हमारे जीवन के शुरुआती अनुभव, डॉ. गैबोर माते
मेरी माँ को मस्कुलर डिस्ट्रॉफी थी, जो मांसपेशियों की , दिन-प्रतिदिन और ख़राब होने वाली, एक बीमारी है। यह वंशानुगत है और हमारे परिवार में पीढ़ियों से है।इस बीमारी की वजह से माँ चल नहीं सकती थी, बिस्तर से बाहर नहीं निकल सकती थी, यहाँ तक कि अपने आप ठीक से खाना भी नहीं खा सकती थी | इसीलिए वह एक नर्सिंग होम में थी, उसने मानसिक रूप से पूरी तरह से अपनी बीमारी को अपना रखा था , और भावनात्मक रूप से भी बहुत मजबूत थी।
तो मैं उस दिन उस नर्सिंग होम के हॉल में चल रहा था, और मैं थोड़ा लंगड़ा रहा था। और मैं क्यों लंगड़ा रहा हूँ? क्योंकि उस सुबह मेरे घुटने की हड्डियों के जोड़ों की सर्जरी हुई थी, जो मुझे करवानी पड़ी थी, क्योंकि सीमेंट पर जॉगिंग करते समय मेरे घुटने की लचीली हड्डी फट गई थी । इसलिए उस दोपहर मुझे थोड़ी लंगड़ाहट थी। जब मैं अपनी माँ के कमरे में जाता हूँ, तो मैं लंगड़ाहट को दबा देता हूँ। लंगड़ाहट गायब हो जाती है। मैं आराम से उनके बिस्तर के पास जाता हूँ, उनका अभिवादन करता हूँ, हमारी एक प्यारी सी मुलाकात होती है। मैं बिल्कुल सामान्य चाल के साथ कमरे से बाहर निकलता हूँ, और जब मैं अपने पीछे दरवाजा बंद करता हूँ, तो मेरा लंगड़ापन फिर से शुरू हो जाता है।
और बाद में मैंने सोचा, "मैं यह यहाँ क्या कर रहा हूँ?" मेरे लंगडेपन को छुपाना जान बूझ कर किया गया कार्य नहीं था । मैंने सोच विचार कर ऐसा नहीं किया था। बेशक, स्पष्ट रूप से, मैं अपनी माँ को अपने दर्द के बारे में जानने से बचाने की कोशिश कर रहा था। अरे, मेरी माँ की उम्र अठ्तर साल की है, उन्हें इस तथ्य से बचाने की कोई वजह नहीं थी कि उनके चालीस वर्ष के बेटे को सर्जरी के दिन लंगड़ाना पड़ रहा है। असल में यह बचपन से ही एक प्रकार के सिस्टम का मेरे अन्दर स्वाभाविक रूप से विकास हो गया था | अगर मेरे जीवन के पहले वर्ष में आते हैं, जिसके बारे मैं मैंने आपके कार्यक्रम में, अपनी पहली यात्रा में उल्लेख किया था, तो हम देखते हैं कि हम नाजी कब्जे में रहते थे और हमारा एक यहूदी परिवार था । मेरे पिता को जबरन मजदूरी कराने के लिए बाहर ले जाया गया था । मेरी माँ एक अत्यधिक तनावग्रस्त महिला थी, जो मेरे और अपने आपके के पालन पोषण को सुनिश्चित करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ करने की कोशिश कर रही थी, जो वह मुश्किल से ही कर पा रही थी।
मैंने एक शिशु के रूप में अपने दर्द को दबाना सीखा, ताकि माँ को मेरी तकलीफ़ के दर्द से बचा सकूँ, क्योंकि उसके पास पहले से ही बहुत दर्द-तकलीफ़े थी, और यह मेरे लिए उसके साथ अपना रिश्ता बरक़रार रखने का तरीका था | हाँ, यह भावनात्मक पैटर्न बच्चों में कम उम्र से ही विकसित हो जाता है । और यद्यपि मुझे अपने जीवन में उस समय की कोई स्पष्ट घटना याद नहीं है, फिर भी उसकी यादें मेरी कोशिकाओं में, मेरे मस्तिष्क में जीवित है तथा लोगों के साथ मेरे संबंधों में प्रकट होती है, जिसमें मेरा मां को दुःख से बचाने का प्रयास करने का उदाहरण भी शामिल है।
