Inhabiting The Body

Author
Judith Blackstone
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Image of the Week“शरीर में आतंरिक निवास”
जूडिथ ब्लैकस्टोन द्वारा*


शरीर के भीतर रहना शरीर के आंतरिक विस्तार के संपर्क में रहना है। उदाहरण के लिए, अपने हाथों में रहने का अर्थ है कि हम अपने हाथों के पूरे आंतरिक विस्तार के संपर्क में हैं। हमारे शरीर में हर जगह संपर्क में रहने से आंतरिक संपूर्णता का अनुभव होता है, अपने अस्तित्व के एक एकीकृत आधार का अनुभव होता है |

यह संपर्क चेतना है। जब हम अपने अपनी मूल पहचान को वैचारिक रूप से नहीं, बल्कि अनुभवात्मक रूप से जानते हैं। जब हम शरीर में आतंरिक निवास करते हैं, तो हमें लगता है कि हमारी चेतना हमारे शरीर में हर जगह है। यह एक ठोस एवं वास्तविक अनुभव है। हमें लगता है कि हम चेतना से बने हैं। हम खुद को काल्पनिक रूप से जानते हैं और अपने लिए एक ऐसे प्रारूप में विचार रखते हैं जो विभिन्न परिस्थितियों में बदल सकता है | अब यहाँ से एक बदलाव आता है , जहाँ हम एक अपरिवर्तनीय, गैर वैचारिक आधार वाली चेतना को शारीरिक रूप में जीने लग जाते हैं| । एकात्मक चैतन्यता के अवतार के रूप में, हम अपनी मूल पहचान को वैचारिक रूप से नहीं , बल्कि अनुभवात्मक रूप से जानते हैं |
अपने शरीर के साथ आंतरिक संपर्क एक ही समय में हमारी मानवीय क्षमताओं के साथ आंतरिक संपर्क है। उदाहरण के लिए, किसी की गर्दन के अंदरूनी स्थान के साथ आंतरिक संपर्क किसी की आवाज़, बोलने की क्षमता के साथ संपर्क है। अगर हम अपनी गर्दन को सिकोड़ते हैं और उसके भीतर रहने की अपनी क्षमता को सीमित करते हैं, तो हम अपनी आवाज़ के इस्तेमाल को सीमित करते हैं। किसी की छाती के अंदरूनी स्थान के साथ आंतरिक संपर्क किसी की भावनात्मक प्रतिक्रिया की क्षमता के साथ संपर्क है। जब हम अपनी छाती को अपने शरीर में सिकोड़ते और सीमित करते हैं, तो हम अपनी भावनात्मक प्रतिक्रिया की गहराई और तरलता को भी सीमित करते हैं। इस कारण से, शरीर में रहना शुरुआती मनोवैज्ञानिक घावों से उबरने के लिए महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह हमारे अस्तित्व की जन्मजात क्षमताएँ हैं जिन्हें हम अपने जीवन में अत्यधिक दर्दनाक या भ्रमित करने वाली घटनाओं की प्रतिक्रिया में सिकोड़ते हैं।
हम अपने आस-पास की दुनिया की अपनी धारणा या उस पर अपनी प्रतिक्रियाओं को दबा नहीं सकते, सिवाय अपने शरीर को कसने औए उसे सिकुड़ने के । उदाहरण के लिए, हम अपनी छाती, गर्दन और अपनी आँखों के आस-पास की मांसपेशियों को कसने के अलावा हम अपने आप को रोने से नहीं रोक सकते। हम अपने माता-पिता के झगड़ने की आवाज़ को नहीं रोक सकते, सिवाय अपनी सुनने की क्षमता को कसने या सिकुड़ने के। इस कारण से, हम खुद को ठीक नहीं कर सकते, उदहारण स्वरुप , अपनी भावनात्मक प्रतिक्रिया की गहराई को ठीक नहीं कर सकते , अपनी इंद्रियों की तीव्रता को ठीक नहीं कर सकते , बिना अपने आपको अपने शारीरिक बंधनों से आज़ाद किये|

ये कठोर शारीरिक संरचनाएँ शरीर के आंतरिक स्थान में रहने की हमारी क्षमता में बाधा डालते हैं। इसलिए वे स्वयं और दूसरों के साथ हमारे संपर्क के अनुभव को कम करते हैं, तथा हमारी आंतरिक सुसंगति और अंतरंगता की क्षमता दोनों को सीमित करते हैं। बोध प्रक्रिया में, हमारे शरीर के आंतरिक स्थान तक पहुंचने और अंततः उसमें निवास करने की प्रक्रिया, इन अवरोधों को पहचानने और मुक्त करने तथा हमारी जन्मजात क्षमताओं की स्वतंत्रता और गहराई को पुनः प्राप्त करने की हमारी क्षमता को सुगम बनाती है।

हमारी वास्तविकता को नकारने के प्रतिकार के रूप में, जो अक्सर बचपन के आघात का एक पहलू होता है, हमारे अस्तित्व के अपरिवर्तनीय आधार के माध्यम से हमारे अनुभव का मुक्त प्रवाह हमें यह जानने में मदद कर सकता है कि हम वास्तव में क्या महसूस करते हैं, वास्तव में क्या समझते हैं, वास्तव में क्या जानते हैं।

एकात्मक चैतन्यता को शारीरिक रूप में जीने पर , हमें हमारे शरीर एवं अस्तित्व के बीच के सम्बन्ध में किसी भी विभिन्नता का अनुभव नहीं होता है |हमें ऐसा अनुभव होता है मानो हम खुद ही अपने शरीर के आतंरिक स्थल/विस्तार ही हैं| यह एकात्मक चैतन्यता का अनुभव ही शांति एवं स्थिरता का अनुभव होता है| पर यह एक खालीपन नहीं है : यह खोखलापन या निराधार भी नहीं है| यह मानो हमारी अपनी जागृत उपस्थिति का ही एहसास है | यह मानो एक सबसे गहरा , एक सबसे सीधा संपर्क है जो हम अपने अस्तित्व के साथ महसूस कर सकते हैं |

मनन के लिए मूल प्रश्न :
आपके लिए आपका अपने शरीर में आतंरिक निवास करना क्या मायने रखता है ?
क्या आप उस समय की अपनी एक निजी कहानी साझा कर सकते हैं जब आप अपनी आतंरिक अनुभूति एवं अपनी शारीरिक क्रियाओं के बीच का सम्बन्ध देख पाए हों?
आपको अपनी मानवीय क्षमताओं से अपना आतंरिक जुड़ाव रखने में किस चीज़ से मदद मिलती है ?
 

Excerpted from here.


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