जैसे जीना चाहतें हैं वैसे जीयें, पर आन्तरिकता में सब त्याग दें - सिद्धरामेश्वर महाराज के द्वारा
वास्तविकता में कोई गुण या लक्षण नहीं है : यह रंग नहीं है, यह संगीत नहीं है, यह पीला या काला आदि नहीं है। आप जो देखते हैं वह केवल सिमित चेतना है यानि जैसे आप देखते हैं कि चूड़ियाँ या बाजूबंद दोनों सोने से बने हैं। [...] आपको यह आग्रह करना बंद कर देना चाहिए कि इस शरीर के साथ सिर्फ़ अच्छा ही होना चाहिए। आप स्थूल शरीर बन गए हैं क्योंकि सिर्फ एक शरीर ही आपकी धारणा की वस्तु है । क्योंकि हम सभी वस्तुओं को अलग अलग भाग में बाँट देते हैं , इसी लिए अहंकार है। आप पत्नी को पत्नी, बेटे को बेटे, घोड़े को घोड़े और कुत्ते को कुत्ते के रूप में देखते हैं। लेकिन वे सभी एक ही वास्तविकता हैं।
वास्तविकता एक और केवल एक है, बिना किसी द्वैत (अलग अलग होने) के। वास्तविकता केवल एक है, इसके अलावा, कुछ भी मौजूद नहीं है। तो फिर यह वासतविकता संसार जैसी क्यों दिखती है ? अलग अलग गहनों में केवल सोना ही है, और कुछ नहीं है । बाद में, उन्हें कंगन, चूड़ियाँ और हार के रूप में नाम दिया जाता है, लेकिन उनका आधार तो केवल सोना ही है और कुछ नहीं।
वास्तविकता हर वक़्त जगमगाती है , पर वह “मैं” द्वारा निगल ली जाती है | हमारा अहम् वास्तविकता नहीं है , पर उसके जैसा ही नज़र आता है| चेतना ही सब कुछ है| “ मैं ही वास्तविकता हूँ “ यह कहना जरूरी नहीं है | जन्म एवं मृत्यु इस "मैं "ही सम्बन्ध रखती है | पञ्च- तत्त्व एवं चेतना भी , जैसी थी वैसी हैं, पर सूक्ष्म शरीर , जो अपने आपको “ मैं “ कहता है , और जो समस्त प्रकार की तृष्णाओं से भरा है , ही है जो अंत में मृत्यु को पाता है| उदहारण स्वरुप जब लोग कहते है “ वामन राव अब नहीं रहे “ तो इसका मतलब है यह नाम अब नहीं रहा| चूँकि उन्होंने जन्म लिया इसलिए उनकी मृत्यु भी हुई| अपने मन से यह विचार हटा दें कि आप कोई विशेष “ मैं” हैं| यह ही ज्ञान बोध की निशानी है| जो भी यह कहता है कि “मैं ही वो हूँ जो अनुभव करता है “ , वह दानवों द्वारा निगल लिया जाता है एवं उसके बाद भी उसी झांसे में फंसा रह जाता है|
यह हाथ हैं जो उठाने का काम करते हैं , पर आप कहते हैं “मैंने” उठाया है| आँखें देखती हैं पर आप कहते हैं”मैं” देखता हूँ | नाक सूँघता है पर आप कहते हैं “ मैं “ सूँघता हूँ| यह सब हमारे अस्तित्व ( आत्मा) की ही शक्तियां हैं पर फिर भी आप कहते हैं “ मैं करता हूँ “ | यह सारी शक्ति इश्वर के पास ही है | यह कैसा अहम् है जो इस” मैं “ को हड़प रहा है | इस अहम् की इस महल- रुपी शरीर में कोई जगह नहीं है, पर जैसे ही अहम् को अन्दर आने दिया जाता है , यह शरीर रुपी महल के राजा के विरुद्ध भी निर्णय देने लग जाता है , और अपना ही अस्तित्व अभिपुष्ट करने में लग जाता है | पर थोड़े से अनुसन्धान / आतंरिक जांच के बाद ही इस अहम् का अस्तित्व आसानी से खंडित हो जाता है| उसके पश्चात इस शरीर रुपी महल का राजा फिर से अभिपुष्ट करता है कि “ मैं ही वास्तविकता हूँ “ | इस बाद वाली स्थिति की एक विशेष बात है – इसी में परमानद है| अगर ये दो स्थितियां हैं तो दुःख है , पीड़ा है| जहाँ पर भी ये दोनों एक हैं वहीँ परमानन्द है |
साधक के सामने हमेशा यह प्रश्न आता है कि, "क्या हम घर-गृहस्थी चलाते रहें या उसे छोड़ पूर्णतः दें?" घर-गृहस्थी चलाएँ या छोड़ दें, यह कोई गिनती में नहीं आता । गले में तुलसी की माला पहनकर भी मन/ह्रदय में क्रोध की लहर का दौड़ना कोई अर्थ नहीं रखता। यदि कोई अपने अंतरात्मा के प्रति सचेत नहीं है, तो भगवा वस्त्र पहनने से क्या लाभ? वृक्ष, बाघ, पशु-पक्षी इत्यादि घर-गृहस्थी नहीं चलाते, तो क्या इसका अर्थ यह है कि वे संत हो गए हैं? यदि कोई अपने अंतरात्मा के प्रति सचेत नहीं है, तो भगवा वस्त्र का क्या लाभ है? उसे सावधान रहना चाहिए। वस्तुनिष्ठ ज्ञान ( सांसारिक ज्ञान) को असत्य सिद्ध होना चाहिए। संसार में हम जो भी कार्य कर रहे हैं, वे सब असत्य सिद्ध हो जाने चाहिए, और जिन्हें असत्य मान लिया गया है, उसे सत्य के रूप में अनुभव किया जाना चाहिए।
यदि व्यक्ति आंतरिक रूप से अनासक्त ना हो तो क्या लाभ होगा ? इसलिए हमें हमारा दृष्टिकोण/स्वभाव बदलना चाहिए। यह जानना और अनुभव करना , कि हमारे चारों ओर चलता हुआ प्रकट संसार ,जो हमें आंखों से दिखाई देता है, वह सब मिथ्या है, एक अत्यंत ही बहादुरी भरा कार्य है । व्यक्ति को अपनी आन्तरिकता में अनासक्त होना चाहिए । जैसा आप चाहते हैं वैसा जीवन जीयें लेकिन आंतरिकता में सब त्याग दें ।
चिंतन के लिए बीज प्रश्न :- जैसा आप चाहें वैसे जिएँ, लेकिन आन्तरिकता में सब त्याग दें , इस बात से आप कैसे संबंधित है?
क्या आप कोई व्यक्तिगत कहानी साझा कर सकते हैं, जब आप अपने समस्त वस्तुनिष्ठ ज्ञान ( सांसारिक ज्ञान) को अंततः असत्य मानने में सक्षम हुए थे?
आपको अपने अहंकार भरे अस्तित्व को गलत साबित करने में किस बात से मदद मिलती है ?