जब मैं कहता हूं , मैं आपको जानता हूं, द्वारा जे कृष्णमूर्ति
जब मैं कहता हूं कि मैं आपको जानता हूं, मेरा तात्पर्य है कि मैं आपको कल जानता था| आपको मैं अभी वास्तव में नहीं जानता | मै सिर्फ मेरे द्वारा बनाई गई आपकी छवि को जानता हूं| जो मैंने आपकी छवि बनाई है, उसका आधार वह है जो आपने मेरी तारीफ़ में कहा है, जो आपने मेरी बुराई में कहा है, जो आपने मेरे साथ किया है | जो भी आपकी स्मृतियाँ हैं, उन्हें ही आपके द्वारा जोड़ के ये छवियाँ बनाई है| और आपने भी मेरी छवि इसी प्रकार बनाई होगी और ये छवियाँ ही हैं जिनका आपस में रिश्ता होता है, और ये ही छवियाँ हमारे आपसी वास्तविक मैत्रिक वार्तालाप में बाधा बनती हैं|
दो व्यक्ति जो आपस में कई वर्षों से साथ रह रहे होते हैं, आपस में एक दूसरे की छवि बना लेते हैं, और ये छवि उन्हें आपस में वास्तविक रिश्ता रखने में बाधा बनती है|अगर हम रिश्ते निभाना समझते हैं तो हम सहयोग कर सकते हैं, परन्तु सहयोग छवियों , प्रतीकों, वैचारिक मान्यताओं के माद्यम से शायद जीवित नहीं रह सकता| सिर्फ जब हम आपस के सही रिश्ते समझ सकते हैं तभी आपसी प्रेम कि गुंजाईश रहती है, और प्रेम भी छवि के होने के कारण नगण्य हो जाता है| अतः यह समझना बहुत अति आवश्यक है , बुद्धि से नहीं, परन्तु अपनी दैनिक दिनचर्या में, कि कैसे हमने अपनी पत्नी की , पति की, पडोसी की , बच्चों की, अपने देश की , अपने नेताओं की , और अपने भगवान की , एक छवि बनाई है, और अब हमारे पास सिर्फ छवि है|
ये छवियाँ आपमें और आप जो अवलोकन करते हैं , के बीच में एक अंतराल पैदा करती है , और उस अंतराल से द्वन्द होता है, और अब जो हम साथ में पता लगाने जा रहे है, वो ये है, कि क्या ये मुम्किन है, कि हम अपने खुद के बनाये हुए अंतराल से मुक्त हो जायें, ना सिर्फ अपने से बाहर , वरन अपने अंदर भी, उस अंतराल से से जो व्यक्तियों को अपने सभी रिश्तों से विभाजित करता है|
उस ये समझें कि आप किसी भी समस्या पे ,जो ध्यान देते हैं, वो ध्यान ही वो शक्ति है जो उस समस्या का समाधान करती है| जब आप अपना संपूर्ण ध्यान देते है, जितना भी आपके बस में है, तब कोई भी अवलोकन करता नहीं रह जाता| आपका सम्पूर्ण ध्यान ही पूर्ण उर्जा है, और ये ही पूर्ण उर्जा सबसे उच्चतम बुद्धिमता है| ये जरूरी है की वह मानसिक स्थिति पूर्णतया शांत हो, और वह शांति,वह स्थिरता, उस वक़्त प्रगट होती है जब पूर्ण ध्यान हो, ना कि अनुशाशन बद्ध स्थिरता | वो पूर्ण शांति ही वो समय है जब दृष्ट ओर दृष्टा एक हो जाते है और ये ही धार्मिक बुद्धि की उच्चतम स्थिति है| पर उस स्थिति में जो कुछ भी होता है वो शब्दों में नहीं कहा जा सकता , क्योंकि जो शब्दों में कहा जा सकता है वो असलियत नहीं है|
आपको स्वयं जानने के लिए आपको स्वयं के अनुभवों बीच से जाना होगा|
