Cognitive Bypassing

Author
Russell Kennedy
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Image of the Weekज्ञानात्मक उपमार्ग द्वारा रसेल विल्सन
मैं एक चिकित्सक हूं, स्नायु वैज्ञानिक हूं, और एक व्यग्रता विशेषज्ञ हूं| मेरी बात कई व्यक्तियों से होती है जो व्यग्रता से पिडित होते हैं क्योंकि वे अपने ही मस्तिश्क में फंसे होते हैं | मैं यहाँ पर एक शब्द का परिचय करना चाहूँगा जो मैं पहले नहीं सुना था (अपनी औषधीय अथवा मनोचिकित्सक छेत्र में तो बिलकुल भी नहीं)|

मैं उसे “ज्ञानात्मक उपमार्ग “ बुलाता हूं |

मैं देखता हूं बहुत से व्यक्ति दूसरों को समझाते हैं, अपने विचारों को पुनर्गठन करने को| इसे एक रास्ता माना जाता है जिससे दर्द भरी भावनाओं से बचा जा सके, और यहाँ तक कि पुराने मानसिक आघातों एवं व्यग्रताओं से भी छुटकारे मिल सके| हम एक neck-up समाज में रहते हैं, हम अपने शरीर में भी बसने में कतराते हैं, जबतक की हमारा शरीर अच्छा ना महसूस कर रहा हो| अप्रिय भावनाएं एक बाध्यता के साथ समझा दी जाती हैं, या उन्हें अपने मश्तिष्क से दूसरी तरफ़ मोड़ दिया जाता है|

ऐसे आत्म- उन्नति वाले गुरुओं एवं प्रशिक्षकों की कमी नहीं जो आपको आपके मानसिक आघातों को “व्यवस्था क्रम “ में लाने के लिए एक उपाय बताते हैं जिनमे नए मानसिक व्यवस्था क्रम बनाये जाते हैं ( यहाँ सकारात्मक मनोविज्ञान आन्दोलन एक अच्छा उदाहरण है) | “अच्छा सोचने लगिये , आप बेहतर महसूस करने लगेंगे) “ वे कहते हैं| थोड़े समय के लिए तो यह बात मददगार साबित होती है , पर लम्बी अवधि में तो यह विपरीत उत्पादकता की तरफ़ जाती है|
क्या आपने कभी ऐसे विचार करने की कोशिश की है जो आपके शारीरिक आभास के विपरित हो? आप कुछ देर तक कर सकते हैं , पर वास्तव में वो पहाड़ से नीचे गिरते पत्थर को वापस पहाड़ पे चढाने जैसा होता है|

ज्ञानात्मक उपमार्ग को अपने भावनात्मक उत्थान के लिए एक रण निति के तरह इस्तेमाल करने में कुछ गलत नहीं है| पर जब मैं लोगों को ये मानते हुए देखता हूं कि प्रत्येक नकारात्मक भावना को पुनर्गठन करने कि आवश्यता है या ज्ञानात्मक तरीक से समझने कि आवश्यकता है तो मैं सिकुड़ जाता हूं| बाध्यता से भावनाओं को संज्ञान से जोड़ने से ये नुक्सान होता है कि हमें हमारे मानसिक आघातों से छुटकारा नहीं हो पता| पर ये एक अप्रिय सत्य है कि हमें अपनी दुखभरी भावनाओं को पूरी तरह महसूस करना होगा, चाहे ये सुनने में कितना भी कठिन लगे|

मुझे पता है कि ये एक डाक्टरी चिकित्सक से सुन के अजीब लगता है, पर मानसिक आघातों का छुटकारा , हमारे शारीरिक एहसास को अपनाने से ज्यादा जुड़ा होता है, ना कि हमारे मश्तिष्क के विचारों से| मानव जाति , शोक और अन्य दुखद भावनाओं से बचने के लिए में मश्तिष्क में ज्यादा उतर जाती हैं
शोक हमारे समाज में लगातार किनारे कर दिया जाता है| यहाँ तक कि हमारा मनोरोगिक निदान अधिकतर हमारे बचपन में हुए मानसिक नुक्सान के अनिर्णीत शोक से ज्यादा जुड़ा होता है|ऐसा नहीं है कि ये शोक सिर्फ प्रिय जनों की मृत्यु का ही हो, ( हालाँकि ये भी एक कारण होता है) पर ये शोक माता पिता के सम्बन्ध विच्छेद (divorce) का, बाल्यावस्था में दुर्व्यवहार का, तिरस्कार का या अन्य बड़े नुक्सान का होता है|

