परिवर्तन का उच्च भाव जो हमें जोड़ता है
द्वारा ब्रदर डेविड स्तैद्ल रास्त
मैं पहचानता हूं, मैं मानता हूं, मैं कृतज्ञ हूं| फ़्रांसीसी भाषा में ये तीनो शब्द एक ही कहावत में समाय हैं| “Je suis reconnaissant.”
मैं इस आनंद की विशेष गुणवत्ता को पहचानता हूं : यह आनंद , स्वैक्षिक रूप से, एक उपहार के तौर पे मुझे भेंट किया गया है| मैं इस उपहार की निर्भरता को मानता हूं, जो मुझे अन्य ही कोई इंसान , खुले दिल से, दे सकता है| मैं कृतज्ञ हूं, अपनी भावनाओं का खुले तौर पे उस उपहार का स्वाद लेने के लिए, और प्राप्त ख़ुशी प्रगट करने के लिए | इसी ख़ुशी को वापस अपने स्तोत्र पे पहुँचाने के लिए अपना धन्यवाद् देता हूं| आप देखते है कि जब भी हम दिल से धन्यवाद देते हैं, हमारा तन और मन पूरी तरह उसमे सम्मिलित हो जाता है| ह्रदय वो मध्य है, जहाँ हम पूरी तरह एक हैं: विवेक उपहार को उपहार के रूप में पहचानता है: हमारा मन हमारी निर्भरता को मानता है, और हमारी भावनाएं , एक संगीत फ़ैलाने वाले यन्त्र की तरह, उस अनुभव की लय को पूर्णता प्रदान करती हैं |
ये हो सकता है कि हमारा विवेक इसे शंका की निगाह से देखता है, और उपहार को उपहार के रूप में नहीं पहचानता| निःस्वार्थता साबित नहीं की जा सकती| सामने वाले व्यक्ति के अभिप्राय पे तर्क वितर्क करने से मैं सिर्फ वहीँ पहुंचता हूं, जहाँ विवेक को विश्वास करना होता है, सामने वाले पे विश्वास, और यह भाव सिर्फ विवेक का नहीं रह के पूर्ण ह्रदय का हो जाता है| और यह भी हो सकता है कि मेरा अहम् , किसी दूसरे पर मेरी निर्भरता मानने के लिए तैयार ही नहीं होता, और मेरे ह्रदय को धन्यवाद् के लिए खुलने से पहले ही रोक देता है|
यह भी हो सकता है कि जख्म लगी , कष्ट भरी, भावनाएं, मेरे भावों को पूर्ण प्रकट नहीं होने देतीं| मेरी शुद्ध निःस्वार्थता , असली कृतज्ञता की चाहत ., इतनी गहरी हो सकती है, ओंर साथ ही मेरे पूर्व के अनुभव से इतनी विपरीत भी हो सकती हैं, , कि मैं असमंजस में पड़ जाता हूं| वैसे भी, मैं कौन हूं? मेरे ऊपर क्यों कोई निःस्वार्थ प्यार बेकार करेगा? क्या मैं उसके काबिल हूं? नहीं, मैं नहीं हूं| इस सत्य का सामना करने के लिए, अपनी अयोग्यता पहचानने के लिए,और इसके बावजूद, प्यार पाने की आशा से अपने को खोलने की इच्छा , ये ही सम्पूर्ण मानव जाती की पूर्णता एवं पवित्रता की जड़ है, और इसी के मूल में धन्यवाद् ज्ञापन का भाव है| हालाँकि यह आतंरिक कृतज्ञता का भाव तभी प्रगट होता है, जब यह व्यक्त होता है|
धन्यवाद् ज्ञापन एक ऐसी उत्तरोत्तर वृद्धि की प्रक्रिया है, जिसमे देने वाला धन्यवाद पाता है, और वो ही प्राप्तकर्ता बन जाता है, और ये देने और प्राप्त करने की प्रक्रिया ऊपर ही ऊपर उठती चली जाती है| माँ पालने के पास आ कर बच्चे के हाथ में एक खिलौना देती है| बच्चा उस उपहार को पहचानता है और अपनी माँ की तरफ़ मुस्कुराता है| माँ, उस बच्चे की मुस्कान से आनंदित हो कर , कृतज्ञ हो कर उस बच्चे को उठा कर और प्यार करती है| यह ख़ुशी की उत्तरोत्तर वृद्धि है| क्या बच्चे का प्यार, माँ के खिलोने से बड़ा उपहार नहीं है? क्या यह ख़ुशी की अभिव्यक्ति , उस ख़ुशी से बड़ी नहीं है, जिस से ख़ुशी की उत्तरोतर वृद्धि होने लग जाती है?
आप देखेंगे कि सिर्फ ऐसा नहीं हैं कि आनंद की उत्तरोत्तर वृद्धि , यह दर्शाती है की ख़ुशी बढ़ गई है| अलबत्ता हम एक अत्यंत ही नयी स्थिति में परिवर्तित हो गये हैं| एक परिवर्तन आ चूका है| एक अनेकता से एकता की ओर का परिवर्तन: हम चले थे , उपहार , उपहार देने वाले और उपह्हर प्राप्त करने वाले से, और हम पहुँच गये हैं, धन्यवाद के ज्ञापन , एवं धन्यवाद की प्राप्ति के आलिंगन की ओर| कृतज्ञता के पूर्ण प्यार में , कौन बता सकता हैं कि कौन देने वाला है और कौन लेने वाला है|
क्या कृतज्ञता , अविश्वास से विश्वास का परिवर्तन, एक अहम् पूर्ण अलगाव से सहज लेने और देने की प्रक्रिया का परिवर्तन , ग़ुलामी और झूटी आत्मनिर्भरता से मुक्त करने वाली निर्भरता को स्वयं अपनाने का परिवर्तन, नहीं है ? हाँ कृतज्ञता ही बड़े परिवर्तन का भाव है|
और ये परिवर्तन का भाव हमें जोड़ता है| ये भाव हम मनुष्यों को जोड़ता है , हमें ये समझ में आता है कि इस परिवर्तनशील विश्व में, हम मनुष्यों को ही पता है की हम परिवर्तित हो सकते हैं और किस चीज़ से परिवर्तित हो सकते हैं| इसी में हमारा इंसानी बड़प्पन है| परिवर्तन के मायने समझने का प्रयत्न ( वह परिवर्तन जो हमारा पूर्ण जीवन है), और कृतज्ञता के भाव से इस परिवर्तन को समझने का आनंद |
मनन के लिए कुछ बीज प्रश्न: इस बात से आप क्या समझते हैं कि कृतज्ञता ही परिवर्तन का उच्च उपहार है? क्या आप उस समय की एक निजी कहानी साझा कर सकते हैं जब आपने अपने आपको कृतज्ञता की उत्तरोत्तर वृद्धि कि स्थिति में पाया हो? कृतज्ञता की उत्तरोतर वृद्धि वाली गति लाने में आपको किस चीज़ से सहायता मिलती है?