की क्षमता के आधार पे, प्रगट एवं लुप्त होते हैं | क्या आप ऐसे समय की कहानी साझा कर सकते हैं जब आप वास्तविक एवं अवास्तविक के बीच की पहचान कर पाए हों? आपको अपने “ मैं “की जांच में अवास्तविक से वास्तविक तक पहुँचने में किस चीज़ से मदद मिलती है?
 

Excerpted from here.


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