Between Knowing And Not Knowing


Image of the Week“ज्ञात (जानने) और अज्ञात (न जानने) के बीच”
- रूथ ओज़ेकी और एज्रा क्लेन के द्वारा ,

एज्रा क्लेन: मैं कभी-कभी इस विचार के साथ खेलता हूँ - और यह स्वीकार करते हुए कि मैं इसके बारे में कुछ भी नहीं जानता - कि यहाँ जो भी बताया जा रहा है उसमें से बहुत कुछ पूरी तरह से पक्का या भरोसेमंद नहीं है। और यह लोगों को नकारात्मक लगता है, लेकिन जब मैं इसके बारे में सोचता हूँ, तो जो कुछ भी कहा जा रहा है वह यह है कि आपके विचार, आपकी स्वयं के बारे में समझ, आपके आस-पास जो कुछ भी हो रहा है वह पक्का नहीं है , है, पूरी तरह से भरोसा करने लायक़ नहीं है। और इसके बारे में वास्तव में स्थिर महसूस करने की आपकी प्रवृत्ति, यह विश्वास करने की कि आप वास्तव में जानते हैं कि क्या हो रहा है, यह इसे एक ठोसता (भारी और सख़्त होना) दे रहा है। मैं हमेशा शून्यता और नहीं जानने की सोच को पसंद करता हूँ, चीजों को ठोस (सख़्त/पक्का) और उनके अर्थ को ठोस और उनकी प्रकृति को ठोस मानने के विकल्प के रूप में।

रूथ ओज़ेकी: हाँ, यह बहुत बढ़िया है। मुझे यह बहुत पसंद है। यह मुझे 'न जानने' की शिक्षाओं के बारे में सोचने पर मजबूर करता है। ज़ेन बौद्ध धर्म में एक मुहावरा है जो कोआन से आता है, जिसका अर्थ है, न जानना सबसे घनिष्ठ (गहरा प्रेमपूर्ण संबंध) और विशाल है।

और जब हम कुछ नहीं जानते और जब हम उस न जानने की स्थिति में रुक सकते हैं, तब हमारे आस-पास की दुनिया के साथ एक तरह की अंतरंगता (आत्मीयता) और मित्रता होती है। और यह कुछ ऐसा है जिसे शुनरु सुजुकी, जो सैन फ्रांसिस्को ज़ेन सेंटर के संस्थापक हैं - वे नौसिखिया (शुरुआत करने वाले ) के मन के बारे में बात करते हैं। यह नौसिखिया के मन का एक और पुनरावृत्ति है।

और वो जो शुरूआती मन के विषय में कहते हैं वो यह है कि शुरूआती मन में असंख्य संभावनाएं हैं और एक अभ्यस्त मन में बहुत ही कम संभावनाएं हैं | और साथ ही वो इस धारणा के विषय में कहते हैं कि यह “नहीं जानने वाली “ स्थिति में , उत्सुकता एवं इस दुनिया के साथ सम्बन्ध उभर के आता है| और इस प्रकार का इस दुनिया से सम्बन्ध ,यह उत्सुकता, बहुत ही आत्मीय है एवं बहुत ही जीवंत है |
और मेरी सोच से,वास्तविकता में यह सम्बंधित है सृजन की प्रक्रिया में, संगीत एवं कला की प्रक्रिया में एवं निश्चित ही साहित्य रचना की सृजन की प्रक्रिया में, इस प्रकार की “नहीं जानने वाली” स्थिति में बैठ पाने की क्षमता,और किसी प्रकार से,कोई उपाय खोज कर वहीँ पर आराम से बने रहना की क्षमता,और उसी स्थिति में सहजता पूर्वक बने रहने की क्षमता से | क्योंकि एक उपन्यासकार के लिए यह असहज स्थिति एवं भावना है।जब मैं उपन्यास लिखने लगता हूँ तो मुझे उसके बारे में कुछ भी पता नहीं होता। और मैं वास्तविकता में चाहता हूँ कि मुझे कुछ तो मालूम हो। मुझे उसके बारे में सब कुछ जानना होता है, इस उपन्यास सम्बन्धी दुनिया के बारे में सब कुछ जानना होता है।
और इसलिए न जानने की स्थिति और फिर जानने की स्थिति के बीच एक तरह का तनाव होता है। और इसलिए किसी तरह ध्यान के माध्यम से, मैं जानने और न जानने के बीच उस उत्पादक तनाव में एक शांत अवस्था में बैठने की क्षमता विकसित करने की कोशिश कर रही हूँ जब तक कि किसी तरह के उत्तर सामने न आने लगें।

चिंतन के लिए बीज प्रश्न:

- आप इस धारणा से कैसे संबंधित हैं कि हमारे आस-पास की दुनिया के साथ अंतरंगता (किसी व्यक्ति या समूह के साथ घनिष्ठ, परिचित, और आमतौर पर स्नेही या प्रेमपूर्ण व्यक्तिगत संबंध)न जानने की स्थिति से उत्पन्न होती है?

- क्या आप ऐसे समय का अनुभव साझा कर सकते हैं जब आप ऐसी अंतरंगता का अनुभव करने में सक्षम थे?

- आपको यह जानने में क्या मदद करता है कि आपके आस-पास जो कुछ भी हो रहा है वह पक्का या भरोसेमंद नहीं है?
 

Excerpted from here.


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