हर समस्या , सभी और समस्याओं से जुडी होती है, और इस तरह अगर आप एक समस्या का पूर्णतयः समाधान कर पाते हो , चाहे वह समस्या कुछ भी हो, आप पायेंगे कि आप हर समस्या का समाधान आसानी से कर देते हैं| हम यहाँ पर मनोवैज्ञानिक समस्याओं की बात कर रहे हैं| हमने देखा है कि समस्याएं उस समय पर ही आश्रित है और जब हम उन से अपूर्ण रूप से मिलते हैं | ना सिर्फ हमें उन समस्यायों का स्वभाव और स्वरुप ध्यान में रखना जरूरी है, और उन्हें पूर्ण रूप से देखना जरूरी है, बल्कि जैसे ही वो समस्या उभरती है , उसी वक़्त उस से मिल कर उस का समाधान करना जरूरी है, ताकि वो समस्या हमारे मन पर अपनी पकड़ ना बना ले|अगर हम किसी समस्या को एक माह , एक दिन, या एक मिनट भी सुलझाने में देर करते हैं, तो वो समस्या हमारे मन एवं बुद्धि को दूषित कर देती है|क्या यह मुमकिन हैं कि हम समस्या से उसी वक़्त मिलें ,जब कोई भी विकार पैदा ना हुआ हो और उस से उसी वक़्त सम्पूर्ण रूप से आज़ाद हो जायें और अपने मन में उसकी कोई स्मृति या चिन्ह ना रहने दें? ये स्मृतियाँ ही हैं जो छवि के रूप में हम साथ रखते हैं, और ये ही छवियाँ उस से रु बरू होती हैं, जिसे हम जीवन कहते हैं, और इसीलिए विरोधाभास होता है और फलतः द्वन्द होता है| जीवन सत्य है, कोई कपोल कल्पना नहीं है, और जब भी आप उससे छवि के माध्यम से मिलते हैं, मुश्किलें आती हैं|
क्या यह मुमकिन हैं कि हर मुद्दे का सामना, इस समय-अंतराल (space -time) के मध्यांतर , और जो आपके एवं आपके भय के बीच की दूरी है, के बिना किया जाए | ये तभी मुमकिन है जब दृष्टा की कोई निरंतरता (continuity) ना हो, वो दृष्टा जो छवि का निर्माण करता है, वो दृष्टा जो स्मृतियों एवं छवियों का संग्रह है, वो जो विरोधाभासों की गठरी है|
जब आप सितारों को देखते हैं, ये आप हैं जो आसमान में सितारों को देख रहे हैं: आसमान सितारों से भरा हुआ है और ठंडी हवे बह रही है, और वहीँ आप हैं, एक दृष्टा हैं , अनुभवकर्ता हैं , दार्शनिक हैं , आप जिनके ह्रदय में दर्द है, आप , वो मध्य हैं जो फैलाव पैदा करते है | आप कभी भी अपने और सितारों के बीच की दूरी को समझ नहीं पायेंगे, आपकी और आपकी पत्नी या पति, या मित्र, के बीच की दूरी समझ नहीं पायेंगे, क्योंकि आपने कभी भी छवि के बिना उन्हें देखा ही नहीं है, और इसी लिए आपको नहीं पता कि क्या सौंदर्य है या क्या प्रेम है| आप उसकी बातें करते हैं, उसके बारे में लिखते हैं, पर शायद आपने उसका कभी भी एहसास नहीं किया होगा , उन चंद लम्हों के अलावा जब आप ने स्वयं को भुला दिया होगा| जब तक एक मध्य होगा, जिसने अपने चारों ओर अंतराल पैदा कर रखा होगा , तब तक सौंदर्य या प्रेम नहीं होगा|
जब ना कोई मध्य है ना कोई परिधि है, वही प्रेम है| और जब आप प्रेम करते हैं तब आप ही सौंदर्य हैं |
मनन के लिए मूल प्रश्न : आप इस बात से कैसा नाता रखते हैं कि जब भी एक मध्य होगा जिसने अपने चारों ओर अंतराल पैदा कर रखा होगा , वहां ना सौंदर्य होगा ना वहां प्रेम होगा? क्या आप अपनी एक निजी कहानी साझा कर सकते हैं, जब आप ऐसे ध्यान छेत्र में पहुंचे हों जहाँ ना कोई दृष्टा था ना कुछ भी दृष्ट ? आपको किसी चीज़ को एक छवि के बिना देखने में किस बात से मदद मिलती है?