नमक की गुडिया, द्वारा राम कृष्णा परमहंस
एक नमक की गुडिया ने सैकड़ों मील जमीन पर यात्रा की , जब तक कि वो समुन्द्र तक नहीं पहुँच गई|
वो इस चलनशील ,विशाल , व्यापक समूह को देख कर अचम्भित रह गई: ऐसा , इसके पहले उसने ऐसा कभी देखा नहीं था|
“आप कौन हो ? “उस नमक की गुडिया ने समुन्द्र से पुछा|
समुन्द्र ने मुस्कुराते हुए कहा “ अंदर आकर स्वयं ही देख लो”|
और , वो गुडिया समुन्द्र में उतरती चली गई|
जैसे जैसे वो गुडिया समुन्द्र में उतरती गई, वैसे वैसे वो विघटित होती चली गई, और उसका सिर्फ एक छोटा सा प्रारूप ही बच गया|
अपना पूरा प्रारूप विघटित होने से ठीक पहले उसने विस्मय पूर्ण भाव से चिल्ला कर कहा “ अब मुझे पता चल गया मैं कौन हूं”|
मनन के लिए मूल प्रश्न : आत्म बोध ( self- realisation) आपके लिए क्या मायने रखता है? क्या आप एक ऐसा अनुभव साझा कर सकते हैं, जब आपको अपने असली स्वरुप की झलक मिली हो ? अपने असली स्वरुप की महासागर जैसी विशालता को जानने और नमक की गुड़िया जैसे अस्तित्व के विघटन के अनुभवों में आप कैसे सामंजस्य बिठाते हैं ?
Original parable by Ramakrishna Paramhansa, about a salt doll who wanted to measure the depth of the ocean. Edited above by Anthony De Mello.