ऐसे बहुत सारे चिकित्सक हैं जो आपको इस छति से उभरने में मदद करेंगे पर इनमे से कितने हैं जो आपको इस छति के साथ बैठ रहने देंगे, बिना बाध्यता से उसमे स्पष्टीकरण जोड़ने की जरूरत के? क्या बाध्यता से दुखभरी भावनाओं का स्पष्टीकरण नहीं करना, उन भावनाओं को अपने अंदर सम्मिलित (metabolize) करने के लिए एक व्यापक छेत्र प्रदान करना नहीं है? शायद उससे जो उनके नीचे मानसिक आघात है, उसका निर्णय हो सके और उसका निदान हो जाए|

“अध्यात्मिक उपमार्ग “ , एक ऐसा शब्द है जो वर्ष १९८० में एक जॉन वेल्वूद जो एक बौध गुरु एवं मनोवैज्ञानिक चिकित्सक भी थे, ने रचा था| उन्होंने इसे ऐसे समझाया था” अध्यात्मिक विचार एवं पद्धति के माध्यम से अनिर्णीत भावनात्मक मामलों , मनोवैज्ञानिक घाव, एवं अपूर्ण विकासात्मक कार्यों, को दरकिनार करना या उनका सामना नहीं करने की ओर हमारा झुकाव”|

ज्ञानात्मक उपमार्ग , एक पद्धति है, जिसमे भावनाओं को टाल देते हैं ज्ञानात्मक मान्यताओं के सहारे| ज्ञानात्मक उपमार्ग इस पूर्व धारणा पे चलता है प्रत्येक मानसिक आघात एवं भावना को सही किया जा सकता है ज्ञानात्मक तरीके से या अपनी सोच को पुनर्गठित करके| मुझे ज्ञानात्मक उपमार्ग से कोई परेशानी नहीं है , पर मुझे परेशानी ये है कि अगर जब भी कोई भावना उठती हो तो उस पर “कार्य “किया जाए या उस पर ज्ञानात्मक चालाकी से उससे छुटकारा पाया जाए|

ऐसे बहुत से व्यक्ति हैं ( जिन्हें मानसिक आघात को सुधारने की प्रशिक्षा भी नहीं है) जो मान के चलते हैं कि वे किसी के दर्द का निवारण ज्ञानात्मक पहलु बदल के कर सकते हैं| मेरी राय में वर्ष दर वर्ष तैयार हो रहे जीवन यापन प्रशिक्षकों की बढती तादाद को देख कर भी येही महसूस होता है| वो प्रशिक्षक ( और ज्यादातर वो जिन्हें भावनात्मक मानसिक आघातों के बारे में जानकारी नहीं है) अच्छा करने से कहीं ज्यादा नुक्सान करते हैं|मानसिक आघात एवं कष्टदायक भावनाएं झेल रहे लोगों को, प्रशिक्षण द्वारा, उनको उससे बाहर निकलना एक खतर्नाक खेल है|
कुछ भावनाओं को छोड़ देने की जरूरत है और उन्हें सिर्फ महसूस करने की जरूरत है|

हाँ ये अवश्य जरूरी है कि आपके शोक एवं मानसिक आघात के स्तोत्र को समझा जाए , पर उन भावनाओं के साथ थोड़ी देर सिर्फ बैठ कर उन्हें महसूस करना जरूरी है| उनके साथ यंत्रवत एवं प्रत्येक समय विचारों को जोड़ के देखने की आवश्यकता नहीं है|

मनन के लिए बीज प्रश्न : ज्ञानात्मक उपमार्ग की धारणा से आप क्या समझते हैं? क्या आप एक निजी कहानी साझा कर सकते हैं, जब आपने शोक के साथ सिर्फ बैठ कर उसे अपने अंदर सम्मिलित (metabolize) किया हो? आप को बाध्यता पूर्वक ( यंत्रवत ) भावनाओं को ज्ञानात्मक परिपेक्ष से देखने से बचने में किस चीज़ से मदद मिलती है?
 

Excerpt from here.


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