इसलिए , तात्पर्य यह है कि हम इंसान ,जीवन में, अपने बचपन में घटित घटनाओं से ही अपना स्वाभाविक विकास प्रभावित कर लेते हैं| और यहाँ तक कि हमारा भावनात्मक विकास तो माता के गर्भाशय से ही शुरू हो जाता है | सितम्बर 11 , 2001 को अमेरिका में हुए भयंकर आतंकी हमले, जिसमे वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की विशाल इमारतों को ध्वस्त किया गया था , के बाद , जो महिलाएं उस वक़्त गर्भवती थीं, को एक एक बीमारी PTSD लग गयी थी, जो एक भयंकर विपदा से उपजे तनाव की बीमारी है | और गर्भ के विकास के किस समय में यह PTSD की बीमारी लगी थी , उसके हिसाब से जब पैदा हुए बच्चों का एक वर्ष की उम्र के बाद cortisol level नापा गया , (cortisol एक शरीर में उत्पन्न तनाव का हार्मोन है और इसका कार्य हमें आस पास के माहौल के प्रति प्रेरित , जागृत एवं अनुक्रियाशील रखना है ) , तो उनके cortisol level की मात्रा अनियमित पाई गयी| इसको अलग तरीके से देखें तो हमें पता चलता है कि उनका तनाव से लड़ने के तंत्र पर अपनी माँ के गर्भावस्था के समय के तनाव का नकारात्मक असर आ गया था|
उसी तरह, उदाहरण स्वरुप, जब मैंने उन बच्चों के तनाव से जूझने के तंत्र को देखा , जिनके माता पिता 1945 में हुए द्वितीय विश्व युद्ध में हुए नाज़ी अत्याचार के बाद जिन्दा बाख गए थे , और भयंकर तनाव से ग्रस्त थे, तो यह पाया कि जितना ज्यादा माता पिता पे उस अत्याचार की दहशत थी , उतना ही ज्यादा उन बच्चों के तनाव से जूझने के हार्मोन स्तर बढे हुए थे|
हम इस दुनिया को कैसे देखते है, यह दुनिया क्या एक मित्रता में लिप्त स्थान है या शत्रुता में लिप्त स्थान है, क्या हमें अपने लिए सब चीज़ें खुद ही करनी पड़ेंगी एवं अन्य लोगों का भी ख्याल रखना होगा , या हम वास्विक रूप से मदद मिलने की उम्मीद रख सकते हैं एवं मदद मिल भी सकती है| यह दुनिया मित्रता पूर्ण जगह है या शत्रुता पूर्ण जगह है एवं हमारे तनाव से जूझने की शारीरिक क्रिया , ये दोनों बहुत ज्यादा प्रभावित होती हैं हमारे बचपन या उसके भी पूर्व अनुभवोँ से | उसी से ही प्रभावित प्रतिक्रिया ज्यादातर हम अपने जीवन में देते रहते हैं , और वो ही प्रभावित हमारे बाद के स्वास्थ्य को करती है और वो ही हमारे स्वस्थ जीवन में बाधा बनती है |
स्वास्थ के उपचार के लिए इसका आशय यह है कि जब कोई व्यक्ति रूमेटाइड अर्थराइटिस या मल्टीपल स्क्लेरोसिस की पहली स्टेज में आता है, या यहां तक कि किसी को कैंसर होने का पहली बार पता चलता है, तो उन्हें सिर्फ़ गोलियां देना पर्याप्त नहीं होता है। उन्हें रेडिएशन देना या सर्जरी की पेशकश करना भी पर्याप्त नहीं है। उनसे बात की जानी चाहिए, उन्हें आमंत्रित किया जाना चाहिए तथा यह जांचने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे किस प्रकार अपना जीवन जीते हैं तथा स्वयं पर किस प्रकार का तनाव या भार डालते हैं | क्योंकि मैं आपको अपने व्यक्तिगत अनुभव और अवलोकन से बता सकता हूं कि जो लोग ऐसा करते हैं, जो अपने स्वास्थ्य के प्रति व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हैं, वे वास्तव में बहुत बेहतर करते हैं। और मैं ऐसे लोगों को जानता हूं जो कथित रूप से घातक बीमारी से बच गए हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने मन-शरीर के योग (एकता) को, और मैं कहूंगा आध्यात्मिक योग (एकता) को, गंभीरता से लिया है।
चिंतन के लिए बीज प्रश्न: आपके लिए अपने मन-शरीर के योग (एकता) को गंभीरता से लेना क्या मायने रखता है? क्या आप कोई ऐसे समय की निजी कहानी बता सकते हैं जब आपको अपने जीवन में तनाव उत्पन्न करने वाले पैटर्न की उत्पत्ति का पता चला हो? आप अपना जीवन किस तरह से जीते हैं और उसमें आध्यात्मिक योग (एकता) कैसे लाते है, इस बात की तहकीकात करने मैं आपको किस चीज़ से मदद मिलती है ?