संतुलित रखने वाली शक्ति द्वारा स्वामी क्रिशानानन्दा
जिस प्रकार की सुरक्षा एवं संरक्षण इस मानवीय संसार में हम उम्मीद करते हैं, वो मानव द्वारा अपनाई गई, मानवता के कल्याण लिए, अच्छी एवम आवश्यक भावनाएं हैं| पर ईश्वर ( धर्मं ) , मानव द्वारा अपनाये गये विचार से समीकृत नहीं किया जा सकता, और इंसानों के अच्छे एवं आवश्यक की धारणा जरूरी नहीं है की इश्वर कि दृष्टी में इंसानों के सही भले एवं आवश्यक जैसा ही हो | इसलिए पुरातन काल के गुरुओं ने ईश्वरीय संरक्षण की त्रिगुणी क्रिया की पहचान की और उसे साधारण धार्मिक बोलचाल में दुर्गा, लक्ष्मी एवं सरस्वती का नाम दिया|
इस संसार की उत्पत्ति एक त्रिगुणी प्रक्रिया है जो एक ही समय में घटित हो रही है| किसी चीज़ की उत्पत्ति होती है, किसी चीज़ को एक विशेष स्थिति में रखा जाता है, और उसके उपरांत वो चीज़ एक ऐसे रूप में परिणित हो जाती है, जो इस प्रक्रिया का ही विशेष लक्ष्य था| विश्व एक गतिहीन, नीरस जीवन नहीं है| ये इश्वर के पास पहुँचाने की यात्रा है| ये विश्व ही वो पथ है, जिसे जीवित प्राणी , अपने रचयिता इश्वर से एक हो जाने के लिए, पार करते हैं| ये विश्व एक गतिविधि है, ये एक प्रक्रिया है, और ये एक ठहराव नहीं हैं, और ये एक सिर्फ चलन भी नहीं है | ये सिर्फ क्रिया या गति नहीं है: ये किसी स्थान में कोई विशेष जगह भी नहीं है|ये ठहराव एवं गति का एक संतुलन है| वैज्ञानिक बोलचाल में इस प्रकार के ठहराव एवं गति का कोई धारण ही नहींहै, जैसे तामस एवं राजस |
हमारे पास ठहराव का विज्ञानं हैं और गति का भी विज्ञानं है| इसमें एक और शक्ति की जरूरत होती है और वो है सत्व, जो इन दोनों में संतुलन बना सके |
हम अपने व्यक्तित्वे में भी ऐसी ही एक जैसी परिस्थिति बना के रखते हैं जबकि वास्तव में हम सभी बहती नदी के बहने के समान हैं|हम एक जगह अपने को रखते हैं , जबकि हम चलित प्रक्रिया के अंग हैं|हमने गर्भ से लेकर व्यस्क इंसान के रूप में, शारीर को इसी तरह के बदलाव से बढाया है, और एक तरह का निरंतर उपज एवं चलंत बदलाव है, जो हमारे शरीर के प्रत्येक जीवाणू में होता रहा है| हमारे शरीर एवं उसमे के अनेक जीवाणू का उदय, संरक्षण एवं विध्वंश निरंतर होने के बाद हमारे व्यक्तित्व का विकास हुआ है|
यद्यपि, अपने अद्रश्य स्वरुप में, यह विश्व एक मशीन कि तरह कार्य करता नज़र आता है, और भूत, भविष्य एवं वर्त्तमान में एक सम्बन्ध भी है, फिर भी इसमें एक ऊँचा उठने ( Transcendental) की प्रक्रिया भी है| यह अंततः एक यांत्रिक प्रक्रिया नहीं है|जीव विज्ञानं से देखें तो हमारा शरीर जीव विज्ञानं के अनुसार एक मशीन की तरह बढ़ता रहता है|और एक प्रकार के मनोवैज्ञानिक शास्त्र के अनुसार , हमारी मानसिक गतिविधि भी मशीन के अनुसार है| परन्तु हम में से कोई भी मशीन नहीं है|हम में ऐसा कुछ है जो शरीर एवं मानसिक गतिविधि से ऊपर उठ के है एवं उससे ऊपर एवं परे है|
ठहराव एवं बदलाव (तमस एवंम रजस) , सत्व से ही नियंत्रित होते है , जो की इन दोनों में से किसी के के गुण नहीं हैं| यह एक ऊँचा उठने ( transcendental) की प्रक्रिया है|ये तमस एवं राजस के कार्य एवं संचार में संतुलन बना के रखती है| अतः सत्व में इन दोनों का जो भी अति महत्वपूर्ण और अति आवश्यक कार्य है , वो समाया हुआ है|
मनन के लिए बीज प्रश्न : सत्व की धारणा से आप क्या नाता रखते हैं| क्या आप एक निजी कहानी साझा कर सकते हैं जब आपने ठहराव एवं बदलाव के संतुलन को स्वयं अनुभव किया हो| आप को संतुलन के लिए जगह बनाने में किस चीज़ से सहायता मिलती है|