Between Gift And Privilege

Author
Jonathan Harris
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Image of the Weekआतंरिक गुण एवं विशेषाधिकार के बीच में द्वारा जोनाथन हर्रिस

मुझे आश्चर्य होता रहा है: किस चीज़ होने से कोई वस्तु आतंरिक गुण मानी जाती है | | आतंरिक गुणों और विशेषाधिकार के बीच नें फर्क क्या है| आतंरिक गुणी होना क्या मायने रखता है? हम कैसे एक दूसरे के आतंरिक गुणों को खोज कर उन्हें विकसित कर सकते हैं? किसी आतंरिक गुणी समाज में बसे होने का क्या मतलब होता है?

आतंरिक गुण के तत्त्व को समझने के लिए , यह अच्छा रहेगा कि हम शमानिक समुदाय की “ औषधि “ की भावना की छान बीन करें | कई शमानिक परम्पराओं में , औषधि शब्द का इस्तेमाल , गुणों के एक अनूठे मिश्रण के लिए करते हैं, जो उस जीवंत प्राणी में अंदर सम्मिलित होता है| उदहारण स्वरुप, एक वृक्ष की औषधि , उसकी छाया एवं शरण देने के प्रकार से मानी जाती है: किस प्रकार से वह वृक्ष उस ख़ूबसूरती को जीता है जो उसके एक ही जगह में लम्बे समय तक , जड़ित, जीने से आती है; किस प्रकार वह वृक्ष लचीलापन सिखाता है: हर मौसम के अनुरूप बदलना और तेज़ हवाओं में टूटने के बजाय झुकना | ये सभी गुणों को मिला के बनती है वृक्ष “औषधि “| अपने सभी औषधिक गुणों को अन्य सभी “ गैर वृक्षों” के साथ बाँट कर , ये वृक्ष इस दुनिया में “ वृक्ष” की पहचान बन जाते हैं| शमानिक संप्रदाय के विचार में इसी प्रकार सभी चीज़ें जैसे नदियाँ, चील, गुलाब के फूल, मछलियाँ, जंगल , मकोड़े , चट्टानें इत्यादि काम करते हैं| प्रत्येक जीवंत वस्तु अपने में आतंरिक गुणों के अनूठे मिश्रण को सम्मिलित रखते हैं, जिन्हें ही सामूहिक रूप से औषधि माना जाता है|

अपने मानवीय संसार में भी ये ही समझ प्रयोग में लायी जाती है| हम में से हरेक,अपने में , अंदरूनी गुणों का एक अनूठा मिश्रण संजोता है, जो उभरने का, बाहर आने का, अविष्कृत होने का इंतज़ार कर रहा होता है| ये गुण रूपी उपहार, हमारी वास्तविक पहचान को, ढूंढने की कुंजी हैं, जिन्हें आप आम तौर पे औषधि के नाम से जाना जाता है, वो निश्चित तरीका जिसमे विश्व के”घाव भरने “ की शक्ति होती है | हम जब किसी के बारे में कहते हैं कि वो आतंरिक गुणी है, हमारा तात्पर्य होता है, वो जिसने अपनी प्राकृतिक औषधि को सही प्रयास में लगाया है, और इस तरह वो एक प्रकार से समस्त जीवों का चिकित्सक बन गया है|

हमारे मौजूदा संस्कृति में, इस प्राचीन समझ की कमी है, एवं इस कारण हमें परशानी का सामना करना पड़ता है| हम आतंरिक गुण एवं विशेषाधिकार की धारणाओं में गलत तरीके से उलझ जाते हैं, हम इल्जाम और लज्जित करने के गलत खेल में खो जाते हैं, और बाहरी हालात के ही बारे में वाद विवाद में लग जाते हैं| विशेषाधिकार , सही में स्थिति परक है, कुछ बाहरी हालात के जोड़, जिसमे इंसान पैदायशी या अनुभव स्वरुप पहुंचता है| दूसरी और उपहार रुपी आतंरिक गुण, वो छुपी हुई संभावनाएँ हैं, वो अंदरूनी गुण , क्षमतायें एवं झुकाव है जो हम में जीवंत हैं, और इस बात से पे भी निर्भर नहीं हैं कि हम जीवन में अभी किस स्थिति में हैं|

ध्रुवीकरण पर आधारित, वर्त्तमान की “ पहचान राजनीती” में, हमारा ध्यान बाहरी हालातों पर ही ज्यादा केन्द्रित होता है, जैसे सामाजिक-आर्थिक अवस्था, रंग भेद, सर्वनाम, जाती भेद, स्त्री पुरुष भेद इत्यादि| क्या होता अगर “पहचान राजनीती “ को दोबारा कल्पित करके उसका केंद्र बिंदु बाहरी हालातों से कम करके अंदरूनी गुणों पे केन्द्रित हो जाता? शायद हम एक ऐसी व्यवस्था को बढ़ा सकें , जिसमे हम युवा वर्ग को प्रोत्साहित करके उन्हें उनके विशिस्ट आतंरिक गुणों की पहचान करा सकें, इसके बजाय के वो ,औरो की कहानियों देख के, “ये होना चाहिए” के बहकावे में वे आते जायें| इन दो प्रश्नों को दैविक मान सकते हैं: ऐसा कौन सा कार्य है जिसे करते समय मैं सबसे ज्यादा जागृत/ प्रफुल्लित होता हूं ? विश्व किस बात से प्रभावित होकर उस कार्य की सराहना “ हाँ “ में करता है|

मनन के लिए बीज प्रश्न : आप आतंरिक गुण और विशेसधिकार के फर्क को किस प्रकार से देखते हैं ? क्या आप ऐसी निजी कहानी साझा कर सकते हैं,जब आप अपनी वास्तविक विशुद्ध पहचान , अपनी “औषधि” प्रगट कर पाए हों? आपको बाहरी विशेषाधिकार पर कम ध्यान देने में और अंदरूनी गुणों पे ज्यादा ध्यान देने में , किस चीज़ से मदद मिलती है|
 

Jonathan Harris is an artist and technologist — known for his work with data, design, documentary, and Life Art.


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